15 शअ़बान: ह़क़ीक़त, फ़ज़ीलत, आ़माल और ग़लत फ़हमियाॅं

 


✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨


सिलसिला नम्बर 202:

🌻 15 शअ़बान: ह़क़ीक़त, फ़ज़ीलत, आ़माल और ग़लत फ़हमियाॅं


📿 शबे बराअत की ह़क़ीक़त और फ़ज़ीलत:

माहे शअ़ब़ान की फ़ज़ीलत की एक बड़ी वजह ये भी है कि, इस में शबे बराअत जैसी अ़जी़मुश्शान रात पाई जाती है, ये पन्द्रहवीं शअ़ब़ान की रात होती है, अह़ादीसे मुबारकह से इस की बड़ी फ़ज़ीलत साबित है, दीगर रातों की तरह़ ये रात भी मग़रिब ही से शुरू हो जाती है। 

इस रात रह़मते ख़ुदावंदी की तजल्लियात आसमाने दुनिया तक उतर आती हैं। इस रात ख़ुसूसी तौर पर अल्लाह तआ़़ला अपने बंदों पर बख़्शिश रह़मत और महरबानियाँ नाज़िल फ़रमाता है, बंदों की दुआ़एं क़बूल करता है, माँगने वालों की मुरादें पूरी करता है और सवालियों की झोलियाँ भरता है, अल्लाह तआ़ला की इन ख़ुसूसी करम नवाज़ियों का सिलसिला पूरी रात जारी रहता है और सुबह़ सादिक़ पर इख़तिताम पज़ीर (ख़त्म) हो जाता है।

इस रात अल्लाह तआ़ला मह़ज़ अपने करम से मग़फ़िरत का आ़म ऐ़लान फ़रमाते हुए बे शुमार बंदों की बख़्शिश फ़रमा कर उन को जहन्नम से छुटकारा अ़ता फ़रमाता है। बराअत के मअ़ना नजात पाने के हैं, चूँकि इस रात अल्लाह तआ़ला बहुत से लोगों को जहन्नम से नजात देते हैं इस लिए इस को शबे बराअत कहा जाता है।


📿 मग़फ़िरत से मह़रूम चंद बद-नसीब लोग:

शबे बराअत मग़फ़िरत की अ़जी़मुश्शान रात है, लेकिन कुछ बद-नसीब ऐसे भी हैं जो इस अ़ज़ीम रात भी बख़्शिश से मह़रूम हो जाते हैं मआ़ज़ल्लाह, ऐसे बद-नसीबों का ज़िक्र मुख़्तलिफ़ अह़ादीसे मुबारकह में वारिद (आया) है:

▪ किसी मुसलमान के लिए दिल में बुग़्ज़ और कीना (अंदरूनी दुश्मनी) रखने वाला।

▪ रिश्तेदारी तोड़ने वाला।

▪ किसी मुसलमान को ना-ह़क़ क़त्ल करने वाला।

▪ बद-कार औ़रत।

▪ शिर्क और कुफ़्र करने वाला।

▪ वालिदैन का ना-फ़रमान।

▪ बअ़ज़ रिवायात में टख़ने छुपाने वाले मर्द और शराबी का भी ज़िक्र आया है।

इन अह़ादीसे मुबारकह का दर्स (सबक़) ये है कि इन गुनाहों से बचने की भरपूर कोशिश की जाए, और जो लोग इन गुनाहों में मुब्तला हैं वो इन से सच्ची तौबा कर लें, ताकि शबे बराअत को अल्लाह तआ़ला की मग़फ़िरत के ह़क़दार क़रार पाएं।

(شعب الایمان حدیث: 3557 ،3555 ،3548، سنن الترمذی حدیث: 739، مسند احمد حدیث: 6642، صحیح ابن حبان حدیث: 5665، شعبان وشب برأت کے فضائل و احکام از مفتی محمد رضوان صاحب دام ظلہم)


📿 शबे बराअत के आ़माल और इ़बादात:

शबे बराअत फ़ज़ीलत वाली रात है, इस रात उम्मत के बुज़ुर्गाने दीन इ़बादात का ख़ुसूसी एहतिमाम फ़रमाते रहे हैं, इस रात इ़बादात के लिए जागना अज्र और सवाब का बाइ़स है; इसलिए हर शख़्स को अपनी वुसअ़त के मुवाफ़िक़ (अपनी ताक़त के मुताबिक़) नवाफ़िल, ज़िक्र व तिलावत और दुआ़ओं वगैरह का एहतिमाम करने की सआ़दत हा़सिल करनी चाहिए। इख़लास के साथ रात का जिस क़दर भी ह़िस्सा इ़बादात में बसर करने का मौक़ा मयस्सर आ जाए तो फ़ज़ीलत की बात है; अलबत्ता इ़बादात का ये एहतिमाम मसाजिद के बजाए अपने घरों में होना चाहिए और यही अफ़ज़ल है, इसलिए मसाजिद में जमा होकर नफ़ली इ़बादात का एहतिमाम करना शरीअ़त के मिजा़ज के मुवाफ़िक़ नहीं।


साथ में ये वाज़ेह़ रहे कि शबे बराअत में क़ुरआन और सुन्नत से कोई भी मख़्सूस (खास) इ़बादत साबित नहीं, बल्कि इसमें आ़म इ़बादात जैसे नमाज़, तिलावत और दुआ़ओं का ही एहतिमाम करना चाहिए। आजकल बअ़ज़ ह़ज़रात ने इस रात के लिए मख़्सूस नमाज़ें और इ़बादात बना रखी हैं जिनका क़ुरआन और सुन्नत से कोई सबूत नहीं, उनसे इजतिनाब करना (बचना) ज़रूरी है, जैसा कि बअ़ज़ लोगों ने 15 शअ़बान यअ़नी शबे बराअत के ह़वाले से अपनी तरफ़ से एक नमाज़ ईजाद कर रखी है कि 2 या 4 रकआ़त इस तरह़ अदा करी जाएं कि पहली रकअ़त में सूरह फ़ातिह़ा के बाद फ़लां सूरत इतनी बार पढ़ी जाए, दूसरी रकअ़त में फ़लां सूरत इतनी बार पढ़ी जाए, तो वाज़ेह़ रहे कि ये भी शरीअ़त से साबित नहीं, इसी तरह़ बअ़ज़ लोग सलात्तुतस्बीह़ या कोई और नफ़्ल नमाज़ बा-जमाअ़त अदा करने का एहतिमाम करते हैं तो वाज़ेह़ रहे कि ये भी जाइज़ नहीं। इसलिए अपनी तरफ़ से किसी रात से मुतअ़ल्लिक़ फ़ज़ाइल बयान करना या इ़बादात ख़ास करना शरीअ़त के ख़िलाफ़ और बहुत बड़ा जुर्म है।



📿 शबे बरात में दुआ़ की क़बूलियत:

ह़ज़रत इमाम शाफिई़ रहि़महुल्लाह ने फ़रमाया कि:

"हमें यह बात पहुंची है कि पांच रातों में दुआ़ ज़्यादा क़बूल होती है, यानी: जुमा की रात, ई़दुल अज़हा़ की रात, ई़दुल फित्र की रात, माहे रजब की पहली रात और पंद्रह शाबान की रात।" आगे फरमाते हैं कि: "मैं इस को मुस्तह़ब क़रार देता हूं।"

☀ الأم للإمام الشافعي رحمه الله:

قَالَ الشَّافِعِيُّ: وَبَلَغَنَا أَنَّهُ كَانَ يُقَالُ: إنَّ الدُّعَاءَ يُسْتَجَابُ فِي خَمْسِ لَيَالٍ: فِي لَيْلَةِ الْجُمُعَةِ، وَلَيْلَةِ الْأَضْحَى، وَلَيْلَةِ الْفِطْرِ، وَأَوَّلِ لَيْلَةٍ مِنْ رَجَبٍ، وَلَيْلَةِ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ ..... قَالَ الشَّافِعِيُّ: وَأَنَا أَسْتَحِبُّ كُلَّ مَا حُكِيَتْ فِي هَذِهِ اللَّيَالِيِ مِنْ غَيْرِ أَنْ يَكُونَ فَرْضًا. (الْعِبَادَةُ لَيْلَة الْعِيدَيْنِ)



◾ यह बात ह़ज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर राजि़यल्लाहु अ़न्हुमा से भी मनकू़ल है, मुलाह़जा फरमाएं:

☀ مصنّف عبد الرزاق:

7927- قَالَ عَبْدُ الرَّزَّاقِ: وَأَخْبَرَنِي مَنْ سَمِعَ الْبَيْلَمَانِيَّ يُحَدِّثُ عَنْ أَبِيهِ، عَنِ ابْنِ عُمَرَ قَالَ: خَمْسُ لَيَالٍ لَا تُرَدُّ فِيهِنَّ الدُّعَاءَ: لَيْلَةُ الْجُمُعَةِ، وَأَوَّلُ لَيْلَةٍ مِنْ رَجَبٍ، وَلَيْلَةُ النِّصْفِ مِنْ شَعْبَانَ، وَلَيْلَتَيِ الْعِيدَيْنِ.

इस बात को ह़ज़रत इमाम शाफिई़ रहि़महुल्लाह ने भी क़बूल किया है, और इस की ताईद इस बात से भी होती है कि, शबे बरात अपनी ज़ात में भी इ़बादत और दुआ़ओं की क़बूलियत की रात है जैसा कि पीछे तफसील बयान हो चुकी,

इस से मालूम हुआ कि शरई़ हु़दूद में रहते हुए शबे बरात में दुआ़ व इ़बादात का एहतिमाम करना अफ़ज़ल और बेहतर है।


📿 शबे बराअत में क़ब्रिस्तान जाने का ह़ुक्म:

ह़ुज़ूर अक़दस ﷺ से ज़िन्दगी में सिर्फ़ एक बार इस रात क़ब्रिस्तान जाना साबित है, तो अगर क़ब्रिस्तान जाना इस रात के मुस्तक़िल आ़माल में से होता और सुन्नत या मुस्तह़ब होता तो यह अ़मल मुतअ़द्दिद (कई) बार साबित होता, और इसी तरह़ ह़ज़राते सहा़बा किराम से भी इसका मामूल साबित होता, हालांकि अह़ादीस से ऐसा कुछ भी साबित नहीं, इसलिए अगर कोई शख़्स 15 शअ़बान को ज़िंदगी में एक बार या कभी कभार ह़ुज़ूर अक़दस ﷺ की इत्तिबाअ़ की नियत से चला जाए तो यह दुरुस्त है, लेकिन 15 शअ़बान की रात क़ब्रिस्तान जाने को सुन्नत समझना या इस रात के आ़माल में से समझना या इसका ख़ुसूसी एहतिमाम करना या इज्तिमाई़ सूरत में जाना ह़त्ता कि क़ब्रिस्तान में चरागां (रौशनी और सजावट) करना, क़ब्रों पर फूल डालना, अरक़े गुलाब छिड़कना या इन जैसी दीगर बिदआ़त व रुसूमात सर-अंजाम देना, इन सब बातों की दीन में कोई ह़क़ीक़त नहीं, बल्कि अपनी तरफ़ से ईजाद करदह बिदआ़त हैं, जिनसे इज्तिनाब करना (बचना) निहायत ही ज़रूरी है।


📿 शबे बराअत में खाना तक़सीम करने का ह़ुक्म:

15 शअ़बान के दिन या रात में ख़ुसूसियत के साथ कोई ह़लवा, चावल वगैरह पकाने या तक़सीम करने का एहतिमाम करना क़ुरआन और सुन्नत से हरगिज़ साबित नहीं, बल्कि यह सब बातें अपनी तरफ़ से ईजाद करदह बिदआ़त हैं, इसलिए इससे इजतिनाब करना (बचना) ज़रूरी है।

اصلاحی خطبات، فتاویٰ محمودیہ)


📿 शबे बराअत में चरागां करना:

बअ़ज़ लोग इस रात मसाजिद, घरों और गली कूचों में चरागां (रौशनी और सजावट) करते हैं, वाज़ेह़ रहे कि यह भी ग़ैर शरई़ अ़मल है, इसलिए इससे इजतिनाब करना ज़रूरी है।


📿 15 शअ़बान का रोज़ा:

15 शअ़बान के रोज़े से मुतअ़ल्लिक़ ज़ख़ीरा ऐ अह़ादीस में सिर्फ़ एक ह़दीस ऐसी मिलती है जिससे रोज़ा रखना साबित होता है, और वह सुनने इब्ने माजा की ह़दीस है, लेकिन यह ह़दीस ज़ई़फ़ है। बअ़ज़ अहले इ़ल्म ने तो इस ह़दीस को क़बूल फ़रमाते हुए इस दिन रोज़ा रखने को मुस्तह़ब क़रार दिया है, जबकि दीगर अहले इ़ल्म फ़रमाते हैं कि मह़ज़ एक ज़ई़फ़ ह़दीस की वजह से ख़ुसूसियत के साथ 15 शअ़बान के रोज़े को सुन्नत या मुस्तह़ब क़रार नहीं दिया जा सकता, अलबत्ता अगर कोई शख्स इस दिन रोज़ा रखना चाहे तो बेहतर यह है कि अय्यामे बीज़ यअ़नी 13, 14, 15 शअ़बान के तीन रोज़े रखे जाएं, क्योंकि हर इस्लामी महीने की इन तारीखो़ं को रोज़े रखने की बड़ी फ़ज़ीलत है, तो इस तरह़ उनके ज़िम्न में 15 शअ़बान का रोजा़ भी आ जाता है, या सिर्फ़ 15 शअ़बान का रोजा़ इस नियत से रखा जाए कि वैसे भी शअ़बान के महीने में रोज़े रखना बड़ी फ़ज़ीलत की बात है तो यह 15 शअ़बान भी इन्हीं में से एक दिन है और आय्यामे बीज़ में से भी है, तो यह भी दुरुस्त है, अलबत्ता इस दिन को कोई ख़ास फ़ज़ीलत देना साबित नहीं।


✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा इख़्तिख़ार व तस्हील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

🪀9084199927

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