🌼 *शादीशुदा मर्द हज़रात जरूर पढ़ें...!*
हमारे घर के करीब एक बेकरी है , अक्सर शाम के वक्त काम से वापसी पर मैं वहां से सुबह नाश्ते के लिए कुछ सामान लेकर घर जाता हूं, आज जब सामान के लिए बेकरी से बाहर निकल रहा था कि हमारे पड़ोसी इरफान भाई मिल गए.... वह भी बेकरी से बाहर आ रहे थे, मैं ने सलाम दुआ की और पूछा.
क्या ले लिया इरफान भाई.?
कहने लगे.. "कुछ नहीं हनीफ भाई!
वह चिकन पेटिस थे और जलेबीयां थी.. बेगम और बच्चों के लिए"
मैं ने हंसते हुए कहा.... "क्यों भाभी ने खाना नहीं पकाया"
कहने लगे.. नहीं....नहीं, हनीफ़ भाई!
यह बात नहीं है... दरअसल आज दफ्तर में शाम के वक्त कुछ भूख लगी थी तो साथियों ने चिकन पेटिस और जलेबियां मंगवाई.... मैंने वहां खाए थे तो सोचा बेचारी घर में जो बैठी है वह कहां खाने जाएंगी, उसके लिए भी ले लूं,... यह तो मुनासिब न हुआ ना के मैं खुद तो ऑफिस में जिस चीज का दिल चाहे वह खा लूं, और बीवी बच्चों से कहूं कि वह जो घर में पके सिर्फ वही खाएं...
मैं हैरत से उनका मुंह टकने लगा, क्योंकि मैंने आज तक इस अंदाज से न सोचा था..
मैंने कहा इसमें हर्ज ही क्या है इरफान भाई, आप अगर दफ्तर में कुछ खाते हैं तो भई ... , भाभी और बच्चों को घर में जिस चीज का दिल होगा, खाते होंगे.
वह कहने लगे नहीं-नहीं हनीफ़ भाई, वह बेचारी तो इतनी सी चीज भी होती है मेरे लिए अलग रखती है.... यहां तक के अड़ोस पड़ोस से भी अगर किसी के घर से कोई चीज आती है तो उसमें से पहले मेरा हिस्सा रखती है, बाद में बच्चों को देती है... अब यह तो खुदगर्जी हुई ना कि मैं वहां दोस्तों में गुलछर्रे उड़ाऊँ....।
मैंने हैरत से कहा...: गुलछर्रे उड़ाऊं!!?
... यह चिकन पेटिस .... यह जलेबीयां ... यह गुलछर्रे उड़ाना है इरफान भाई ??
इतनी मामूली सी चीजें!!
वह कहने लगे कुछ भी है हनीफ़ भाई, मुझे तो डर लगता है कि आखिरत में कहीं मेरी इसी बात पर पकड़ ना हो कि किसी की बहन बेटी ब्याह के लाए थे... खुद दोस्तों में मजे कर रहे थे और वह बेचारी घर में बैठी दाल खा रही थी...
मैं हैरत से उन्हें देखता रहा और.... वह बोले जा रहे थे........
हम जो किसी की बहन बेटी ब्याह के लाते हैं ना!! वह भी हमारी तरह इंसान होती है, उसे भी भूख लगती है, उसकी भी इच्छाऐं होती है, उसका भी दिल करता है तरह तरह की चीजें खाने का, पहनने और ओढ़ने का, घूमने फिरने का... उसे घर में परिंदों की तरह बंद कर देना और दो वक्त की रोटी दे कर इतराना के बड़ा तीर मारा... यह इंसानियत नहीं खुदगर्जी है।
और फिर हम जैसा दूसरे की बहन और बेटी के साथ करते हैं, वही हमारी बहन और बेटी के साथ होता है।
उनके आखरी जुमले ने मुझे हिला कर रख दिया, मैंने तो आज तक इस अंदाज से सोचा ही नहीं था।
मैंने कहा : आफरीन है इरफान भाई ! आपने मुझे सोचने का एक नया जाविया दिया, मैं वापस पलटा तो वह बोले...
"आप कहां जा रहे हैं?"
मैंने कहा : आइसक्रीम लेने, वह आज दोपहर में ऑफिस में आइसक्रीम खाई थी।
( किताब चेहरा से साभार)
بہ شکریہ مفتی سراج سیدات
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