सत्ताईस रजब और शबे मैराज के बारे में ग़लतफ़हमियां

 


✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨


सिलसिला नंबर 167:

📿 सत्ताईस रजब और शबे मेअ़राज से मुतअ़ल्लिक़ ग़लतफ़हमियां:

सत्ताईस रजब से मुतअ़ल्लिक़ मुतअ़द्दिद (कई) ग़लतियां और ग़लतफ़हमियां अ़वाम में राइज हैं, जैसे:

▪ सत्ताईस रजब को यक़ीनी तौर पर शबे मेअ़राज समझा जाता है।

▪ शबे मेअ़राज को फ़जी़लत और इ़बादत वाली रात समझा जाता है, और इसके खुद साख़ता (और मंनघड़त) इ़बादात और फ़ज़ाइल बयान किए जाते हैं।

▪ सत्ताईस रजब और शबे मेअ़राज में ख़ुसूसी तरीक़े से ख़ास नमाज़ अदा की जाती है।

▪ सत्ताईस रजब को शबे मेअ़राज क़रार देकर इसमें इसी उ़नवान से जलसे और मह़फ़िलें मुनअ़क़्किद की जाती हैं चरागां किया जाता है, मसाजिद और घरों को सजाया जाता है, और एक जशन का सा समां होता है।

▪ सत्ताईस रजब को ह़लवा, चावल या दीगर खाने पीने की चीजें तक़्सीम करने की रस्म अदा की जाती है।

▪ सत्ताईस रजब के रोज़े की ख़ुसूसी फ़जी़लत बयान की जाती है और इस की तरग़ीब दी जाती है। अलग़र्ज़ इस तरह़ की मुतअ़द्दिद बातें अ़वाम में राइज हैं जो कि दीनी तअ़लीमात के ख़िलाफ़ हैं। ज़ैल में इसकी तफ़्सील ज़िक्र की जाती है।


शेख़ उल इस्लाम ह़ज़रत मौलाना मुफ़्ती मुह़म्मद तकी़ उ़स्मानी साह़ब दामत बरकातुहुम फ़रमाते हैं कि:

27 रजब की शब के बारे में ये मशहूर हो गया है कि, ये शबे मेअ़राज है, और इस शब को भी इसी तरह़ गुजा़रना चाहिए जिस तरह़ शबे क़द्र गुजा़री जाती है और जो फ़जी़लत शबे क़द्र की है कम व बेश शबे मेअ़राज की भी वही फ़जी़लत समझी जाती है; बल्कि मैंने तो एक जगह ये लिखा हुआ देखा कि शबे मेअ़राज की फ़जी़लत शबे क़द्र से भी ज़्यादा है और फिर इस रात में लोगों ने नमाजों के भी ख़ास ख़ास तरीक़े मशहूर कर दिए कि, इस रात में इतनी रकआ़त पढ़ी जाएं और हर रकअ़त में फलां फलां सूरतें पढ़ी जाएं, ख़ुदा जाने क्या-क्या तफ़्सीलात इस नमाज़ के बारे में मशहूर हो गईं, ख़ूब समझ लीजिए: ये बे-असल बातें हैं, शरीअ़त में इनकी कोई असल और कोई बुनियाद नहीं।


❄️ शबे मेअ़राज की तायीन (फिक्स होने) में इख़्तिलाफ़:

सबसे पहली बात तो ये है कि 27 रजब के बारे में यकी़नी तौर पर नहीं कहा जा सकता कि, ये वही रात है जिस में नबी करीम ﷺ मेअ़राज पर तशरीफ़ ले गए थे; क्योंकि इस बाब में मुख़्तलिफ़ रिवायतें हैं, बाज़ रिवायतों से मालूम होता है कि आप रबी उ़ल अव्वल के महीने में तशरीफ़ ले गए थे, बाज़ रिवायतों में रजब का ज़िक्र है, और बाज़ रिवायतों में कोई और महीना बयान किया गया है, इसलिए पूरे यक़ीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि कौन सी रात सही़ मानों में मेअ़राज की रात थी जिसमें आप ﷺ मेअ़राज पर तशरीफ़ ले गए थे।


❄️ अगर यह फ़जी़लत वाली रात होती तो इसकी तारीख़ मह़फ़ूज़ होती:

इससे आप ख़ुद अंदाज़ा कर लें कि अगर शबे मेअ़राज भी शबे क़द्र की तरह़ कोई मख़सूस इ़बादत की रात होती और इसके बारे में कोई ख़ास अह़काम होते जिस तरह़ शबे क़द्र के बारे में हैं, तो इसकी तारीख़ और महीना मह़फ़ूज़ रखने का एहतिमाम किया जाता; लेकिन चूंकि शबे मेअ़राज की तारीख़ मह़फ़ूज़ नहीं, तो अब यकी़नी तौर से 27 रजब को शबे मेअ़राज क़रार देना दुरुस्त नहीं।


❄️ वही एक रात फ़जी़लत वाली थी:

और अगर बिल-फ़र्ज़ यह तस्लीम भी कर लिया जाए कि आप ﷺ 27 रजब को ही मेअ़राज के लिए तशरीफ़ ले गए थे, जिसमें यह अ़जी़मुश्शान वाक़िआ़ पेश आया और जिसमें अल्लाह तआ़ला ने नबी करीम ﷺ को ये मक़ामे क़ुर्ब अ़ता फ़रमाया और अपनी बारगाह में हा़ज़िरी का शर्फ़ बख़्शा और उम्मत के लिए नमाज़ों का तोह़फा भेजा, तो बेशक वही एक रात बड़ी फ़जी़लत वाली थी किसी मुसलमान को इस की फ़जी़लत में क्या शुबह हो सकता है; लेकिन ये फ़जी़लत हर साल आने वाली 27 रजब की शब को हासिल नहीं।


❄️ आपकी ज़िंदगी में 18/ मर्तबा शबे मेअ़राज की तारीख़ आई लेकिन:

फिर दूसरी बात ये है कि ये वाक़िआ़ मेअ़राज सन 5 नबवी में पेश आया यानी ह़ुज़ूर ﷺ के नबी बनने के पांचवे साल ये शबे मेअ़राज पेश आई, जिसका मतलब ये है कि इस वाक़िऐ के बाद 18/ साल तक आप ﷺ ने शबे मेअ़राज के बारे में कोई ख़ास ह़ुक्म दिया हो, या इसको मनाने का ह़ुक्म दिया हो, या इसको मनाने का एहतिमाम फ़रमाया हो, या इसके बारे में ये फ़रमाया हो कि इस रात में शबे क़द्र की तरह़ जागना ज़्यादा अज्र और सवाब का बाइ़स है, (लेकिन) ना तो आपका ऐसा कोई इरशाद साबित है, और ना आप के ज़माने में इस रात में जागने का एहतिमाम साबित है, ना ख़ुद आप जागे और ना आपने सहा़बा किराम रज़िल्लाहु अ़न्हुम को इसकी ताकीद फ़रमाई और ना सहा़बा किराम रज़िल्लाहु अ़न्हुम ने अपने तौर पर इसका एहतिमाम फ़रमाया।


❄️ उसके बराबर कोई अह़मक़ (और बेवक़ूफ़) नहीं:

फिर सरकारे दो आ़लम ﷺ के दुनिया से तशरीफ़ ले जाने के बाद तक़रीबन 100 साल तक सहा़बा किराम रज़िल्लाहु अ़न्हुम दुनिया में मौजूद रहे, इस पूरी सदी में कोई एक वाक़िआ़ साबित नहीं है जिसमें सहा़बा किराम रज़िल्लाहु अ़न्हुम ने 27 रजब को ख़ास एहतिमाम करके मनाया हो; लिहाज़ा जो चीज़ ह़ज़ूर अक़दस ﷺ ने नहीं की और जो चीज़ आपके सहा़बा किराम रज़िल्लाहु अ़न्हुम ने नहीं की, उसको दीन का ह़िस्सा क़रार देना या उसको सुन्नत क़रार देना या उसके साथ सुन्नत जैसा मामला करना बिदअ़त है, अगर कोई शख़्स ये कहे कि मैं [मआ़ज़ल्लाह] (अल्लाह की पनाह) ह़ुज़ूर अक़दस ﷺ से ज़्यादा जानता हूं कि कौन सी रात ज़्यादा फ़जी़लत वाली है या कोई शख़्स ये कहे कि सहा़बा किराम रज़िल्लाहु अ़न्हुम से ज़्यादा मुझे इ़बादत का ज़ोक़ (व शोक़) है, अगर सहा़बा किराम रज़िल्लाहु अ़न्हुम ने ये अ़मल किया तो मैं इसको करूंगा तो उसके बराबर कोई अह़मक़ (और बेवक़ूफ़) नहीं।


❄️ सह़ाबा किराम रज़ियल्लाहु अ़न्हुम से ज़्यादा दीन को जानने वाला कौन?

लेकिन जहां तक दीन का तअ़ल्लुक़ है, हकी़क़त ये है कि सहा़बा किराम रज़ियल्लाहु अ़न्हुम, ताबिई़न रह़िमहुमुल्लाह और तबे-ताबिई़न रह़िमहुमुल्लाह दीन को सबसे ज़्यादा जानने वाले, दीन को ख़ूब समझने वाले और दीन पर मुकम्मल तौर पर अ़मल करने वाले थे, अब अगर कोई शख़्स ये कहे कि मैं उनसे ज़्यादा दीन को जानता हूं, या उनसे ज़्यादा दीन का ज़ोक़ (व शौक़) रखने वाला हूं या उनसे ज़्यादा इ़बादत गुज़ार हूं, तो हक़ीक़त में वो शख़्स पागल है वो दीन की फ़हम (और समझ) नहीं रखता।


❄️ इस रात में इ़बादत का एहतिमाम बिदअ़त है:

लिहाजा़ इस रात में इ़बादत के लिए ख़ास एहतिमाम करना बिदअ़त है, यूं तो हर रात में अल्लाह तआ़ला जिस इ़बादत की तौफी़क़ दे दें वो बेहतर ही बेहतर है, लिहाज़ा आज की रात भी जाग लें, कल की रात भी जाग लें, इसी तरह़ फिर 27 वीं रात को भी जाग लें, लेकिन इस रात में और दूसरी रातों में कोई फ़र्क़ और नुमायां इम्तियाज़ (अलग से एहतिमाम) नहीं होना चाहिए। (اصلاحی خطبات:1/ 48 تا51)


📿 सत्ताईस रजब की रात को मेअ़राज से मुतअ़ल्लिक़ जलसा करने का ह़ुक्म:

मा क़ब्ल की (पिछली) तफ्सील से जब यह बात वाज़ेह़ हो गई कि ह़ज़राते अकाबिर के नज़दीक रजब की 27 तारीख ही को यकी़नी तौर पर शबे मेराज क़रार देना दुरुस्त नहीं, तो इस से बखूबी मालूम हो जाता है कि इस रात को शबे मेराज करार दे कर मेराज से मुतअ़ल्लिक जलसा और मह़फिलें मुन्अ़क़िद करना भी दुरुस्त नहीं; बल्कि दौरे हाज़िर में यह मुतअ़द्दिद (कई) माफासिद (और खराबियों) का सबब है: बहुत सी मसाजिद और मका़मात (जगहों) में इस रात (को) खुसूसियत के साथ जलसा मुन्अ़क़िद किया जाता है, मसाजिद और गलियों को सजाया जाता है, रात भर उ़मूमी इस्पीकर के ज़रिए बयान और नात ख्वानी कर के मह़ल्ले वालों के आराम और राह़त में ख़लल डाला जाता है, माहे रजब, वाकिआ़ मेराज और शबे मेराज से मुतअ़ल्लिक बे बुनियाद इ़बादात और फ़ज़ाइल बयान किए जाते हैं, और इसी तरह दीगर गै़र शरई उमूर (दूसरी शरीअ़त के खि़लाफ़ बातों) का भी इर्तिकाब किया जाता है; तो याद रहे कि यह भी गैर शरई (शरीअ़त के खिलाफ़) काम हैं, जिन से इज्तिनाब करना (और बचना) ज़रूरी है।

(تفصیل دیکھیے: امداد الفتاویٰ، فتاویٰ محمودیہ)


📿 वाक़िआ़ मेअ़राज का ह़क़ीक़ी दर्स:

वाक़िआ़ मेअ़राज की रात कोई ऐसी रात नहीं कि जिसको एक त्यौहार की सूरत देकर मनाने का एहतिमाम किया जाए؛ बल्कि होना ये चाहिए कि इस वाकि़आ़ मेअ़राज में पेश आने वाले वाकि़आ़त और मुशाहदात से हम सबक़ लें, उसके पैग़ाम को समझने की कोशिश करें, उस पूरे वाक़िऐ से जिन आ़माल को करने की अहमियत मालूम हो रही है, उनको सर अंजाम देने की कोशिश की जाए और जिन कामों से बचने की दावत दी गई है उनसे बचने की भरपूर कोशिश की जाए।


📿 27 रजब के रोजे़ की ह़क़ीक़त:

माहे रजब मैं बहुत से लोग 27 रजब के रोजे़ का ख़ुसूसी एहतिमाम करते हैं, उसको हजा़री का रोजा़ कहते हैं, और उसके मंघड़ंत फ़ज़ाइल भी बयान करते हैं, वाजे़ह़ रहे कि माहे रजब की 27 तारीख़ को रोज़ा रखने की ख़ास फ़जी़लत मोअ़तबर अह़ादीस से साबित नहीं, इसलिए इन ग़ैर मोअ़तबर फ़ज़ाइल की बुनियाद पर इस दिन रोज़ा रखना दुरुस्त नहीं, अलबत्ता चूंकि ये 27 तारीख़ माहे रजब के आ़म दिनों की तरह़ 1 दिन है, इसलिए इन बेबुनियाद और मनगढ़ंत बातों से बचते हुए अगर कोई शख़्स इसको रजब की आ़म तारीख़ समझते हुए इस दिन नफ़ली रोज़ा रख लेता है तो ये जाइज़ है इसमें कोई ह़र्ज नहीं, इसकी मज़ीद तफ़सील इस सिलसिला इस्लाह़े अग़लात के सिलसिला नंबर 164 में मुलाह़जा़ फ़रमाएं।

(تفصیلی عبارات کے لیے اصل مضمون (جو اردو میں ہے) کی طرف رجوع کیجیے: اصلاحِ اغلاط سلسلہ نمبر: 167)


✍🏻--- मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा, तल्खीस व तस्हील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

9084199927

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