बच्चों की तरबियत क़िस्त: (3)
औलाद के नाम कैसे हों? पार्ट-3
अल्लाह तअ़ाला के पसंदीदा नाम अ़ब्दुल्लाह और अ़ब्दुर्रह़मान हैं।
ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मरؓ से रिवायत है कि ह़ुज़ूर अ़करम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
"إِنَّ أَحَبَّ أَسْمَائِكُمْ إِلَى اللَّهِ عَبْدُ اللَّهِ وَعَبْدُ الرَّحْمَنِ"
तर्जुमा: “तुम्हारे नामों में अल्लाह तअ़ाला को सबसे ज़्यादा मह़बूब और पसंदीदा नाम अ़ब्दुल्लाह और अ़ब्दुर्रह़मान हैं।”
(मुस्लिम शरीफ़, ह़दीस: 5587)
ह़ज़रत इराक़़ीؒ ने फ़रमाया कि सह़ाबा में से तीन सौ (300) सह़ाबा के नाम "अ़ब्दुल्लाह" थे।
(मनह़जुत-त़र्बियह़, सफ़ा: 67)
क्योंकि इन दोनों नामों में बंदे की अ़ब्दियत ग़ुलामी, आ़ज़िज़ी, फ़रमांबरदारी और अल्लाह की वह़दानियत व यक़त़ाई का इज़हार और ऐलान है।
(मआ़रिफ़ुल ह़दीस, जिल्द 6, सफ़ा 273, दारुल इशाअत कराची 2005ई॰)
और इस तरह के नामों से बार-बार अल्लाह की याद भी ताज़ा रहती है, और दीन व शरीअ़त की बुनियाद भी अल्लाह को ज़्यादा से ज़्यादा याद करने पर रखी गई है।
इसलिए ऐसे नामों को पसंद किया गया जिनमें अल्लाह का कोई सिफ़ाती नाम मौजूद हो,
ताकि बंदे की अ़ब्दियत और ग़ुलामी का इज़हार भी हो और अल्लाह का ज़िक्र भी हो।
(ह़ुज्ज़तुल्लाहिल-बालिग़ह़, जिल्द 2, सफ़ा 145)
इस तरह के नामों के पसंद किए जाने की एक और वजह़ है, जिसकी तरफ़ ह़कीमुल-इस्लाम ह़ज़रत शाह वलियुल्लाहؒ ने इश़ारा किया है — लिख़ते हैं:
इस तरह के नामों में काफ़िरों, बुत-परस्तों और बद्दीनों का मुक़ाबला भी है, क्योंकि कुफ़्फ़ार व मुश़रिक़ीन आज भी अपने बच्चों के नाम अपने बुतों, मअ़बदों, देवियों और देवताओं के नाम पर रखते हैं।
(ह़ुज्ज़तुल्लाहिल-बालिग़ह़, 2/145)
इसलिए अल्लाह के नाम पर नाम रखने से उनका मुक़ाबला हो जाता है।
इसी तरह वह नाम भी अच्छा है जो पैग़म्बरों के नाम पर रखा गया हो,
क्योंकि यह नाम पैग़म्बरों के नाम के साथ निस्बत व तअ़ल्लुक़़ को ज़ाहिर करता है।
ह़ुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया:
تَسَمَّوْا بِأَسْمَاءِ الْأَنْبِيَاءِ (अबू दाऊद: 4950)
यानी "(अपने बच्चों के) नाम अंबिया के नाम पर रखो।"
इसी तरह जब आप अपने बच्चों का नाम रखते हैं, तो किसी अह़ले-ख़ैर (और नेक) ह़ज़रात के नाम पर रखें,
ताकि आप अपने बच्चों को उन अक़ाबिर के सवानेह़ (जीवन-चरित) और बचपन के ह़ालात से आग़ाह़ करें,
ताकि बच्चे भी उनकी ज़िंदगी को सुनकर या पढ़कर वैसा बनने की कोशिश करें।
इसलिए बच्चों के नाम उ़लमा और सुलह़ा (नेक़ों) के मशवरे से रखना चाहिए,
क्योंकि नामों का असर बच्चों की शख़्सियत, किरदार और उनकी ज़िंदगी पर होता है।
(जारी है)
(बच्चों की तरबियत और उस के बुनियादी उसूल)
हिंदी अनुवाद व आसान रूप:
अल्तमश आ़लम का़समी

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