तकबीराते तशरीक़ के ज़रूरी मसाइल

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तकबीराते तशरीक़ के ज़रूरी मसाइल ❄✨

ज़ुलह़िज्जा का महीना इ़बादात के लिए बड़ी ही अहमियत रखता है, इसमें क़ुर्बानी और ह़ज जैसी अ़जी़म इ़बादात के साथ-साथ एक अहम इ़बादत तकबीराते तशरीक़ की भी है, जिस से अल्लाह तआ़ला की अ़ज़मत और बड़ाई का बख़ूबी इज़हार होता है और अल्लाह तआ़ला की मुह़ब्बत और अ़ज़मत भी दिलों में उजागर होती है। ज़ैल में (नीचे) तकबीराते तशरीक़ के बारे में (ज़रुरी) मसाइल ज़िक्र किये जा रहे हैं:


📿 *तकबीराते तशरीक़ के अल्फ़ाज़:*


اَللهُ أَكْبَرُ اَللهُ أَكْبَرُ لَا إِلٰهَ إِلَّا اللهُ وَاللهُ أَكْبَرُ اَللهُ أَكْبَرُ وَللهِ الْحَمْدُ.

(مصنف ابن ابی شیبہ حدیث:5699 رد المحتار)


📿 *तकबीराते तशरीक़ के अय्याम:*

तकबीराते तशरीक़ के कुल 5 दिन हैं: 9 ज़ुलह़िज्जा से लेकर 13 ज़ुलह़िज्जा तक। इन 5 दिनों को अय्यामे तशरीक़ कहा जाता है।

(مصنف ابن ابی شیبہ: 5677، رد المحتار، اعلاء السنن)


📿 *तकबीराते तशरीक़ का वक़्त:*

तकबीराते तशरीक़ का वक़्त 9 ज़ुलह़िज्जा यानी अ़रफ़ा के दिन फ़ज्र की नमाज़ से शुरू होता है, और 13 ज़ुलह़िज्जा यानी ई़द के चौथे दिन की अ़स्र की नमाज़ तक रहता है।

(مصنف ابن ابی شیبہ: 5677، رد المحتار، اعلاء السنن، عالمگیری)


📿 *तकबीराते तशरीक़ किस पर वाजिब हैं?*

तकबीराते तशरीक़ हर बालिग़ मुसलमान मर्द और औ़रत पर वाजिब है; चाहे वो शहरी हों देहाती हों मुक़ीम हों या मुसाफ़िर हों।

(رد المحتار، عالمگیری، امداد الاحکام، فتاویٰ محمودیہ، جواہر الفقہ)


🌹 *मसअलह:*

तकबीराते तशरीक़ मर्द ह़ज़रात के लिए बुलंद आवाज़ से कहना वाजिब है, जबकि ख़्वातीन आहिस्ता आवाज़ से पढ़ेंगी।

(فتاوی ٰعالمگیری، رد المحتار، جواہر الفقہ)


📿 *तकबीराते तशरीक़ किस नमाज़ के बाद वाजिब हैं?:*

तकबीराते तशरीक़ सिर्फ़ फ़र्ज़ नमाज़ के बाद कहना वाजिब है; चाहे फ़र्ज़ नमाज़ बा-जमाअ़त अदा की जाए या अकेले पढ़ी जाए; लेकिन वित्र ,सुन्नत और नफ़्ल नमाज के बाद इन तकबीरात के पढ़ने का ह़ुक्म नहीं।

(بدائع الصنائع، المحیط البرہانی، رد المحتار، الجوہرۃ، فتاویٰ محمودیہ، الموسوعۃ الفقہیہ، جواہر الفقہ)

तकबीराते तशरीक़ जुमा की नमाज़ के बाद भी कहना वाजिब है, इसी तरह़ ई़द उल अज़हा़ की नमाज़ के बाद भी कहनी चाहिए।

(البحر، رد المحتار، فتاویٰ محمودیہ، اعلاء السنن)


📿 *तकबीराते तशरीक़ कितनी बार कहनी चाहिए?:*

तकबीराते तशरीक़ सिर्फ़ एक ही बार कहना वाजिब है, ना कि तीन बार; इसलिए एक से जा़इद बार नहीं कहना चाहिए; बल्कि एक ही बार कहने पर इक्तिफ़ा करना चाहिए।

(رد المحتار، امداد الفتاویٰ، فتاویٰ دارالعلوم دیوبند، احسن الفتاویٰ، فتاوی ٰرحیمیہ) 


📿 *तकबीराते तशरीक़ किस वक़्त कहनी चाहिए?:*

तकबीराते तशरीक़ फ़र्ज़ नमाज़ के फ़ौरन बाद कहना ज़रूरी है, अगर किसी ने ये तकबीरात फ़र्ज़ नमाज़ के फ़ौरन बाद नहीं कही, तो अपनी जगह बैठे बैठे जब भी याद आए तो तकबीरात कह दे, बशर्ते कि उसने कोई ऐसा काम ना किया हो जिस से नमाज़ टूट जाती है; लेकिन अगर उस ने बात-चीत कर ली, वुज़ू तोड़ दिया, या कोई और ऐसा काम किया जिस से नमाज़ टूट जाती है, तो अब इन तकबीरात का वक़्त बाक़ी नहीं रहा और ना ही इन की क़जा़ हो सकती है; बल्कि ऐसी सूरत में कोताही पर इस्तिग़फा़र करना चाहिए।

(رد المحتار، فتاویٰ محمودیہ، فتاویٰ عالمگیری)

अलबत्ता अगर नमाज़ के फ़ौरन बाद किसी शख्स का वुज़ू ख़ुद ब ख़ुद टूट जाए, तो ऐसी सूरत में उसी हा़लत में तकबीरात कह देनी चाहिए; अलबत्ता अगर वो वुज़ू करके आए और यह तकबीरात कह दे तब भी दुरुस्त है।

(البحر الرائق، حاشیۃ الطحطاوی علی المراقی)


📿 *तकबीराते तशरीक़ के मुतफ़र्रिक़ मसाइल:*

1️⃣ जिस शख्स से इमाम के साथ कुछ रकअ़तें निकल चुकी हों, तो वो भी इमाम के सलाम के बाद अपनी बक़िया नमाज़ पूरी करने के बाद तकबीरात कहेगा।

(فتاویٰ عالمگیری، رد المحتار، فتاویٰ رحیمیہ)

2️⃣ ऊपर बतलाए गए 5 दिनों में कोई नमाज़ क़जा हो जाए और उसकी क़ज़ा इन्हीं 5 दिनों में की जाए, तो उसके बाद भी यह तकबीरात कही जाएंगी; लेकिन अगर उसकी क़जा़ इन 5 दिनों के बाद की जाए, या इन 5 दिनों से पहले जो नमाज़ क़ज़ा हुई थी वो इन 5 दिनों में अदा की जाए, तो इन दोनों सूरतों में उस क़जा नमाज़ के बाद ये तकबीरात नहीं कही जाएंगी।

(رد المحتار، فتاویٰ عالمگیری، الموسوعۃ الفقہیہ)

3️⃣ अगर इमाम तकबीराते तशरीक़ भूल जाए, तो मुक़्तदी ह़ज़रात को चाहिए कि वो इमाम का इंतिज़ार ना करें; बल्कि फ़ौरन तकबीरात कह दें। (رد المحتار)


⭕ *तम्बीह:*

बहुत सी ख़्वातीन तकबीराते तशरीक़ का एहतिमाम नहीं करतीं, जिसकी वजह या तो ला-इ़ल्मी होती है और या ग़फ़लत; इसलिए घरों में ख़्वातीन को भी तकबीराते तशरीक़ और इनके मसाइल बतलाना चाहिए।

और एक बेहतरीन सूरत यह है कि तकबीराते तशरीक़ के मसाइल पर मुश्तमिल पम्फ़लेट या सिर्फ तकबीरात के अल्फ़ाज़ ही नमाज़ की जगह के सामने चस्पा कर लिए जाएं, ताकि याद दहानी रहे।


✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा, इख्तिसार व तस्हील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

9084199927

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