नपाकी की किस्में और उन के ज़रूरी अह़काम نجاست کی اقسام اور ان کے بنیادی احکام

 ✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄



सिलसिला 31:

🌻 *नजासत की अक़साम और उन के बुनियादी अह़काम (नपाकी की किस्में और उन के ज़रूरी अह़काम)*


🌼 *नमाज़ के लिए बदन और लिबास की पाकी की अहमियत:*

शरीअ़त का हुक्म यह है कि नमाज़ अदा करने के लिए बदन और कपड़ों का हर क़िस्म की गंदगी से पाक होना जरूरी है, इस लिए नमाज़ से पहले लिबास और बदन के पाक होने से मुतअ़ल्लिक़ मुकम्मल इत्मीनान कर लेना चाहिए ताकि नमाज़ की अदाएगी दुरुस्त तरीके से हो।


🌼 *नजासत (और गंदगी) की मामूली (थोड़ी) मिकदार की माफ़ी और उस की ह़क़ीक़त:*

वैसे तो हर मुसलमान की यही कोशिश होनी चाहिए कि कपड़ों और बदन पर नजासत और नापाकी का नाम व निशान तक ना हो और यही शरीअ़त का तका़ज़ा है, अलबत्ता शरीअ़त ने उम्मत को तंगी से बचाने के लिए सहूलत (और आसानी) की खातिर नजासत की मामूली मिक़दार (थोड़ी नपाकी) माफ़ क़रार दी है, लेकिन माफ़ क़रार देने का यह मतलब हरगिज़ नहीं कि उस से बचने या उस को पाक करने में गफलत का मुज़ाहरा किया जाए (और तवज्जुह ना दी जाए)। इस मामूली (और थोड़ी) मिक़दार को समझने के लिए नजासत के बारे में शरीअ़त की बयान कर्दा तफ़्सीलात से आगाही (और उन का इल्म) हासिल करते हैं:


🌼 *नजासत (और नापाकी) की दो अक़साम हैं:*

❶ *नजासते हुक्मिय्यह:*

शरीअ़त की निगाह में वज़ू टूट जाने या गु़स्ल फ़र्ज़ हो जाने को नजासते ह़ुकमी कहा जाता है, इसे "हदस" भी कहते हैं, वज़ू टूट जाने को हदसे असगर जबकि ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाने को हदसे अकबर कहा जाता है।

यहां इस से मुतअ़ल्लिक़ तफ़्सील बयान करना मकसूद नहीं, इसी लिए इसी पर इकतिफ़ा (बस) किया जाता है।

❷ *नजासते हकी़क़िय्यह:*

बदन या कपड़ों पर नजासत यानी गंदगी लग जाए तो उस को नजासते हकी़क़िय्यह कहा जाता है कि उस में वाकि़अ़तन (ह़क़ीक़त में) नजासत (और गंदगी) लगी होती है।


🌼 *नजासते हकी़क़िय्यह की दो अक़साम हैं:*


1️⃣ *नजासते ग़लीज़ह:*


इस से मुराद वो नजासत (और गंदगी) है जिसमें नापाकी का हुक्म सख़्त होता है जैसे: इंसानों का पेशाब और पाखाना [चाहे दूध पीते बच्चे का ही क्यों ना हो], मनी, मज़ी, वदी, बहने वाला खून और पीप, हेज़ व निफ़ास का खून, ह़राम जानवरों का पेशाब और पाखाना, ह़लाल जानवरों का पाखाना जैसे: गोबर, लीद, मेंगनी, मुर्ग़ी और बतख़ की बीट, शराब वग़ैरा|


☀️ *हुक्म:*

ऐसी नजासते ग़लीज़ह जो पतली यानी बहने वाली हो जैसे पेशाब वग़ैरा तो इसमें शरई दिर्हम की पैमाइश और फैलाओ का ऐतबार है कि अगर बदन या कपड़ों पर शरई दिर्हम के फैलाओ से ज़्यादा लग जाए तो उसके होते हुए नमाज़ दुरुस्त नहीं होगी, और अगर किसी ने उस के साथ ही नमाज़ अदा कर ली तो वो नमाज़ अदा नहीं हुई इसलिए इसको दोबारा अदा करना ज़रूरी है। अलबत्ता अगर ये नजासत (और गंदगी) शरई दिर्हम के फैलाओ के बराबर या उस से कम लग जाए तो माफ़ है,

अगर किसी ने उसके होते हुए नमाज़ अदा करली तो नमाज़ अदा हो जाएगी, चाहे उसको इल्म हो या ना हो, अलबत्ता बेहतर और मुनासिब ये है कि इसको भी दूर किया जाए कियोंकि यही एह़तियात का तक़ाज़ा है कियोंकि मुतअ़द्दिद (कई) अहले इल्म ने दिर्हम के बक़द्र नजासत पाक ना करने को बुरा और मकरूह क़रार दिया है।

लेकिन जो नजासते ग़लीज़ह कसीफ़ यानी ठोस हो जैसे पाखाना, गोबर, जमा हुआ खून वग़ैरा तो इसमें शरई दिर्हम के वज़न का एतबार है कि ऐसी नजासत दिर्हम के वज़न के बराबर माफ़ है जिस की तफ़्सील बयान हो चुकी। (कि अगर किसी ने उसके होते हुए नमाज़ अदा करली तो नमाज़ अदा हो जाएगी, चाहे उसको इल्म हो या ना हो, अलबत्ता बेहतर और मुनासिब ये है कि इसको भी दूर किया जाए, और अगर दिरहम के वज़न से ज़्यादा गाढ़ी नजासत लग जाए, तो उसके होते हुए नमाज़ दुरुस्त नहीं होगी।


🌼 *शरई़ दिरहम की पैमाइश:*

          

① शरई दिरहम की मुह़तात पैमाइश एक ऐसा दाइरा है जिस का क़ुतर 2.75 सेंटी मीटर हो ,इस की गोलाई तक़रीबन 8.64 सेंटी मीटर हो और इस का कुल रक़बा 5.94 सेंटी मीटर हो।

                  

② शरई दिरहम की पैमाइश यूँ भी की जा सकती है कि हथेली में पानी लेकर हथेली को फैलाया जाए तो अतराफ़ का पानी गिर जाने के बाद हथेली के गहराओ के जितने हिस्से में पानी बाक़ी रह जाए उतनी मिक़दार दिरहम की पैमाइश है।


🌼 *शरई दिरहम का वज़न:*   

            

 एक शरई दिरहम साढ़े चार माशे [4.374 गिराम] के बराबर होता है।


2️⃣ *नजासते ख़फीफह:*

                  

यानी हलकी नजासत, इस से मुराद वो नजासत है जिस में नापाकी का हुक्म हलका और नर्म होता है जैसे:हलाल जानवरों का पेशाब ,हराम परिंदों की बीट वगैरह।


☀️ *हुकम:*                      

ऐसी नजासत अगर बदन या कपड़ों पर लग जाए तो जिस उ़ज़्व (बदन के हिस्से) पर लगी है उस के चौथाई हिस्से से कम हो तो माफ है, लेकिन अगर चौथाई या उस से ज़्यादा हो तो इस के होते हुए नमाज दुरुसत नहीं जैसे:आसतीन पर लग जाए तो उस का चौथाई ,दामन पर लग जाए तो उस का चौथाई, वगैरह। वाज़ेह रहे कि माफ होने का मतलब मा क़ब्ल मे बयान हो चुका।

دیکھیے: رد المحتار، بہشتی زیور، اعلاء السنن، احسن الفتاویٰ، وساوس اور حقائق از مفتی محمد رضوان صاحب دام ظلہم۔


*فقہی عبارت*

☀️ فتاویٰ ہندیہ:

الْفَصْلُ الثَّانِي في الْأَعْيَانِ النَّجِسَةِ: وَهِيَ نَوْعَانِ: الْأَوَّلُ الْمُغَلَّظَةُ وَعُفِيَ منها قَدْرُ الدِّرْهَمِ وَاخْتَلَفَتِ الرِّوَايَاتُ فيه، وَالصَّحِيحُ أَنْ يُعْتَبَرَ بِالْوَزْنِ في النَّجَاسَةِ الْمُتَجَسِّدَةِ وهو أَنْ يَكُونَ وَزْنُهُ قَدْرَ الدِّرْهَمِ الْكَبِيرِ الْمِثْقَالِ، وَبِالْمِسَاحَةِ في غَيْرِهَا وهو قَدْرُ عَرْضِ الْكَفِّ، هَكَذَا في «التَّبْيِينِ» وَ«الْكَافِي» وَأَكْثَرُ الْفَتَاوَى. وَالْمِثْقَالُ وَزْنُه ُ عِشْرُونَ قِيرَاطًا، وَعَنْ شَمْسِ الْأَئِمَّةِ: يُعْتَبَرُ في كل زَمَانٍ بِدِرْهَمِهِ، وَالصَّحِيحُ الْأَوَّلُ، هَكَذَا في «السِّرَاجِ الْوَهَّاجِ» نَاقِلًا عن «الْإِيضَاحِ». كُلُّ ما يَخْرُجُ من بَدَنِ الْإِنْسَانِ مِمَّا يُوجِبُ خُرُوجُهُ الْوُضُوءَ أو الْغُسْلَ فَهُوَ مُغَلَّظٌ كَالْغَائِطِ وَالْبَوْلِ وَالْمَنِيِّ وَالْمَذْيِ وَالْوَدْيِ وَالْقَيْحِ وَالصَّدِيدِ وَالْقَيْءِ إذَا مَلَأَ الْفَمَ، كَذَا في «الْبَحْرِ الرَّائِقِ»، وَكَذَا دَمُ الْحَيْضِ وَالنِّفَاسِ وَالِاسْتِحَاضَةِ، هَكَذَا في «السِّرَاجِ الْوَهَّاجِ»، وَكَذَلِكَ بَوْلُ الصَّغِيرِ وَالصَّغِيرَةِ أَكَلَا أو لَا، كَذَا في «الِاخْتِيَارِ شَرْحِ الْمُخْتَارِ»، وَكَذَلِكَ الْخَمْرُ وَالدَّمُ الْمَسْفُوحُ وَلَحْمُ الْمَيْتَةِ وَبَوْلُ ما لَا يُؤْكَلُ وَالرَّوْثُ وَأَخْثَاءُ الْبَقَرِ وَالْعَذِرَةِ وَنَجْوُ الْكَلْبِ وَخُرْءُ الدَّجَاجِ وَالْبَطِّ وَالْإِوَزِّ نَجِسٌ نَجَاسَةً غَلِيظَةً، هَكَذَا في «فَتَاوَى قَاضِي خَانْ»، وَكَذَا خُرْءُ السِّبَاعِ وَالسِّنَّوْرِ وَالْفَأْرَةِ، هَكَذَا في «السِّرَاجِ الْوَهَّاجِ». بَوْلُ الْهِرَّةِ وَالْفَأْرَةِ إذَا أَصَابَ الثَّوْبَ قال بَعْضُهُمْ: يُفْسِدُ إذَا زَادَ على قَدْرِ الدِّرْهَمِ وهو الظَّاهِرُ، هَكَذَا في «فَتَاوَى قَاضِي خَانْ» وَ«الْخُلَاصَةِ». خُرْءُ الْحَيَّةِ وَبَوْلُهَا نَجِسٌ نَجَاسَةً غَلِيظَةً وَكَذَا خُرْءُ الْعَلَقِ، كَذَا في «التَّتَارْخَانِيَّة». وَدَمُ الْحَلَمَةِ وَالْوَزَغَةِ نَجِسٌ إذَا كان سَائِلًا، كَذَا في «الظَّهِيرِيَّةِ»، فإذا أَصَابَ الثَّوْبَ أَكْثَرُ من قَدْرِ الدِّرْهَمِ يَمْنَعُ جَوَازَ الصَّلَاةِ، كَذَا في «الْمُحِيطِ». وَالثَّانِي: الْمُخَفَّفَةُ وَعُفِيَ منها ما دُونَ رُبْعِ الثَّوْبِ كَذَا في أَكْثَرِ الْمُتُونِ. اخْتَلَفُوا في كَيْفِيَّةِ اعْتِبَارِ الرُّبْعِ قِيلَ: الْمُعْتَبَرُ رُبْعُ طَرَفٍ أَصَابَتْهُ النَّجَاسَةُ كَالذَّيْلِ وَالْكُمِّ وَالدِّخْرِيصِ إنْ كان الْمُصَابُ ثَوْبًا، وَرُبْعُ الْعُضْوِ الْمُصَابِ كَالْيَدِ وَالرِّجْلِ إنْ كان بَدَنًا، وَصَحَّحَهُ صَاحِبُ «التُّحْفَةِ» وَ«الْمُحِيطِ» وَ«الْبَدَائِعِ» وَ«الْمُجْتَبَى» وَ«السِّرَاجِ الْوَهَّاجِ»، وفي «الْحَقَائِقِ»: وَعَلَيْهِ الْفَتْوَى، كَذَا في «الْبَحْرِ الرَّائِقِ». وَبَوْلُ ما يُؤْكَلُ لَحْمُهُ وَالْفَرَسُ وَخُرْءُ طَيْرٍ لَا يُؤْكَلُ مُخَفَّفٌ، هَكَذَا في «الْكَنْزِ».


✍🏻: मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा व तसहील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ