सत्ताईस रजब की रात को मेअ़राज के बारे में जलसा करने का हुक्म

 ✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨

सिलसिला नंबर 542:




📿 सत्ताईस रजब की रात को मेअ़राज से मुतअ़ल्लिक़ जलसा करने का हुक्म:

आजकल माहे रजब की सत्ताईस्वीं तारीख की रात को, शबे मेअ़राज क़रार दे कर जलसे मुनअ़किद किए जाते हैं, जिन में नातें पढ़ी जाती हैं, वाकिआ़ मेराज बयान किया जाता है और शबे मेराज व सत्ताईस्वीं रजब के फजा़इल बयान किए जाते हैं। यूं इस रात शब बेदारी का एहतिमाम भी किया जाता है।

वाज़ेह़ रहे कि सत्ताईस्वीं रजब को शबे मेराज क़रार दे कर इस रात जलसे और मह़फि़लें मुनअ़किद करना हरगिज़ दुरुस्त नहीं, इस लिए इस गै़र शरई़ (शरीअ़त के खिलाफ़) काम से इज्तिनाब करना (और बचना) चाहिए। इस की मुमानअ़त की वुजूहात दर्जे जै़ल हैं (इस के मना और दुरुस्त ना होने की निम्निलिखित वजहें हैं):

1️⃣ *पहली वजह:* मेराज का यह वाकि़आ़ किस महीने में और किस तारीख को पेश आया, इस से मुतअ़ल्लिक (इस बारे में) यकी़नी तौर पर कुछ कहना बहुत ही मुश्किल है, आ़म तौर पर लोगों में मशहूर तो यही है कि 27 रजब की रात को यह वाकि़आ़ पेश आया; लेकिन कु़रआन व सुन्नत से इस ह़वाले से कोई वाज़ेह़ (साफ़) और मौतबर बात साबित नहीं, ह़त्ता कि इस रात की तअ़यीन (तय होने) में ह़ज़राते सहा़बा किराम, ताबिई़ने इ़जा़म और अकाबिरे उम्मत की बहुत सी आरा (अलग अलग राए) हैं; यही वजह है कि इस शदीद (सख़्त) इख्तिलाफ के पेशे नज़र मुह़क़्क़िक़ीन ह़ज़रात (तह़क़ीक़ करने वालों) के नज़दीक रजब की 27 तारीख ही को यकी़नी तौर पर शबे मेराज क़रार देना दुरुस्त नहीं। [देखिए: इस्लाही खुतबात]

जब यह बात साबित हुई, तो इस से मालूम हो जाता है कि रजब की सत्ताईस्वीं तारीख़ की रात को शबे मेराज क़रार देना और इस की बुनियाद पर जलसे और मह़फिलें मुनअ़किद करना भी दुरुस्त नहीं।


2️⃣ *दूसरी वजह:* शबे मेराज खैरुल क़ुरून यानी इस्लाम के इब्तिदाई (शुरू के) तीन मुबारक (हुज़ूर, सहाबा और तबिई़न के) ज़मानों में भी (शबे मेराज) आती थी और आ कर आ़म रातों की तरह गुज़र जाती थी, उस रात ना कोई एहतिमाम और जश्न होता था, ना इज़ाफी (अलग से) इ़बादात हुआ करती थीं, ना शब बेदारी के फ़ज़ाइल बयान किए जाते थे और ना ही जलसे और इज्तिमाआ़त हुआ करते थे।

यह सारी सुरते हा़ल बजा़ते ख़ुद यह बात वाज़ेह़ कर देती है कि शबे मेराज के उ़न्वान (और नाम) से यह जलसे मुनअ़किद करना और मह़फिलें का़यम करना हुज़ूर अक़दस ﷺ, ह़ज़राते सहा़बा किराम और तबिई़ने इ़ज़ाम से हरगिज़ साबित नहीं।

इसी तरह इस से यह बात भी रोज़े रोशन की तरह वाज़ेह़ (चमकते सूरज की तरह यह बात भी मालूम) हो जाती है कि आज जो शबे मेराज मनाने के लिए ख़ुद साखता (अपनी तरफ़ से बनाए हुए) दलाइल और फ़ज़ाइल बयान किए जाते हैं, यह अगर का़बिले क़बूल और मौतबर होते, तो ह़ज़राते सहा़बा किराम और तबिई़ने इ़जा़म इन के ज़्यादा मुस्तहिक़ थे कि, वो इन बातों को अपनाते और इन पर अ़मल करते; लेकिन हर साल शबे मेराज की तारीख़ आने के बावजूद भी उन्होंने ऐसा कुछ भी एहतिमाम नहीं किया, इस से मालूम हो जाता है कि आजकल शबे मेराज मनाने के लिए, दिए जाने वाले दलाईल (दलीलें) मन्घड़त और बे बुनियाद हैं।

यह सूरते हा़ल हम से तका़ज़ा करती है कि, हम भी इस रात मह़फिलें मुनअ़किद करने से इज्तिनाब करें (और बचें)।

इस लिए शबे मेराज सत्ताईस रजब को हो या किसी और तारीख़ को: इस रात इस उ़न्वान से जलसे और मह़फिलें मुनअ़किद करना दुरुस्त नहीं।


3️⃣ *तीसरी वजह:* शबे मेराज के जलसों की एक बड़ी क़बाह़त (और ख़राबी) यह भी है कि बहुत से मका़मात (जगहों) में शबे मेराज के जलसों की वजह यह बयान की जाती है कि, इस रात जागना और इ़बादत करना बहुत बड़ी फ़जी़लत का बाइ़स है, इस लिए इन जलसों में शिरकत करने से शब बेदारी की फ़ज़ीलत हा़सिल की जा सकती है। ज़ाहिर है कि यह बात भी मन्घड़त ही है; क्योंकि कु़रआन व ह़दीस से शबे मेराज और सत्ताईस्वीं रजब की कोई इज़ाफ़ी (अलग से) फजी़लत और इ़बादत साबित नहीं कि उस के लिए खुसूसी तौर पर शब बेदारी का एहतिमाम किया जाए। इस लिए ऐसी मन्घड़त और ग़ैर मौतबर बातों से इज्तिनाब करना (बचना) ही दीन का तका़ज़ा है।


4️⃣ *चौथी वजह:* शबे मेराज के नाम से मुनअ़किद किए जाने वाले जलसों और मह़फिलों में मज़कूरा (ऊपर बतलाई गई) बातों के अ़लावा दीगर भी मुतअ़द्दिद (कई) खराबियां शामिल हो गई हैं, जिन के पेशे नज़र उन की क़बाह़त और बुराई में (ज़्यादती और) इज़ाफ़ा हो गया है जैसे:

▪ इस रात मसाजिद और गलियों को सजाया जाता है, जिस का ग़लत और खि़लाफे शरीअ़त (शरीअ़त के खिलाफ़) होना वाज़ेह़ (और ज़ाहिर) है।

▪ रात भर उ़मूमी इस्पीकर के ज़रिए बयान और नात ख्वानी कर के मह़ल्ले वालों के आराम और राह़त में ख़लल डाला जाता है।

▪ माहे रजब, वाकिआ़ मेराज और शबे मेराज से मुतअ़ल्लिक बे बुनियाद, मन्घड़त और गै़र मौतबर इ़बादात और फ़ज़ाइल बयान किए जाते हैं, जिस की जितनी भी मज़म्मत (और बुराई) की जाए कम है।

इसी तरह इन के अ़लावा भी दीगर गै़र शरई़ उमूर (दूसरी शरीअ़त के खि़लाफ़ बातों) का इर्तिकाब किया जाता है।


➡️ यह सारी सूरते हा़ल इस बात का दर्स (सबक़) देती है कि सत्ताईस्वीं रजब को शबे मेराज के उ़न्वान से मुरव्वजा (राइज) जलसों और मह़फिलों का इनिइ़काद, शरई़ (और दीनी) ऐतिबार से का़बिले इस्लाह़ है और वाजिबुत्तर्क है, (यानी इन तमाम बातों की वजह से शबे मेराज के नाम से जलसे करना शरीअ़त के खि़लाफ है और उस को छोड़ना ज़रूरी है) उन से इज्तिनाब करना (और बचना) निहायत ही ज़रूरी है।

▫️ایسے جلسوں کی تردید کے لیے المدخل لابن الحاج مالکی، امداد الفتاویٰ اور فتاویٰ محمودیہ کا مطالعہ کرنا مفید رہے گا۔


✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फा़ज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा व तस्हील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

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