✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨
सिलसिला 45:
🌻 *हुज़ूर अक़दस ﷺ की तारीखे विलादत बा सआ़दत की मुफस्सल (आप की तारीखे पैदाइश की मुकम्मल) तह़क़ीक़:*
🌼 *हुज़ूर खातमुल अम्बिया ﷺ की विलादते मुबारका (आप की मुबारक पैदाइश) का साल:*
हुज़ूर अक़दस ह़बीबे खुदा, खातमुल अम्बिया ﷺ की विलादत बाबरकात (आप की पैदाइश) आ़मुल फील में हुई। आमुल फील से मुराद (और इस का मतलब) वह साल है, जिस साल अबरहा बादशाह ने हाथियों का लश्कर ले कर काबे पर हमला करने की नाकाम कोशिश की थी और अल्लाह तआ़ला ने कमज़ोर परिंदों के ज़रिए उन (लश्कर और बादशाह) को नेस्त व नाबूद (और ख़त्म) किया था, जिस का ज़िक्र सूरह। फील में है।
☀️ مستدرک حاکم میں ہے:
4180: عن سعيد بن جبير عن ابن عباس رضي الله عنهما قال: ولد النبي ﷺ عام الفيل.
☀️ المعجم الکبیر میں ہے:
12432: عن سعيد بن جبير عن ابن عباس رضي الله عنهما قال: ولد رسول الله ﷺ عام الفيل.
▪️امام بیہقی رحمہ اللہ نے ’’دلائلُ النُبُوَّۃ‘‘ میں اس بات پر اہلِ علم کا اتفاق نقل فرمایا ہے:
وَالَّذِي لَا يَشُكُّ فِيهِ أَحَدٌ مِنْ عُلَمَائِنَا أَنَّ رَسُولَ اللهِ ﷺ وُلِدَ عَامَ الْفِيلِ، وَبُعِثَ عَلَى رَأْسِ أَرْبَعِينَ سَنَةً مِنَ الْفِيلِ.
(باب العام الذي ولد فيه رسول الله ﷺ)
🌼 *हुज़ूर खातमुल अम्बिया ﷺ की विलादत बासआ़दत (आप की पैदाइश) का महीना:*
माहे रबीउ़ल अव्वल को यह अ़ज़ीमुश्शान (और महान फ़ज़ीलत व) शर्फ़ हासिल है कि इस (माह) में ह़बीबे खुदा खातमुल अम्बिया फखरे मोजूदात हुज़ूर अक़दस ﷺ दुनिया में जलवा अफ़रोज़ हुए (और आप तशरीफ़ लाए), यक़ीनन यह शर्फ़ और मक़ाम (और यह फ़ज़ीलत) किसी और महीने को हासिल नहीं, इस लिए इस हैसियत से माहे रबीउ़ल अव्वल को साल भर के तमाम महीनों पर फ़ज़ीलत व फोक़ियत हासिल है।
▪️ امام ابن عبد البر رحمہ اللہ نے ’’التمہید‘‘ میں اس بات پر اتفاق نقل فرمایا ہے:
وَلَا خِلَافَ أَنَّهُ وُلِدَ يَوْمَ الِاثْنَيْنِ بِمَكَّةَ فِي رَبِيع الْأَوَّلِ عَامَ الْفِيلِ، وَأَنَّ يَوْمَ الِاثْنَيْنِ أَوَّلُ يَوْمٍ أَوْحَى اللهُ إِلَيْهِ فِيهِ.
🌼 *हुज़ूर खातमुल अम्बिया ﷺ की विलादत बासआ़दत का दिन:*
हुज़ूर सरवरे काएनात ﷺ की मुबारक विलादत (पैदाइश) बरोज़ पीर (सोमवार को) हुई, जैसा कि सह़ीह अह़ादीस से साबित है।
▫️ सह़ीह मुस्लिम में ह़ज़रत अबू क़तादा अंसारी رضی اللہ عنہ से रिवायत है कि हुज़ूर अकरम ﷺ से पीर के दिन रोज़ा रखने के बारे में सवाल किया गया, तो आप ﷺ ने फ़रमाया: "पीर के रोज़ मेरी विलादत हुई और इसी रोज़ मुझे नबुव्वत अ़ता की गई [या पीर के रोज़ मुझ पर वही़ नाजि़ल की गई]"।
وَسُئِلَ ﷺ عَنْ صَوْمِ يَوْمِ الاِثْنَيْنِ، قَالَ ﷺ: «ذَاكَ يَوْمٌ وُلِدْتُ فِيهِ، وَيَوْمٌ بُعِثْتُ أَوْ أُنْزِلَ عَلَىَّ فِيهِ».
(صحیح مسلم کتاب الصيام حدیث: 2804)
इस से वाज़ेह़ तौर पर मालुम होता है कि हुज़ूर अक़दस ﷺ की विलादत बा-सआ़दत पीर के दिन हुई।
💐 *खुलासा: तीन मुत्तफक़ अ़लैह बातें (जिन में कोई इख्तिलाफ नहीं):*
इस तफसील से तीन बातें मालूम हुईं जिन पर उम्मत के अकाबिर अहले इ़ल्म का इत्तिफाक़ है (और किसी का इख्तिलाफ नहीं):
❶ हुज़ूर खातमुल अम्बिया ﷺ की विलादत बा-सआ़दत (पैदाइश) आ़मुल फील में हुई।(जिस साल अब्रहा बादशाह ने काबे पर हमले की कोशिश की थी और अल्लाह ने उस के लश्कर को कमज़ोर परिंदों से खतम किया था)
❷ हुज़ूर खातमुल अम्बिया ﷺ की विलादत बा-सआ़दत माहे रबीउ़ल अव्वल में हुई।
❸ हुज़ूर खातमुल अम्बिया ﷺ की विलादत बा-सआ़दत (आप की पैदाइश) पीर के रोज़ हुई।
مذکورہ بالا تین باتوں پر جمہور کا اتفاق اور اجماع ہےجیسا کہ:
☀️ ملا علی قاری رحمہ اللہ ’’مرقاۃ المفاتیح‘‘ میں فرماتے ہیں:
وُلِدَ عَامَ الْفِيلِ عَلَى الصَّحِيحِ الْمَشْهُورِ، وَادَّعَى الْقَاضِي عِيَاضٌ الْإِجْمَاعَ عَلَيْهِ، وَاتَّفَقُوا عَلَى أَنَّهُ وُلِدَ يَوْمَ الِاثْنَيْنِ فِي شَهْرِ رَبِيع الْأَوَّلِ. (بَابُ الْمَبْعَثِ وَبَدْءِ الْوَحْيِ)
☀️ امام ابن عبد البر رحمہ اللہ ’’التمہید‘‘ میں فرماتے ہیں:
وَلَا خِلَافَ أَنَّهُ وُلِدَ يَوْمَ الِاثْنَيْنِ بِمَكَّةَ فِي رَبِيع الْأَوَّلِ عَامَ الْفِيلِ، وَأَنَّ يَوْمَ الِاثْنَيْنِ أَوَّلُ يَوْمٍ أَوْحَى اللهُ إِلَيْهِ فِيهِ.
☀️ علامہ قاضی شوکانی رحمہ اللہ ’’تحفۃُ الاَحْوَذِی‘‘ میں فرماتے ہیں:
قَالَ ابْنُ الْجَوْزِيِّ فِي «التَّلْقِيحِ»: اِتَّفَقُوا عَلَى أَنَّ رَسُولَ اللهِ ﷺ وُلِدَ يَوْمَ الِاثْنَيْنِ فِي شَهْرِ رَبِيع الْأَوَّلِ عَامَ الْفِيلِ.
(بَابُ مَا جَاءَ فِي مِيلَادِ النَّبِيِّ ﷺ)
🌼 *हुज़ूर खातमुल अम्बिया ﷺ की तारीखे विलादत बा-बरकत (आप ﷺ की पैदाइश की तारीख):*
हुज़ूर खातमुल अम्बिया ﷺ की विलादते मुबारका से मुतअल्लिक़ साल, महीने और दिन के बारे में उम्मत के अहले इ़ल्म के इत्तिफाक़ के बाद (आप ﷺ की पैदाइश के साल, महीने और दिन में कोई इख्तिलाफ नहीं, लेकिन) इस बात में शदीद (सख्त) इख्तिलाफ है कि हुज़ूर खातमुल अम्बिया ﷺ की विलादत बा-सआ़दत की तारीख क्या थी? इस हवाले से उम्मत के ह़ज़राते अकाबिर के मुतअ़द्दिद अक़वाल (कई राए) हैं, जिस के नतीजे में रबीउ़ल अव्वल की 2, 8, 10, 12, 13, 14 तारीखें मिलती हैं।
1️⃣ इमाम नववी رحمہ اللہ ने "तहज़ीबुल असमा वल लुग़ात" में इस हवाले से चार मशहूर अक़वाल नक़ल फरमाए हैं: 2, 8, 10, 12 रबीउ़ल अव्वल:
واتفقوا على أنه ولد يوم الاثنين من شهر ربيع الأول، واختلفوا هل هو فى اليوم الثانى أم الثامن أم العاشر أم الثانى عشر، فهذه أربعة أقوال مشهورة.
(الترجمة النبوية الشريفة)
2️⃣ उम्मत के मशहूर मुअर्रिखीन और सीरत निगारों के दलाइल और तज्ज़िये मुलाह़ज़ा किये जाएं (सीरत लिखने वालों की दलीलें और तह़क़ीक़ देखी जाए) तो उन में से हर एक ने अपने तौर पर किसी एक तारीख़ को राजेह (और सही) क़रार दिया है जिसकी वजह से मुतअ़द्दिद अक़वाल (कई राए) सामने आते हैं, इन मज़कूरा अक़वाल में ज़्यादा तर रबी उल अव्वल की 2, 8, 10 या 12 तारीख़ को बाज़ या अक्सर हज़रात ने तरजीह दी (और सही कहा) है। बाज़ हज़रात ने रबी उल अव्वल की 12 तारीख़ को मशहूर क़ोल क़रार दिया है जैसा कि मुफ़्ती आज़म पाकिस्तान (साबिक़ मुफ्ती दारुल उ़लूम देवबंद) मुफ़्ती मुहम्मद शफ़ी साहब रहि़महुल्लाह ने "सीरत ख़ातम उल अम्बिया ﷺ" में तारीख़े विलादत से मुताल्लिक़ मज़कूरा बाला मुतअ़द्दिद अक़वाल नक़ल करके फ़रमाया कि मशहूर क़ोल बारहवीं तारीख़ का है।
जब्कि मुताद्दिद (कई) हज़रात ने रबी उ़ल अव्वल की 8 तारीख़ को तरजीह दी (और 8 तारीख को सही बतलाया) है।
▪ अ़ल्लामा अह़मद क़सतलानी रहिमहुल्लाह की किताब "अल मवाहिब" से एक अहम इक़्तिबास मुलाह़ज़ा फरमाएं:
"तारीखे विलादत से मुताल्लिक़ एक क़ोल 8 रबी उल अव्वल का है, शेख़ क़ुतुबुद्दीन क़सतलानी फरमाते हैं कि यही (8 तारीख का) क़ोल अक्सर मुह़द्दिसीन ने इख़्तियार फ़रमाया है, हज़रत इब्ने अब्बास और हज़रत जुबैर बिन मुतइ़म रज़ियल्लाहु अन्हुम से भी यही (8 तारीख) मन्क़ूल है, अहले तारीख़ व नसब ने भी इसको इख़्तियार किया है, अल्लामा हु़मैदी और उनके शेख़ इब्ने ह़ज़्म का भी यही क़ोल है, शेख़ कज़ाई़ ने "उ़यूनुल मआ़रिफ" में इस पर इज्मा (और सब का इत्तिफाक़) नक़ल किया है, इमाम ज़ुहरी ने इमाम मुहम्मद बिन जुबैर बिन मुतइ़म से यही (8 तारीख) रिवायत किया है, वो अ़रब के नसब के माहिर थे और उन्होंने अपने वालिद हज़रत जुबैर रज़ियल्लाहु अ़न्हु से यही बात रिवायत की है।"
☀️ المواهب اللدنية بالمنح المحمدية:
وقيل: لثمان خلت منه، قال الشيخ قطب الدين القسطلانى: وهو اختيار أكثر أهل الحديث، ونقل عن ابن عباس وجبير بن مطعم، وهو اختيار أكثر من له معرفة بهذا الشأن، واختاره الحميدى، وشيخه ابن حزم، وحكى القضاعى فى «عيون المعارف» إجماع أهل الزيج عليه، ورواه الزهرى عن محمد بن جبير بن مطعم، وكان عارفا بالنسب وأيام العرب، أخذ ذلك عن أبيه جبير. (آيات ولادته ﷺ)
3️⃣ शैखुत तफ़्सीर ह़ज़रत मौलाना इदरीस कांधलवी रहि़महुल्लाह अपनी शुहर-ए-आफ़ाक़ (मशहूर) किताब "सीरतुल मुस्तफा ﷺ" में फरमाते हैं:
"विलादत बा-सआ़दत की तारीख़ में मशहूर क़ोल तो ये है कि हुज़ूर पुर नूर सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम 12 रबी उ़ल अव्वल को पैदा हुए, लेकिन जुमहूर (और ज़्यादातर) मुह़द्दिसीन और मुअर्रिख़ीन के नज़दीक राजेह और मुख़्तार क़ोल (ज़्यादा सही राए) ये है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम 8 रबी उ़ल अव्वल को पैदा हुए"
🌼 *तम्बीह:*
मिसर के मशहूर माहिरे फल्कियात मह़मूद पाशा साहब ने 9 रबी उल अव्वल को तारीखे विलादत क़रार दिया जिसको मुफ़्ती आज़म पाकिस्तान मुफ्ती शफ़ी साहब रहिमहुल्लाह ने "सीरत ख़ातम उल अम्बिया ﷺ" में जुमहूर के ख़िलाफ़ बे सनद बात क़रार दिया है, और मशहूर मुहक़्क़िक़ नामवर फलकी हज़रत अक़दस मौलाना मूसा खान रूहानी बाज़ी साहब रहिमहुल्लाह ने भी "फल्कियाते जदीदा " में इसकी तरदीद फ़रमाई है।
🌼 *हुज़ूर ख़ातमुल अम्बिया सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की विलादते मुबारका की तारीख़ में इख़्तिलाफ़ क्यों??*
यहाँ ये शुबा पैदा (और एतिराज़) हो सकता है कि जब हुज़ूर ख़ातमुल अम्बिया ﷺ की ज़ाते बाबरकत इस क़द्र अज़ीमुश शान हस्ती है कि अल्लाह तआला के बाद आप ही का मर्तबा है : बाद अज़ ख़ुदा बुज़ुर्ग तूई क़िस्सा मुख़्तसर...
इसी तरह हज़राते सहाबा किराम जो कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम के जांनिसार (और आप ﷺ पर जान कुर्बान करने वाले) थे और हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हर एक अदा उन्होंने महफूज़ फ़रमाई तो फिर तारीख़े विलादत की दुरुस्त तअ़यीन (पैदाइश की तारीख तय) क्यों ना हो सकी?? तो इस शुबह के मुतअ़द्दिद (इस एतिराज़ के कई) जवाबात दिए गए हैं जिन में से एक दुरुस्त जवाब ये भी है कि इस इख़्तिलाफ़ की वजह ये है की हुज़ूर ख़ातमुल अम्बिया ﷺ की विलादते मुबारका की तारीख़ से मुतअल्लिक़ उम्मत का कोई शरई़ हुक्म वाबस्ता (जुड़ा हुआ) नहीं था इसलिए मिन जानिबिल्लाह (अल्लाह की तरफ़ से) इसकी हिफाज़त का एहतिमाम नहीं किया गया, साल भर की जिन तारीखों से शरीअत के अहकाम वाबस्ता थे तो उनसे मुतअल्लिक़ हुज़ूर अक़दस के इरशादात उम्मत के सामने हैं और उन तारीखों को महफूज़ रखने का एहतिमाम उम्मत ने बख़ूबी (अच्छी तरह) किया, लेकिन हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की विलादत की तारीख़ से मुतअल्लिक़ क़ुरआन व सुन्नत में कोई मख़सूस हुक्म नहीं मिलता इस लिए इस को महफूज़ रखने के लिए ख़ुसूसी इक़दामात (और खास तरीक़े) हज़राते सहाबा किराम की जानिब से इज्तिमाई तौर पर सामने नहीं आये और ना ही हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की जानिब से ऐसा कोई हुक्म दिया गया।
🌼 *हुज़ूर ख़ातम उल अम्बिया सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की तारीख़े विलादत में इख़्तिलाफ़ से वाज़ेह होने वाला एक अहम नुकता:*
मा क़ब्ल (ऊपर) की तफ़्सील से ये बात बखूबी वाज़ेह (और अच्छी तरह मालूम) हो जाती है कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की तारीखे विलादत की तअ़यीन में मुतअ़द्दिद अक़वाल हैं (आप ﷺ की पैदाइश की तारीख में अलग अलग राए हैं), ये इख़्तिलाफ़ खुद इस तरफ इशारा कर रहा है कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की तारीखे विलादत से मुताल्लिक़ ना तो हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम ने कोई हुक्म या फ़ज़ीलत बयान फ़रमाई, ना ही हज़राते सहाबा किराम में इस हवाले से किसी ख़ास अमल या जशन वग़ैरा का एहतिमाम था और ना ही हज़राते ताबिई़न किराम में ; क्योंकि अगर इस तारीख से मुतअल्लिक़ हुज़ूर अक़दस ﷺ, ह़ज़राते सह़ाब व ताबिई़ने किराम में कोई मख़सूस अ़मल या एहतिमाम या जशन वग़ैरा राइज होता, तो उम्मत में इस तारीख़े विलादत से मुताल्लिक़ इस क़दर इख़्तिलाफ़ ना होता। इस अहम नुकते (और इस खास प्वाइंट में) में हर मुसलमान के लिए बहुत बड़ा सबक़ है!! (तफ़्सील के लिए देखिए: इस्लाही खुतबात)
✍🏻: मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम
फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची
हिंदी तर्जुमा व तसहील:
अल्तमश आ़लम क़ासमी
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