मस्जिद में बच्चे कहां खड़े हों ?

 


मस्जिद में बच्चे कहां खड़े हों ?

‌ आज कल यह मसला भी बहुत अहम बना हुआ है कि मस्जिद में आने वाले बच्चे कहां खड़े हों, आया उन्हें अलग सफ़ (लाइन) में खड़ा किया जाए, या अपने साथ अपनी ही सफ़ (लाइन) में खड़ा किया जाए___________ सब से पहले तो यह बात याद रखने की है कि आज फ़ितनों भरे समाज-व-माहौल से निकल कर जो बच्चे मस्जिद आ रहे हैं हमें उन्हें क़द्र की निगाह से देखना चाहिए, मगर बजाय इस के उल्टा उन्हें डांटा जाता है, उन्हें मारा जाता है. 

   अगर बच्चे होने की वजह से कोई शरारत उन से हो ही जाए तो उन्हें समझाने, और मस्जिद की अहमियत बताने की ज़रूरत है, क्यूंकि याद रखिए कि आज के बच्चे ही भविष्य के नमाज़ी होंगे, कहीं ऐसा ना हो कि हमारे बदसुलूकी (डांटने या मारने) की वजह से वह मस्जिद से ही दूर हो जाएं, अगर हमारी इन हरकतों की वजह से किसी एक बच्चे ने भी अपना रुख मस्जिद से मोड़ लिया तो हमारे लिए आख़रत में दुश्वारियां न हो जाएं !

   बहर हाल आज कल‌ अगर बच्चे मस्जिद में आएं तो उन्हें कहां खड़ा करना चाहिए, कल मारुफ़ आलइमए-दीन हज़रत मौलाना इलयास नोमानी साहब ने इस सिलसिले में दारुल उलूम देवबंद के एक फ़तवे के इक़्तिबास (संकुचित हिस्से) को फ़ेसबुक पर शेयर किया, हज़रत के शुक्रिया के साथ आप सब तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं ! दारुल उलूम देवबंद के फ़तवे में कहा गया है कि :

             “मुनासिब (बेहतर) यह है, कि बच्चों की अलग सफ़ (लाइन) बनाने के बजाय उन के सरपस्तान (गार्जियन) वग़ैरह मर्दों की सफ़ में अपने बराबर खड़ा कर लिया करें, ताकि वह नमाज़ में कोई शरारत कर के अपनी या दूसरों की नमाज़ बर्बाद न करें !

    ऐसी सूरत में मर्दों की सफ़ में उन के खड़े होने से मर्दों की नमाज़ में कोई कराहत (कमी) न आए गी, ख्वाह पहली ही सफ़ क्यूं न हो !”

         मस्जिद में आने वाले बच्चों की ख़ुद भी क़द्र करें और अगर किसी दूसरे को उन्हें डांटते, मारते या भगाते हुए देखें तो उन्हें भी समझाएं और इस मसले से उन्हें भी आगाह कीजिए !


    वसी उल्लाह क़ासमी : ✍️

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