पांच मन्घड़त रिवायतें

 

📿 पांच मन्घड़त रिवायतें

अ़वाम में कई ऐसी रिवायतें मशहूर हैं, जिन का कोई मौतबर सुबूत नहीं मिलता; जै़ल में ऐसी पांच मन्घड़त रिवायतें मुलाह़जा़ फरमाएं:


▪️ रिवायत ❶:

हुज़ूर अक़दस ﷺ से पूछा गया कि कौनसा घर सब से अफ़ज़ल है? तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने फ़रमाया कि: "वो घर जिस में मैं मौजूद हूं।" फिर पूछा गया कि इस के बाद कौन सा घर अफ़ज़ल है? तो फ़रमाया कि: "फिर वो घर अफ़ज़ल है जिस में से कोई शख्स अल्लाह तआ़ला के रास्ते में निकले।"


(इस रिवायत को दूसरे अंदाज़ से भी ज़िक्र किया जाता है, मसलन इस तरह़ कि: एक बार हुज़ूर अक़दस ﷺ ने ह़ज़रत आ़यशा رضی اللہ عنہا से पूछा कि: बताओ किस का घर सब से अफ़ज़ल है? ह़ज़रत आ़यशा رضی اللہ عنہا ने जवाब में फ़रमाया कि: "मेरा घर सब से अफ़ज़ल है क्यूंकि इस में आप मौजूद हैं।" तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने फ़रमाया कि: "नहीं; बल्कि वो घर सब से अफ़ज़ल है जिस में से कोई शख्स अल्लाह तआ़ला के रास्ते में निकला हुआ हो।")


▪️ हुक्म:

इस रिवायत का कोई सुबूत नहीं मिलता, बल्कि यह मंघड़त है।


▪️ रिवायत ❷:

क़यामत के दिन दावत व तबलीग़ का काम करने वालों की कुर्सियां अम्बिया किराम علیہم السلام के साथ होंगी, फर्क़ सिर्फ यह होगा कि उन की कुर्सियों पर मुहरे नुबुव्वत नहीं होगी।


▪️ हुक्म:

मज़्कूरा रिवायत का भी कोई सुबूत नहीं मिलता।


▪️ रिवायत ❸:

जिस ने भंग पिया उस ने गोया सत्तर बार काबे को गिराया, सत्तर मुक़र्रब फरिश्तों को क़तल किया, सत्तर अम्बिया किराम को शहीद कर डाला, सत्तर क़ुरआनों को जला डाला, खुदा की तरफ़ सत्तर पत्थर फेंके, और वो शराबी, सूदखोर, जा़नी और चुग़लखोर के मुक़ाबले में खुदा की रह़मत से ज़्यादा दूर है।


▪️ हुक्म:

भंग जैसी नशा आवर चीज़ का नजायज़ होना अपनी जगह, लेकिन मज़्कूरा रिवायत मन्घड़त है।


▪️ रिवायत ❹:

काला लिबास ना पहनो, क्यूंकि यह फिरौन का लिबास है।


▪️ हुक्म:

यह रिवायत मंघड़त है, अलबत्ता यह शिया की मौतबर किताबों में मौजूद है और उन (शियों) के खिलाफ़ हु़ज्जत और दलील भी बन जाती है।


▪️ रिवायत ❺:

जब हज़रत फातिमा رضی اللہ عنہا का निकाह़ होने लगा तो उन्होंने दिरहमों में महर लेने से इंकार किया, तो अल्लाह तआ़ला ने ह़ज़रत जिबरील علیہ السلام को भेजा और उन के ज़रिए ह़ज़रत फातिमा رضی اللہ عنہا को एक कागज़ पर लिखा यह पैगाम दिया कि: मैं ने फातिमा का महर उम्मते मुह़म्मदिया की शफाअ़त मुक़र्रर कर दिया है।

यह कागज़ ह़ज़रत फातिमा رضی اللہ عنہا के पास मह़फूज रहा और उन्होंने यह वसिय्यत की थी कि ये कागज़ मेरे साथ क़बर में दफन कर दिया जाए।


▪️ हुक्म:

यह रिवायत साफ़ तौर पर मन्घड़त होने के साथ साथ उन सही अहा़दीस के भी खिलाफ है, जिन में ह़ज़रत फातिमा‌ رضی اللہ عنہا का महर मज़्कूर है, जो कि महरे फातिमी के नाम से मशहूर है।


➡️ ख़ुलासा:

मज़कूरा (ऊपर जिक्र की गईं) पांच रिवायतों का कोई मौतबर सुबूत नहीं मिलता, इस लिए इन को बयान करने और फ़ैलाने से बचना ज़रूरी है।


❄️ अहादीस बयान करने में सख़्त एहतियात की ज़रूरत:

आजकल बहुत से लोग अहा़दीस के मुआ़मले में कोई एह़तियात नहीं करते, बल्कि कहीं भी ह़दीस के नाम से कोई बात मिल गई, तो मुस्तनद और मौतबर अहले इ़ल्म से उस की तहकी़क किए बगैर ही उस को ह़दीस का नाम दे कर बयान कर देते हैं, जिस के नतीजे में उम्मत में बहुत सी मन्घड़त रिवायतें आ़म हो जाती हैं।


इस लिए अहा़दीस के मुआ़मले में बहुत ही ज़्यादा एह़तियात की ज़रूरत है;

क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ की तरफ़ किसी बात को ग़लत मन्सूब करना यानी जो बात आप ﷺ ने नहीं फरमाई, उस के बारे में यह कहना कि यह रसूलुल्लाह ﷺ का फरमान है बड़ा सख़्त गुनाह है।


सही बुखारी की रिवायत है, नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:

जिस ने मुझ पर जानबूझ कर झूठ बोला, वो अपना ठिकाना जहन्नम बना ले।

110- عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ عَنِ النَّبِيِّ ﷺ قَالَ: «...وَمَنْ كَذَبَ عَلَيَّ مُتَعَمِّدًا فَلْيَتَبَوَّأْ مَقْعَدَهُ مِنَ النَّارِ».


❄️ गैर साबित (और बे असल) रिवायतों के बारे में एक ग़लत फहमी का इज़ाला:

बंदे ने (यानी ह़ज़रत मुफ्ती मुबीनुर्रहमान साहब दामत बरकातुहुम ने) एक रिवायत के बारे में एक साह़ब को जवाब देते हुए यह कहा कि: यह रिवायत साबित नहीं, तो उन्हों ने अ़र्ज़ किया कि इस का कोई ह़वाला दीजिए! तो बंदे ने उनसे अर्ज़ किया कि:

ह़वाला तो किसी रिवायत के मौजूद होने का दिया जा सकता है, अब जो रिवायत अहा़दीस और सीरत की किताबों में मौजूद ही ना हो, तो उस का ह़वाला कहां से पेश किया जाए?!


जा़हिर है कि हवाला तो किसी रिवायत के मौजूद होने का होता है, रिवायत के ना होने का तो कोई ह़वाला नहीं होता। इस लिए हमारे लिए यही दलील काफ़ी है कि यह रिवायत मौजूद नहीं।

बाक़ी जो ह़जरात इस रिवायत के साबित होने का दावा करते हैं, तो उसूली तौर पर हवाला और सुबूत भी उन्ही के जि़म्मे है, इस लिए उन्हीं से ह़वाला और सुबूत तलब करना चाहिए।


तअ़ज्जुब की बात ये है कि जो ह़जरात किसी गै़र साबित (और बे असल) रिवायत को बयान करते हैं, उन से तो हवाला और सुबूत तलब नहीं किया जाता; लेकिन जो यह कहे कि यह साबित नहीं, तो उन से हवाले और सुबूत का मुतालबा किया जाता है! किस क़दर अजीब बात है यह! ऐसी रविश (और आ़दत) अपनाने वाले ह़जरात को अपनी इस आदत की इसलाह करनी चाहिए और उन्हीं से हवाला और सुबूत तलब करना चाहिए कि जो किसी रिवायत को बयान करते हैं या उस के साबित होने का दावा करते हैं।


अलबत्ता अगर हवाले से मुराद यह हो कि किसी मुह़द्दिस या इमाम का कौ़ल पेश किया जाए, जिन्हों ने इस रिवायत के बारे में साबित ना होने या बे असल होने का दावा किया हो, तो मजी़द इत्मीनान और तसल्ली के लिए यह मुतालबा माकूल और दुरुस्त है, इस में कोई ह़रज नहीं, लेकिन हर रिवायत के बारे में किसी मुहद्दिस और इमाम का कौ़ल मिलना भी मुश्किल होता है; क्योंकि गुज़रते ज़माने के साथ नई नई मन्घड़त रिवायतें ईजाद होती रहती हैं, इस लिए अगर कोइ मुस्तनद (और मौतबर) आ़लिम तहकी़क के बाद यह दावा करे कि ये रिवायत या वाकि़आ़ साबित नहीं और वो उस के साबित ना होने पर किसी मुहद्दिस या इमाम का कौल पेश ना कर सके, तो इस का यह मतलब हरगिज़ नहीं होता कि उन का यह दावा गैर मौतबर (और गलत) है, क्योंकि मुमकिन है कि किसी इमाम या मुहद्दिस ने उस रिवायत के बारे में कोई कलाम ही ना किया हो, बल्कि यह बाद की ईजाद हो, ऐसी सूरत में भी उस रिवायत को साबित मानने वाले ह़ज़रात की यह जि़म्मेदारी बनती है कि वो उस रिवायत का मौतबर ह़वाला और सुबूत पेश करें।

और जब तह़की़क़ के बाद भी उस रिवायत के बारे में कोई भी सुबूत ना मिले, तो ये उस रिवायत के साबित ना होने के लिए काफ़ी है।


➡️ एक अहम नुकता:

मन्घड़त और बे असल रिवायतों के बारे में एक अहम नुकता यह समझ लेना चाहिए कि अगर कोई रिवायत वक़िअ़तन (ह़क़ीक़त में) बे असल, मन्घड़त और गैर मौतबर है, तो वो किसी मशहूर खतीब और बुज़ुर्ग के बयान करने से मौतबर नहीं बन जाती।


इस अहम नुकते से उन लोगों की गलती मालूम हो जाती है कि जब उन्हें कहा जाए कि यह रिवायत मन्घड़त या गैर मौतबर है, तो जवाब में यह कह देते हैं कि यह कैसे मन्घड़त है, हालांकि यह मैंने फलां मशहूर बुज़ुर्ग या खतीब से सुनी है।


जा़हिर है कि किसी ह़दीस के का़बिले क़बूल होने के लिए यह कोई दलील नहीं बन सकती कि मैंने फलां आ़लिम या बुज़ुर्ग से सुनी है; बल्कि रिवायत को तो हदीस के उसूल के मैयार पर परखा जाता है।


खुलासा यह कि गलती तो बड़े से बड़े बुज़ुर्ग और आ़लिम से भी हो सकती है कि वो ला-इ़लमी और अनजाने में कोई मन्घड़त रिवायत बयान कर दें, अलबत्ता उन की इस गलती और भूल की वजह से कोई मन्घड़त और गैर मौतबर रिवायत मौतबर नहीं बन जाती, बल्कि वो बदस्तूर मन्घड़त और बे असल ही रहती है।


✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा व तस्हील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

🪀9084199927

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