नौजवानों की इस्लाम से दूरी और हमारा क़ुसूर



जिस ट्रैप की फिक्र में हम दिन रात यहां फेसबुक पर लगे हुए हैं क्या वह वाकई ट्रैप है ?


जिस निकाह से तमाम तरह की बुराइयों का दरवाजा बंद होता है उस निकाह को 10,15 साल तक मुअख्खर करना और फिर बच्चे कोई गलत कदम उठा ले तो उसको ट्रैप का नाम देना क्या अकल में आने वाली बात है ?


10,12 साल की कच्ची उम्र में ही बच्चों को मल्टीमीडिया फोन दिला कर उनके बेजा अरमान पूरे करना और उनकी एक्टिविटीज पर नजर ना रखना, फिर जब वह उसका गलत इस्तेमाल कर ले तो उसे ट्रैप का नाम देना ठीक है?


बाजारों में, होटलों में यह जो बुर्के वालियां नजर आ रही है क्या यह दूसरे ग्रह की हैं इनके बाप और भाई कहां रहते हैं, घर में मर्दों के मौजूद होते हुए औरतों का बाजार जाकर सब्जी, फल, दवाई वगैरा खरीदना क्या उन मर्दों के बेगैरत होने की अलामत नहीं है ?


घर से वक्त बेवक्त निकलना और घंटो घंटो बाहर गुज़ारना क्या यह सब मां-बाप और भाइयों के इल्म में नहीं होता? या जानबूझकर इसको इग्नोर किए रहते हैं? या अपनी बहन बेटी पर अंधा यकीन होता है और दूसरे की बहन बेटी की पल-पल की खबर रखते हैं ?


इतने ख़तरात के बावजूद गैरों के साथ और उनके बीच पढ़ने वाली वाले मुस्लिम बहनें और बेटियां क्या इसी समाज की नहीं है? जब हर रोज खबरें मिल रही है तो फिर कॉलेज और यूनिवर्सिटीज में भेज करके ईमान का सौदा करने की जरूरत क्या है ?


शौकिया जॉब करने वालियों की बहुत बड़ी तादाद है और बहुत सारी जगह पर जॉब के नाम पर इस्तेमाल किया जाता है क्या उनके बाप भाई और शौहर दय्यूस हैं जो औरत की कमाई खा रहे हैं ?


एक बहुत बड़ी तादाद ऐसी है जिसकी सोच यह है कि मुसलमान लड़की अगर गैर मुस्लिम के साथ हरामकारी करे तो गलत है हां अगर हमारे साथ करे तो ठीक है तो सोचिए भला ये खैर ख्वाह हैं या यह खुद दरिंदे है ?


इसलिए दरअसल ट्रैप तो अपनी बेगैरती और दय्यूसपन को छुपाने का एक बहाना है वरना अगर मर्दों में गैरत हो और औरतों में हया हो तो कोई ट्रैप ऐसा नहीं कि जो मुसलमान से उसका ईमान छीन ले

✍️ Maulana Amir Siddiqui 

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