रमज़ान की रातें फुजू़ल कामों में गुज़ारने की इस्लाह़

 



✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨


सिलसिला नम्बर 1290:

🌻रमज़ान की रातें फुजू़ल चीज़ों में गुज़ारने की इस्लाह़

🌻 رمضان کی راتیں فضولیات میں گزارنے کی اصلاح


📿 माहे रमज़ान की मुबारक रातें फु़जू़लिय्यात में जाग कर गुजा़रने की इसलाह:

आजकल यह मिज़ाज आ़म होता जा रहा है कि बहुत से लोग माहे रमज़ान की मुबारक रातें फ़ुज़ूलिय्यात (फ़ुज़ूल चीज़ों) और गैर ज़रूरी कामों में जाग कर गुजा़र देते हैं कि या तो इन मुबारक रातों में मुख्तलिफ खेल खेले जाते हैं, या उन खेलों के लिए तमाशाई बना जाता है, या होटलों और पार्कों वगैरह में यह वक़्त गुजा़रा जाता है, या यह वक़्त मोबाइल की नज़र कर दिया जाता है, या इनके अलावा दूसरे फ़ुज़ूल कामों में यह वक़्त जा़ए (और बर्बाद) कर दिया जाता है।

यह मिज़ाज बहुत ही इस्लाह के का़बिल है, और इसका ग़लत होना इतना वाज़ेह़ और साफ़ है कि इस बारे में कुछ लिखने की ज़रूरत नहीं, लेकिन चूंकि नसीह़त मोमिन को फायदा देती है इसलिए यहां इस आ़दत की वजह से पैदा होने वाली ख़राबियों का मुख्तसर तज़्किरा किया जाता है ताकि पढ़ने वालों को फायदा हो।

मुलाह़ज़ा फरमाए:


1️⃣ माहे रमजा़न की मुबारक रातें फ़ुज़ूल चीज़ों और गै़र ज़रूरी कामों में जाग कर गुजा़रने की वजह से रातों की इ़बादात से मह़रूमी हो जाती है, हा़लांकि यह बहुत ही की़मती रातें हुआ करती हैं, जिनकी ज़्यादा से ज़्यादा क़दर करनी चाहिए और उनकी क़दर यही है कि उन्हें फ़ुज़ूल चीज़ों के बजाय जितना हो सके इ़बादतों में गुजा़रा जाए।


2️⃣ जो लोग माहे रमजा़न की रातें फ़ज़ूलिय्यात में गुजा़रते हैं तो इस बुरी आ़दत की वजह से वह लोग आमतौर पर दिन को ज़्यादा औका़त में सोए पड़े रहते हैं, जिसकी वजह से दिन की इ़बादात भी नसीब नहीं होतीं, गोया की रात फ़ुज़ूलिय्यात में बर्बाद हो गई और दिन सोते में गुजा़र दिया, दोनों ही सूरतों में रमजा़नुल मुबारक के क़ीमती लमह़ात से फायदा ना उठाया गया। यह किस कदर मह़रूमी की बात है! हा़लांकि माहे रमजा़न का तो लम्हा़ लम्हा़ क़ीमती है, इन लम्हा़त की बड़ी क़दर करने की जरूरत है।


3️⃣ माहे रमजा़न की मुबारक रातें फ़ुज़ूलिय्यात और ग़ैर ज़रूरी चीज़ों में जाग कर गुजा़रने की सूरत में काफी दफा गुनाहों का भी इर्तिकाब हो जाता है, यूं माहे रमजा़न के फ़जा़इल व बरकात से मह़रूमी के साथ-साथ रोजे़ का मक़सद भी छूट जाता है क्योंकि रोजे़ का मक़सद अपने अंदर तक़वा (और अल्लाह का डर) पैदा करना है और गुनाहों का करना इस मक़सद के खिलाफ है।

इसलिए हर उस मशग़ले से बचना चाहिए जिसकी वजह से गुनाहों में मुब्तला होने की नौबत आए, कि यह बड़े ही नुक़सान का सबब बन जाता है।


4️⃣ माहे रमजा़न की क़ीमती रातें फ़ुज़ूलिय्यात (और बेफ़ाएदा चीज़ों) में जाग कर गुजा़रने की वजह से बसा औका़त फ़ज्र की नमाज़ अदा करने की भी हिम्मत नहीं होती, जिसके नतीजे में बाज़ लोग फ़ज्र की नमाज़ का इंतिजा़र किए बगैर ही सो जाते हैं, इसी तरह बाज़ लोग फ़ज्र की जमात छोड़ देते हैं। इसका ग़लत और नुकसान दे होना कितना वाज़ेह़ और साफ है।


5️⃣ माहे रमजा़न की रातों में खेल खेलने में भी कई ख़राबियों का इर्तिकाब किया जाता है कि बसा औक़ात बाका़यदा जुवा और सट्टा लगाया जाता है और इस खेल की वजह से दूसरे लोग तकलीफ में भी मुब्तला हो जाते हैं।

इसी तरह इन मुबारक रातों में घरों के बाहर बैठकर गपशप लगाने की वजह से आसपास के घरवालों के आराम में भी ख़लल आ जाता है, यूं यह बुरी आ़दत बहुत सी मर्तबा कई कबीरा और बड़े गुनाहों का ज़रिया भी बन जाती है।


◾खुलासा यह कि माहे रमजा़न की रातें फ़ुज़ूल चीजो़ं में गुजा़रना नुक़सान और मह़रूमी का सबब बन जाता है, इसलिए इससे बचते हुए ज़्यादा से ज़्यादा माहे रमजा़न के मुबारक लम्ह़ों से फा़यदा उठाना चाहिए।


✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा व तस्हील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

🪀9084199927

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2 टिप्पणियाँ

  1. बहोत हि बेहतरीन पोस्ट है, सबको अमल करने की जरूरत है, अल्लाह पाक अमल करने की तौफीक दे, आमीन सुम्मा आमीन.

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