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🌻جانور ذبح کرنے کے احکام وآداب
🌻 जानवर ज़िबह़ करने के अह़काम व आदाब
📿 ज़िबह़ के बारे में मसाइल जानने की अहमियत:
जानवर ज़िबह़ करने से पहले ज़िबह़ से मुतअ़ल्लिक़ मसाइल को जानना ज़रूरी है; ताकि जानवर को सह़ी तरीक़े से ज़िबह़ किया जा सके और ज़िबह़ के बारे में मुआ़शरे में राइज ग़लतियों और ग़लत-फ़हमियों को खत्म किया जा सके।
आजकल बहुत से लोग मसाइल सीखने का एहतिमाम नहीं करते, जिसकी वजह से वो नज़रियाती और अ़मली तौर पर कइ ग़लतियों और शरीअ़त के ख़िलाफ़ कामों के मुर्तकिब हो जाते हैं।
📿 ज़िबह़ के इस्लामी तरीके़ की ख़ूबी:
इस्लाम ने जानवर ज़िबह़ करने के बारे में जिन अह़काम और तरीक़े कार की तालीम दी है, उन में जानवर का भरपूर लिहाज़ रखा गया है और इस बात का ख़ुसूसी ख़्याल रखा गया है कि, जानवर को तकलीफ़ कम से कम हो; इस तरीक़े से बंदों को एक पाकीज़ा और तय्यिब रिज़्क़ ह़ासिल होता है। और ये ख़ूबी सिर्फ़ और सिर्फ़ इस्लामी तालीमात की खा़सियत है।
☀ سنن ابی داود میں ہے:
2817- حَدَّثَنَا مُسْلِمُ بْنُ إِبْرَاهِيمَ: حَدَّثَنَا شُعْبَةُ عَنْ خَالِدٍ الْحَذَّاءِ عَنْ أَبِى قِلَابَةَ عَنْ أَبِى الأَشْعَثِ عَنْ شَدَّادِ بْنِ أَوْسٍ قَالَ: خَصْلَتَانِ سَمِعْتُهُمَا مِنْ رَسُولِ اللهِ ﷺ: «إِنَّ اللهَ كَتَبَ الإِحْسَانَ عَلَى كُلِّ شَىْءٍ، فَإِذَا قَتَلْتُمْ فَأَحْسِنُوا -قَالَ غَيْرُ مُسْلِمٍ: يَقُولُ: «فَأَحْسِنُوا الْقِتْلَةَ»-، وَإِذَا ذَبَحْتُمْ فَأَحْسِنُوا الذَّبْحَ، وَلْيُحِدَّ أَحَدُكُمْ شَفْرَتَهُ، وَلْيُرِحْ ذَبِيحَتَهُ».
📿 ज़िबह़ करते वक़्त जानवर को बे-जा तकलीफ़ देने की मनाही:
इस बात का ख़ुसूसी एहतिमाम होना चाहिए कि, जानवर के साथ नरमी और रह़म दिली का मामला किया जाए और उस को किसी भी मामले में बे-जा इज़ाफ़ी (बिला वजह ज़्यादा) तकलीफ़ ना दी जाए, इसलिए हर उस अ़मल से बचा जाए कि जो जानवर के लिए बे-जा इज़ाफ़ी (बिला वजह ज़ाइद) तकलीफ़ का ज़रिया हो।
जैसा कि ह़दीस शरीफ में आता है कि ह़ुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: "जो शख़्स ज़बीह़ा [यअ़नी ज़िबह़ किये जाने वाले जानवर] के साथ रह़मदिली का मामला करता है, तो अल्लाह तआ़ला क़यामत के दिन उस पर रह़म फ़रमाएगा।"
☀ المعجم الکبیر للطبرانی میں ہے:
7913- حَدَّثَنَا عَبْدُ اللهِ بْنُ أَحْمَدَ بْنِ حَنْبَلٍ: حَدَّثَنِي رَوْحُ بْنُ عَبْدِ الْمُؤْمِنِ الْمُقْرِئُ، ح: وَحَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ اللهِ الْحَضْرَمِيُّ: حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ أَبِي رَجَاءَ الْعَبَّادَانِيُّ: حَدَّثَنَا سَلَمَةُ بْنُ رَجَاءٍ عَنِ الْوَلِيدِ بْنِ جَمِيلٍ، عَنِ الْقَاسِمِ، عَنْ أَبِي أُمَامَةَ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ ﷺ: «مَنْ رَحِمَ ذَبِيحَةً رَحِمَهُ اللهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ».
मज़कूरह ह़दीस पर अ़मल करते हुए दर्ज ज़ेल (निम्नलिखित) बातों से बचना चाहिए:
1️⃣ जानवर को ज़िबह़ की जगह ले जाते हुए ह़त्तल इम्कान (जहां तक हो सके) नरमी और आहिस्तगी का मुज़ाहरा करना चाहिए, बिला ज़रूरत घसीट कर ले जाना मना है; क्योंकि यह बे-जा तकलीफ़ का बाइ़स है।
2️⃣ जानवर को ज़िबह़ के लिए लिटाते हुए भी ह़त्तल इम्कान (जितना हो सके) नरमी और आहिस्तगी का मुज़ाहरा करना चाहिए।
3️⃣ एक जानवर के सामने दूसरा जानवर ज़िबह़ करने से भी बचना चाहिए; क्योंकि यह उस जानवर के लिए तकलीफ़ का बाइ़स है; अलबत्ता अगर कोई उ़ज़्र हो तो उस सूरत में इस में कोई ह़र्ज नहीं।
4️⃣ जानवर के सामने छुरी तेज़ करना या जानवर को लिटाने के बाद छुरी तेज़ करना भी मना है; सही़ तरी़का यही है कि जानवर ज़िबह़ करने से पहले ही जानवर से छुपा कर छुरी अच्छी तरह़ तेज़ कर ली जाए।
5️⃣ कुंद (बग़ैर धार वाली इसी तरह़ कम धार वाली) छुरी से ज़िबह़ करना मना है; क्योंकि (यह) ज़ाइद तकलीफ़ का ज़रिया है, इसलिए ज़िबह़ करने के लिए छुरी अच्छी तरह़ तेज़ कर लेनी चाहिए।
6️⃣ क़ुर्बानी के जानवर को ज़िबह़ से पहले भूखा प्यासा रखना भी दुरुस्त नहीं; बल्कि बेहतर यह है कि उस को ख़ूब खिलाया पिलाया जाए। (فتاوی عالمگیری، بدائع الصنائع، رد المحتار)
📿 ज़िबह़ करते वक़्त जानवर को क़िब्ला रुख़ करने का ह़ुक्म:
ज़िबह़ करते वक़्त जानवर को क़िब्ला रुख़ कर लेना सुन्नत है, इसी तरह़ ज़िबह़ करने वाले का क़िब्ला रुख़ होना भी सुन्नत है, इन दोनों बातों का ख़ुसूसी एहतिमाम होना चाहिए, लेकिन अगर किसी उ़ज़्र की वजह से क़िब्ला रुख़ होना मुश्किल हो, तो जिस तरफ़ सहूलत हो सके, उसी तरफ़ जानवर को ज़िबह़ कर लिया जाए। (بدائع الصنائع، بحوث فی قضایا فقہیہ معاصرہ)
📿 दाएं हाथ से ज़िबह़ करने का ह़ुक्म:
जानवरों को दाएं हाथ से ज़िबह़ करना सुन्नत है, और ज़रूरत पड़े तो बाएं हाथ से मदद ली जा सकती है; अलबत्ता अगर दाएं हाथ से ज़िबह़ करने में मुश्किलात हो, तो ऐसी सूरत में बाएं हाथ से ज़िबह़ करने में भी कोई ह़र्ज नहीं। (ذوالحجہ اور قربانی کے فضائل واحکام از مفتی محمد رضوان صاحب دام ظلہم)
☀ موسوعہ فقہیہ کویتیہ میں ہے:
ذَكَاةُ الْبَقَرِ:
ذَكَاةُ الْبَقَرِ كَذَكَاةِ الْغَنَمِ، فَإِذَا أُرِيدَ تَذْكِيَةُ الْبَقَرَةِ فَإِنَّهَا تُضْجَعُ عَلَى جَنْبِهَا الأَيْسَرِ، وَتُشَدُّ قَوَائِمُهَا الثَّلَاثُ: الْيَدُ الْيُمْنَى وَالْيُسْرَى وَالرِّجْل الْيُسْرَى، وَتُتْرَكُ الرِّجْل الْيُمْنَى بِلَا شَدٍّ لِتَحَرُّكِهَا عِنْدَ الذَّبْحِ، وَيُمْسِكُالذَّابِحُ رَأْسَهَا بِيَدِهِ الْيُسْرَى، وَيُمْسِكُ السِّكِّينَ بِيَدِهِ الْيُمْنَى، ثُمَّ يَبْدَأُ الذَّبْحَ بَعْدَ أَنْ يَقُول: بِاسْمِ اللهِ وَاللهُ أَكْبَرُ، وَبَعْدَ أَنْ يَتَّجِهَ هُوَ وَذَبِيحَتُهُ نَحْوَ الْقِبْلَةِ.
📿 अपने हाथ से ज़िबह़ करने की फ़जी़लत:
अफ़ज़ल यह है कि क़ुर्बानी करने वाला शख़्स ख़ुद ही ज़िबह़ करे; लेकिन अगर कोई और शख़्स उसकी इजाज़त से ज़िबह़ कर ले, तो भी जाइज़ है; अलबत्ता इस बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि जिस शख़्स को जानवर ज़िबह़ करने के लिए बुलाया जाए, वह अच्छी तरह़ ज़िबह़ करना जानता हो और शराइत पर भी पूरा उतरता हो। (فتاوی عالمگیری، جواہر الفقہ، فتاوی ٰرحیمیہ، اعلاءالسنن، تکملۃ فتح الملہم)
📿 ज़िबह़ के वक़्त शुरका (जानवर में शरीक लोगों) की मौजूदगी का ह़ुक्म:
ज़िबह़ के वक़्त तमाम शुरका (जानवर में शरीक लोगों) का मौजूद होना ज़रूरी नहीं; बल्कि सब की तरफ़ से इजाज़त ही काफ़ी है; अलबत्ता बेहतर यही है कि ज़िबह़ के वक़्त मौजूद रहा जाए। (فتاویٰ محمودیہ، بہشتی زیور، فتاوی ٰرحیمیہ، تکملۃ فتح الملہم)
📿 ज़िबह़ और नह़र की ह़क़ीक़त:
1️⃣ "ज़िबह़" दर हक़ीक़त जबड़े और सीने के दरमियान में मख़सूस रगें काटने का नाम है; जबकि "नह़र" ह़लक़ के आखिर और सीने के करीब रगें काटने का नाम है।
2️⃣ बकरा, बकरी, दुंबा, मेंढा, भेड़, गाय, बैल, भैंसा, और भैंस में "ज़िबह़" सुन्नत है जबकि ऊंट और ऊंटनी में "नह़र" सुन्नत है। (فتاویٰ قاضی خان)
📿 ज़िबह़ में काटी जाने वाली रगें:
ज़िबह़ में चार रगें काटी जाती हैं:
1️⃣ ह़ुल्क़ूम यअ़नी सांस की नाली जिसको नरख़रह भी कहा जाता है।
2️⃣ मरी यअ़नी खाने-पीने की नाली।
3️⃣ वदजैन यअ़नी ख़ून की दो रगें, यह सांस की नाली के दाएं बाएं दो रगें होती हैं, जिनको शहे-रग भी कहा जाता है।
ये चारों रगें काटने को ज़िबह़ कहा जाता है।
कोशिश तो यही हो कि यह चारों रगें कट जाएं; अलबत्ता अगर इनमें से तीन भी कट जाएं, तब भी जानवर ह़लाल समझा जाएगा। (مختصرالقدوری مع الجوہرة، فتاوی عالمگیری، ذوالحجہ اور قربانی کے فضائل واحکام)
📿 जानवर को उ़क़्दह यअ़नी गले की घुंडी और सीने के दरमियान ज़िबह़ करने का ह़ुक्म:
जानवर को उ़क़्दह यअ़नी गले की घुंडी और सीने के दरमियान ज़िबह़ करना चाहिए, लेकिन अगर किसी ने जबड़ों और घुंडी के दरमियान ज़िबह़ कर लिया और वो ख़ास रगें कट गईं, तो भी ज़िबह़ दुरुस्त है। (امداد الفتاویٰ، احسن الفتاویٰ)
📿 गुद्दी की जानिब से जानवर ज़िबह़ करने का ह़ुक्म:
ज़िबह़ करते वक़्त इस बात का ख़्याल रहे कि, गले की जानिब से ज़िबह़ किया जाए, गले को छोड़कर गुद्दी की जानिब से ज़िबह़ करना मकरूह है, इसमें जानवर को बे-जा तकलीफ़ देना है; अलबत्ता अगर किसी ने गुदी की जानिब से ज़िबह़ कर लिया और वो ख़ास रगें कट गईं तो जानवर ह़लाल है; लेकिन यह अ़मल मकरूह है।(فتاوی ٰقاضی خان، المحیط البرہانی، البحر الرائق)
📿 कुर्बानी का जानवर ज़िबह़ करते वक़्त नियत क्या होनी चाहिए?
कुर्बानी के जानवर ज़िबह़ करते वक़्त दिल में नियत होनी चाहिए कि, यह जानवर अल्लाह की रज़ा की खा़तिर क़ुर्बानी की नियत से ज़िबह़ कर रहा हूं। (جواہر الفقہ)
📿 ज़िबह़ के लिए जानवर लिटाने के बाद की दुआ़:
जब जानवर को ज़िबह़ करने के लिए क़िब्ला रुख़ लिटाया जाए, तो यह दुआ़ पढ़ना बेहतर है:
اِنِّیْ وَجَّھْتُ وَجْھِیَ لِلَّذِیْ فَطَرَ السَّمٰوَاتِ وَالْاَرْضَ حَنِیْفًا وَمَا اَنَا مِنَ الْمُشْرِکِیْنَ۔ اِنَّ صَلَاتِیْ وَنُسُکِیْ وَمَحْیَایَ وَمَمَاتِیْ لِلّٰہِ رَبِّ الْعَالَمِیْنَ، لَا شَرِیْکَ لَہٗ وَبِذٰلِکَ اُمِرْتُ وَاَنَا اَوَّلُ الْمُسْلِمِیْنَ۔
(قربانی کے احکام و مسائل از مفتی اعظم ولی حسن ٹونکی رحمہ اللہ، ذوالحجہ اور قربانی کے فضائل واحکام)
📿 ज़िबह़ करते वक़्त अल्लाह का नाम लेना:
ज़िबह़ करते वक़्त अल्लाह का नाम लेना ज़रूरी है, जिसका सुन्नत तरीक़ा यह है कि यूं कहे:
بِسْمِ اللّٰہِ اَللّٰہُ اَکْبَرُ
(बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर)
۔ (ذوالحجہ اور قربانی کے فضائل واحکام)
مسند احمد میں ہے:
15022: عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللهِ الْأَنْصَارِيِّ: أَنَّ رَسُولَ اللهِ ﷺ ذَبَحَ يَوْمَ الْعِيدِ كَبْشَيْنِ ثُمَّ قَالَ حِينَ
وَجَّهَهُمَا: «إِنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَ السَّمٰوَاتِ وَالْأَرْضَ حَنِيفًا مُسْلِمًا وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِكِينَ، إِنَّ صَلَاتِي وَنُسُكِي وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِي لِلّٰهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ، لَا شَرِيكَ لَهُ وَبِذَلِكَ أُمِرْتُ وَأَنَا أَوَّلُ الْمُسْلِمِينَ. بِسْمِ اللهِ اللهُ أَكْبَرُ، اَللّٰهُمَّ مِنْكَ وَلَكَ عَنْ مُحَمَّدٍ وَأُمَّتِهِ».
📿 ज़िबह़ करते वक़्त बिस्मिल्लाह भूल जाने का ह़ुक्म:
अगर ज़िबह़ करने वाला ज़िबह़ करते वक़्त बिस्मिल्लाह भूल गया, तो तब भी जनावर ह़लाल है; लेकिन जानबूझकर अल्लाह का नाम ना लिया, तो जानवर ह़राम हो जाएगा। (البحر الرائق، رد المحتار، فتاوی عالمگیری، بحوث فی قضایا فقہیہ معاصرہ)
📿 ज़िबह़ करते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना किस के ज़िम्मे है:
ज़िबह़ करते वक़्त सिर्फ ज़िबह़ करने वाले के लिए बिस्मिल्लाह पढ़ना ज़रूरी है, इसी तरह अगर छुरी चलाने वाले अफ़राद एक से ज़ाइद हों, तो उन सब के ज़िम्मे बिस्मिल्लाह पढ़ना ज़रूरी है; बाक़ी जिन ह़ज़रात ने जानवर पकड़ रखा हो, तो उनके ज़िम्मे बिस्मिल्लाह और तकबीर कहना ज़रूरी नहीं। (امداد الفتاویٰ، امداد الاحکام)
📿 ज़िबह़ करने वाले का मुसलमान होना:
1️⃣ ज़िबह़ करने वाले का मुसलमान होना ज़रूरी है, क्योंकि ग़ैर मुस्लिम का ज़िबह़ ह़लाल नहीं। (فتاویٰ عالمگیری)
2️⃣ जहां तक अहले किताब यानी यहूदी और ई़साई शख़्स के ज़बीह़े का ह़ुक्म है, तो अगर वो वाक़ई़ अहले किताब में से हो: अपने आसमानी दीन को बरह़क़ जानता हो, अपने पैगंबर और किताब पर ईमान रखता हो, तो उसका ज़बीहा़ ह़लाल है, शर्त यह है कि जानवर ज़िबह़ करते वक़्त अल्लाह का नाम ले।
लेकिन यह सूरते हा़ल बहुत ही कम है; क्योंकि बहुत से [बल्कि अक्सर] ई़साई और यहूदी मर्दुम शुमारी में तो ई़साई और यहूदी ही कहलाते हैं, लेकिन दर ह़क़ीक़त वो ला-मज़हब देहरी और माद्दह परस्त होते हैं, जो अपने आसमानी दीन के मुंकिर (इंकार करने वाले), अपने पैगंबरों और किताबों के मुनकिर ह़त्ता कि ख़ुदा ही के मुनकिर होते हैं, ऐसे नाम के अहले किताब का ज़बीहा़ ह़लाल नहीं; बहरहा़ल कोशिश यही हो कि, ज़िबह़ के लिए किसी सही़ अक़ीदे वाले मुसलमान ही का इंतिखा़ब किया जाए। (تفصیل کے لیے دیکھیں: جواہر الفقہ)
📿 औरत और नाबालिग़ बच्चे के ज़िबह़ का ह़ुक्म:
औरत और इसी तरह़ नाबालिग़ लड़का या लड़की अगर अच्छी तरह़ ज़िबह़ करना जानते हों, तो उनका ज़िबह़ बिल्कुल दुरुस्त है। (الدر المختار مع رد المحتار، امداد الفتاویٰ)
📿 गोयाई से मह़रुम शख़्स के ज़बीह़े का ह़ुक्म:
गोयाई (बोलने) से मह़रूम शख़्स का ज़बीहा़ ह़लाल है जबकि वह ज़िबह़ का तरीक़ा जानता हो कि, ज़िबह़ में कितनी और कौन-कौन सी रगें काटनी चाहिए और उसको तकबीर का तरीक़ा भी इशारे से सिखाया जाए कि, अगर वो इशारे से तकबीर कह दे, तब भी काफ़ी है। और अगर वह तकबीर के लिए ज़बान को ह़रकत देने (हिलाने) पर क़ादिर है तो अच्छी बात है। (امداد الاحکام ودیگر کتب)
📿 बिला वुज़ू और ह़ालते जनाबत (बड़ी नापाकी की हा़लत) में जानवर ज़िबह़ करने का ह़ुक्म:
ज़िबह़ करने वाले शख़्स का बा-वुज़ू होना ज़रूरी नहीं; बल्कि बे-वुज़ू के भी ज़िबह़ किया जा सकता है। इसी तरह़ जनाबत (बड़ी नापाकी) की हा़लत में अगर किसी ने ज़िबह़ किया, तब भी ज़िबह़ दुरुस्त है; अलबत्ता मुनासिब यही है कि त़हारत (और पाकी) के साथ ज़िबह़ किया जाए। (رد المحتار، الموسوعۃ الفقہیہ ودیگر کتب)
📿 ज़िबह़ के बाद खाल कब उतारी जाए?
ज़िबह़ करने के बाद जब जानवर से रूह़ निकल जाए, तो उसके बाद ही खाल उतारनी चाहिए; रूह़ निकलने से पहले खाल उतारना मकरूह है।
✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम
फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची
हिंदी तर्जुमा, इख्तिसार व तस्हील:
अल्तमश आ़लम क़ासमी
9084199927
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