✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨
*सिलसिला 24:*
🌻 *ग़ुस्ले जनाबत (बडी़ नापाकी की वजह से फ़र्ज़ होने वाले ग़ुस्ल) के अह़काम*
🌻 *ग़ुस्ल कब फ़र्ज़ होता है?*
बुनियादी तौर पर तीन (कारण यानी) वुजूहात ऐसी हैं जिन की वजह से गु़स्ल फ़र्ज़ हो जाता है:
1️⃣ औरत पर है़ज़ (माहवारी) से पाक हो जाने के बाद ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है।
2️⃣ औरत पर निफास (बच्चे की पैदाइश के बाद निकलने वाले खून) से पाक होने के बाद ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है।
3️⃣ शहवत (लज़्ज़त और मज़े) से मनी निकल आने के बाद मर्द और औरत पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है।
(रद्दुल मुह़तार, फतावा आ़लमगीरी)
🌻 *शहवत से मनी निकलने की सूरतें:*
शहवत (लज़्ज़त और मज़े) से मनी निकलने की मुतअ़द्दिद (कई) सूरतें हैं और उन सब सूरतों में ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है:
❶ सोते में किसी को एहतिलाम हो जाए, चाहे मर्द हो या औरत।
(सही मुस्लिम, हदीस: 737, सुनने अबी दाऊद, ह़दीस: 237, रद्दुल मुह़तार)
❷ सुहबत यानी हम्बिस्तरी करते वक़्त मनी निकल आए।
❸ अगर मियां बीवी ने सुहबत की और बाका़एदा दुखूल भी हो गया, तो इस से भी दोनों पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है अगरचे इंजाल नहीं हुआ हो (चाहे मनी ना निकली हो)।
(सही बुखारी, हदीस: 291, सही मुस्लिम, हदीस: 809-813, सुनने अबी दाऊद, ह़दीस: 215, रद्दुल मुह़तार)
☀️ *मसअला:*
अगर किसी शख़्स ने कोई कपड़ा वगैरा लपेट कर जिमा किया (सुहबत की) लेकिन इन्ज़ाल नहीं हुआ (मनी नहीं निकली) तो ऐसी सूरत में भी एहतियातन मियां बीवी दोनों पर ग़ुस्ल वाजिब है।
(रद्दुल मुह़तार)
☀️ *मसअला:*
अगर मियां बीवी शहवत के साथ शरमगाह इस तरह मिला लें कि दरमियान में कोई कपड़ा वगैरा ह़ाएल ना हो, लेकिन दूखूल (दाखिल) भी ना हुआ हो और इंजाल भी ना हुआ हो तो इस से ग़ुस्ल फ़र्ज़ नहीं होता, अलबत्ता वज़ू टूट जाता है अगरचे (चाहे) कुछ भी ना निकले। (रद्दुल मुह़तार)
❹ शौहर का बीवी के साथ पिछली शर्मगाह में जिमा (सुहबत) करना हराम है, लेकिन इस से मियां बीवी दोनों पर ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है, चाहे मनी निकले या ना निकले।
(रद्दुल मुह़तार)
❺ बदनज़री करने की वजह से शहवत के साथ मनी निकल आए।
❻ बुरा खयाल आने की वजह से शहवत के साथ मनी निकल आए।
❼ मुश्त ज़नी (हस्तमैथुन) से मनी निकल आए, अगरचे आ़म हालात में मुश्त ज़नी करना सख़्त गुनाह है।
❽ या किसी और वजह से शहवत के साथ मनी निकल आए।
(इन तमाम सूरतों में ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है)
(रद्दुल मुह़तार, ह़ाशियतुत तह़ता़वी अ़लल मराक़ी)
🌻 *मनी निकलने से ग़ुस्ल कब फ़र्ज़ होता है?*
मनी निकलने से ग़ुस्ल उस वक़्त फ़र्ज़ होता है, जब वह शहवत के साथ अपनी खास जगह से जुदा हो कर बाहर निकल आए, इसी तरह अगर मनी अपनी जगह से शहवत के साथ जुदा हो गई, लेकिन बाहर आते वक़्त शहवत नहीं थी, तब भी ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है।
(रद्दुल मुह़तार, तबयीनुल ह़क़ाइक़, फत्ह़ुल क़दीर)
🌼 *मसअला:*
बाज़ लोगों की मनी पतली होती है कि उस में गाढ़ा पन ज़्यादा नहीं होता, ऐसी सूरत में अगर मनी शहवत से तो निकले लेकिन उछल कूद कर यानी झटके से ना निकले, तब भी ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है, क्योंकि शहवत से मनी निकल आना ही ग़ुस्ल के लिए काफी होता है, और चूंकि यहां मनी पतली होने की वजह से उस के निकलने में उछल कूद और झटके का पाया जाना मुश्किल होता है, इस लिए ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है।
(इमदादुल फतावा, दुर्रे मुख्तार, मअ़ रद्दिल मुह़तार, अल-बह़रुरराइक़)
🌻 *शहवत के बग़ैर मनी निकलने का हुक्म:*
अगर किसी शख़्स को शहवत के बग़ैर वैसे ही मनी आए, तो उस से ग़ुस्ल फ़र्ज़ नहीं होता। (रद्दुल मुह़तार)
🌻 *मनी, मजी़ और वदी की तारीफ़ और (पहचान व) हकीकत:*
1️⃣ *वदी:* यह (आ़म तौर से) गाढ़े क़तरे होते हैं जो कभी तो पेशाब के बाद निकलते हैं, कभी तो ग़ुस्ले जनाबत (फ़र्ज़ ग़ुस्ल) के बाद और कभी कोई भारी चीज़ उठाने के बाद निकलते हैं।
(हिदाया, मोसूआ़ फिक़हिय्यह, अल-बह़रुरराइक़, आ़लमगीरी, इम्दादुल फतावा)
▫️ *ह़ुक्म:* वदी से ग़ुस्ल फ़र्ज़ नहीं होता। (रद्दुल मुह़तार)
2️⃣ *मज़ी:* वह (आ़म तौर से) गाढ़ा पानी जो शहवत और जोश के वक़्त निकलता है, लेकिन इस से शहवत और जोश ठंडा नहीं होता, और इस का रंग भी बिल्कुल पानी ही की तरह होता है।
(हिदाया, मोसूआ़ फिक़हिय्यह व दीगर कुतुब)
▫️ *ह़ुक्म:* मज़ी से भी ग़ुस्ल फ़र्ज़ नहीं होता।
(सही बुखारी हदीस: 269, सुनने अबी दाऊद ह़दीस: 206, रद्दुल मुह़तार)
3️⃣ *मनी:* यह दर हक़ीक़त लेस दार गाढ़ा माधा होता है, यह पानी की तरह तो नहीं होता, बल्कि इस में ज़र्रात नुमा (ज़र्रे) होते हैं, यह उस वक़्त निकलती है जब शहवत अपनी इंतिहा को पहुंचती है और यह उमूमन (आम तौर से) झटके से निकलती है जिस के बाद शहवत और जोश ठंडा हो जाता है और उ़ज़्व में फुतूर (ढीला पन) आ जाता है।
(हिदाया, मोसूआ़ फिक़हिय्यह व दीगर कुतुब)
▫️ *ह़ुक्म:* शहवत से मनी निकलने के बाद ग़ुस्ल वाजिब हो जाता है।
(सही मुस्लिम हदीस: 736, सुनने अबी दाऊद ह़दीस: 206, रद्दुल मुह़तार)
☀️ *फाएदा:*
बहुत से ह़ज़रात मनी और मज़ी के माबैन (दरमियान) फ़र्क नहीं कर पाते जिस की वजह से वह ग़ुस्ल करने के मुआ़मले में परेशान रहते हैं, इस लिए मज़कूरा बाला (ऊपर बतलाई गई) तफ़्सीलात को अच्छी तरह ज़हन नशीं (और याद) कर लें, ताकि गलतियों और गलत फहमियों का इजाला (और परेशानी ख़त्म) हो सके।
🌻 *नींद से बेदार होने के बाद कपड़ों पर तरी देखे तो क्या हुक्म है?*
अगर कोई शख्स नींद से बेदार हुआ (जागा) और उस ने कपड़ों पर (गीला पन यानी) तरी देखी, तो बाज़ (कुछ) सूरतों में ग़ुस्ल का फ़र्ज़ होना तो बिल्कुल ही वाज़ेह़ (और ज़ाहिर) है जैसे किसी ने ख़्वाब में एहतिलाम होता देखा और बेदार होने के बाद उस के कपड़ों पर एहतिलाम के असरात भी थे, लेकिन मुतअ़द्दिद (कई) सूरतें ऐसी हैं कि जिन से उमूमन (आम तौर पर) लोग नावाक़िफ (जाहिल) होते हैं कि उन में ग़ुस्ल फ़र्ज़ होता है या नहीं, जबकि उन से मुतअल्लिक़ शरई़ (शरीअ़त का) हु़क्म जानना ज़रूरी है, इस लिए इस मसअले को तफ़्सील से बयान किया जाता है, ताकि हर शख़्स अपनी हालत के मुताबिक़ हुक्म को समझ सके।
नींद से बेदार होने (जागने) के बाद कपड़ों पर (गीला पन यानी) तरी देखी तो इस की चंद सूरतें हैं:
🌻 *दर्जे जै़ल (नीचे लिखी जाने वाली) सूरतों में ग़ुस्ल फ़र्ज़ हो जाता है:*
❶ यक़ीन या ग़ालिब (ज़्यादा) गुमान हो जाए कि यह मनी है और एहतिलाम (का होना) याद हो।
❷ यक़ीन हो जाए कि यह मनी है और एहतिलाम याद ना हो।
❸ यक़ीन हो जाए कि यह मज़ी है और एहतिलाम याद हो।
❹ शक हो कि यह मनी है या मज़ी और एहतिलाम याद हो।
❺ शक हो कि यह मनी है या वदी और एहतिलाम याद हो।
❻ शक हो कि यह मनी है या मज़ी है या वदी, और एहतिलाम याद हो।
❼ शक हो कि यह मनी है या मज़ी, और एहतिलाम याद ना हो।
🌻 *दर्जे ज़ैल (नीचे लिखी जाने वाली) सूरतों में ग़ुस्ल फ़र्ज़ नहीं होता:*
① यक़ीन हो जाए कि यह मज़ी है, और एहतिलाम याद ना हो।
② शक हो कि यह मनी है या वदी, और एहतिलाम याद ना हो।
③ शक हो कि यह मज़ी है या वदी, और एहतिलाम याद ना हो।
④ यक़ीन हो जाए कि यह वदी है, और एहतिलाम याद हो या ना हो।
⑤ शक हो कि यह मनी है, मज़ी है या वदी, और एहतिलाम याद ना हो।
अलबत्ता इन में दूसरी और पांचवीं सूरत में एहतियातन ग़ुस्ल वाजिब है।
(नोट: किसी चीज़ के होने या ना होने में जिस तरफ़ ज़्यादा गुमान और खयाल हो, वह यक़ीन की तरह माना जाएगा। ह़ाशियतुत तह़ता़वी)
(दुर्रे मुख्तार मअ़ रद्दिल मुह़तार, अल-बह़रुरराइक़, इम्दादुल फतावा जदीद, बहश्ती ज़ेवर)
🌼 *मसअला:*
ख़्वाब में एहतिलाम होता देखे लेकिन बेदार होने (जागने) के बाद जिस्म और कपड़ों पर कोई निशान ना हो, तो इस से ग़ुस्ल फ़र्ज़ नहीं होता, क्योंकि एहतिलाम की सूरत में जब तक मनी ना निकली हो, तो ग़ुस्ल फ़र्ज़ ही नहीं होता।
(सुनने अबी दाऊद ह़दीस: 236, रद्दुल मुह़तार, इम्दादुल फतावा)
🌻 *ग़ुस्ल के बाद मनी निकलने का ह़ुक्म :*
ग़ुस्ल करने के बाद भी मनी के क़तरे निकलें तो अगर ग़ुस्ल से पहले पेशाब कर लिया था, चल फिर लिया था या सो लिया था, तो इन क़तरो से दोबारा ग़ुस्ल फ़र्ज़ नहीं होता, लेकिन अगर पेशाब या दीगर उमूर (दूसरे कामों: चलना फिरना वग़ैरह) किये बगै़र फ़ौरन ही ग़ुस्ल कर लिया था तो ऐसी सूरत में ग़ुस्ल दोबारा करना होगा।
(अल-बह़रुरराइक़ फतावा आ़लमगीरियह)
🌻 *एक से ज़ाइद बार स़ुह़बत की सूरत में ग़ुस्ल का ह़ुक्म :*
अगर शोहर अपनी बीवी से एक से ज़ाइद (ज़्यादा) बार हम्बिस्तरी करना चाहे तो हर स़ुह़बत के बाद ग़ुस्ल ज़रूरी नहीं, बल्कि आखिर में एक ही ग़ुस्ल कर लेना काफी है।
(सह़ी मुस्लिम, फतावा मह़मूदियह, रद्दुल मुह़तार, फतावा दारुल उ़लूम देवबंद)
🌻 *जनाबत की ह़ालत में किसी औरत को माहवारी आ जाए तो ग़ुस्ल का ह़ुक्म :*
जनाबत (बड़ी नापाकी) की हा़लत में किसी औरत को माहवारी आ जाए तो उस पर ग़ुस्ले जनाबत फ़र्ज़ नहीं रहता, इस लिये माहवारी के अय्याम (दिनों) में ऐसी औरत के लिए ग़ुस्ले जनाबत का हुक्म नहीं, कियोंकि अय्यामे हेज़ (माहवारी के दिन) नापाकी का ज़माना कहलाता है, ये अय्याम खत्म होने पर ग़ुस्ल करना फ़र्ज़ हुआ करता है। ग़ुस्ले जनाबत तो पाकी के लिए हुआ करता है और जब तक वो औरत अय्यामे हेज़ (माहवारी के दिनों) में है तो पाकी का तसव्वुर (और कोई मतलब) ही नहीं हो सकता, इस लिए अय्यामे हे़ज़ (माहवारी के दिनों) में ग़ुस्ले तहारत (पाकी का ग़ुस्ल) कोई माना ही नहीं रखता कियोंकि अगर वो ग़ुस्ल कर भी ले तो पाकी फिर भी हासिल नहीं होनी, बल्कि अय्याम (माहवारी के दिन)खत्म होने पर दोबारा ग़ुस्ल करना पड़ेगा,
इस लिए ऐसी सूरत में अय्यामे हेज़ में ग़ुस्ले जनाबत वाजिब नहीं अलबत्ता अगर कोई औरत माहवारी के अय्याम में वेसे ही ग़ुस्ल करना चाहे तो शरई एतिबार से इस में भी कोई हर्ज नहीं लेकिन ये ग़ुस्ल, ग़ुस्ले तहारत (पाकी का ग़ुस्ल) नहीं कहलाएगा।
(फतावा क़ाज़ी खान, फतावा दारुल उ़लूम देवबंद जिल्द 1, सफहा 134-135)
🌻 *वज़ाह़त:*
इस तह़रीर में ग़ुस्ले जनाबत (नापाकी की वजह से फ़र्ज़ होने वाले ग़ुस्ल) के सिर्फ बुनियादी (और ज़रूरी) मसाइल बयान किए गए हैं, ताकि हर मुसलमान मर्द और औरत इन को अच्छी तरह सीख सकें और ऐसे मसाइल में उन्हें परेशानी का सामना ना करना पड़े।
✍🏻: मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम
फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची
हिंदी तर्जुमा व तसहील:
अल्तमश आ़लम क़ासमी
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