दस गैर साबित रिवायतें



 *🔬दस गैर साबित रिवायतें🔬*


अ़वाम में बहुत सी ऐसी रिवायतें मशहूर हैं, जिन का कोई मौतबर सुबूत नहीं मिलता; जै़ल में ऐसी दस गै़र साबित रिवायतें मुलाह़जा फरमाएं:


◼️ *रिवायत 1️⃣:* जब हुज़ूर अक़दस ﷺ मैराज की रात आसमानों के ऊपर तशरीफ़ ले गए, तो अल्लाह तआ़ला ने पूछा कि ऐ मेरे महबूब! मेरे लिए क्या तोहफ़ा लाए हो? तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने जवाब में फरमाया कि: मैं एक ऐसा तोहफ़ा लाया हूं जो आप के पास भी नहीं है। तो अल्लाह तआ़ला ने पूछा कि ऐसा कौन सा तोहफ़ा लाए हो जो मेरे पास भी नहीं है?? तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: मैं आ़जिज़ी ले के आया हूं।


◼️ *रिवायत 2️⃣:* फक़्र मेरा फख्र है और मैं इसी पर फख्र करता हूं।


◼️ *रिवायत 3️⃣:* एक सहा़बी ने हुज़ूर अक़दस ﷺ से अपने घर की बे बरकती की शिकायत की, तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने उन से फ़रमाया कि: अपने घर के दरवाज़े पर पर्दा लटकाओ। चुनांचे उस के बाद वो सहाबी चंद दिनों के बाद तशरीफ़ लाए और फ़रमाया कि घर के दरवाज़े पर पर्दा लटकाने से मेरे घर से बे बरकती ख़त्म हो चुकी है। तो हुज़ूर ﷺ ने हक़ीक़त बतलाते हुए इरशाद फ़रमाया कि: तुम्हारे घर के रास्ते से एक बे नमाज़ी शख़्स गुज़रता था जिस की निगाह तुम्हारे घर के अंदर पड़ जाती थी, उसी की नहू़सत से तुम्हारे घर में बे बरकती आ जाती थी, अब पर्दा लटकाने के बाद उस की निगाह घर में नहीं पड़ती, इस लिए वो बे बरकती ख़त्म हो चुकी है।


◼️ *रिवायत 4️⃣:* जब अल्लाह तआ़ला किसी चीज़ का हुक्म देते हैं तो फरमाते हैं: "کُنْ" (कुन) यानी हो जा, तो लफ्जे "کُنْ" (कुन) के काफ और नून के आपस में मिलने से पहले ही वो काम हो जाता है।


◼️ *रिवायत 5️⃣:* जिस ने अपने आप को या अपने नफ्स को पहचान लिया, उस ने अपने रब को पहचान लिया।


◼️ *रिवायत 6️⃣:* जो मुसलमान अपनी बीवी से इस नियत से सुहबत करे कि अगर उस से ह़मल ठहर गया, तो उस का नाम मुह़म्मद रखेगा, तो अल्लाह तआ़ला उस को बेटा अ़ता फरमाएंगे।


◼️ *रिवायत 7️⃣:* जब कोई शख़्स "لا الہ الااللہ" पढ़ता है, तो अल्लाह तआ़ला उस कलमे की वजह से एक फरिश्ता या परिंदा पैदा करता है जिस की सत्तर हज़ार ज़बानें होती हैं और हर ज़बान में एक हज़ार बोलियां होती हैं, वो फरिश्ता या परिंदा उन सब ज़बानों और बोलियों में उस बंदे के लिए अल्लाह तआ़ला से मग़फिरत तलब करता है।


◼️ *रिवायत 8️⃣:* मां की गोद से क़ब्र तक इ़ल्म हासिल करो।


◼️ *रिवायत 9️⃣:* जन्नती जन्नत में भी उ़लमा के मोहताज होंगे कि, जन्नती जब जन्नत में जाएंगे, तो अल्लाह तआ़ला उन से फरमाएंगे कि: क्या तुम्हें जन्नत की तमाम नेमतें मिल चुकी हैं? तो जन्नती कहेंगे कि जी हां! तो अल्लाह तआ़ला फरमाएंगे कि एक बड़ी नेमत बाक़ी है। तो जन्नती अपने उ़लमा_ए_किराम से पूछेंगे कि कौन सी नेमत बाक़ी है? तो उ़लमा_ए_किराम फरमाएंगे कि: अल्लाह तआ़ला के दीदार की नेमत बाक़ी है।

बाज़ लोग यह रिवायत यूं बयान करते हैं कि: जन्नती जन्नत में भी उ़लमा के मोहताज होंगे, वो इस तरह कि अहले जन्नत हर जुमा को अल्लाह तआ़ला का दीदार करेंगे, तो अल्लाह तआ़ला उन से फरमाएंगे: मांगो जो मांगना है। तो जन्नती अपने उ़लमा_ए_किराम से पूछेंगे कि अल्लाह तआ़ला से क्या मांगें? तो अहले इ़ल्म जवाब देंगे कि फलां फलां नेमत मांगो।


◼️ *रिवायत 🔟:* जिस इ़लाक़े में दीन की मेहनत के लिए गश्त होता है, तो वहां चालीस दिन तक के लिए अ़ज़ाब उठा लिया जाता है।



➡️ *तह़की़क़ व तब्सिरा:*

मज़कूरा (ऊपर जिक्र की गईं) दस रिवायतों का हुज़ूर अक़दस ﷺ और ह़ज़राते सहा़बा किराम से कोई मौतबर सुबूत नहीं मिलता, इस लिए इन को बयान करने से बचना ज़रूरी है।


❄️ *अहा़दीस बयान करने में सख़्त एह़तियात की ज़रूरत:*

आजकल बहुत से लोग अहा़दीस के मुआ़मले में कोई एह़तियात नहीं करते, बल्कि कहीं भी ह़दीस के नाम से कोई बात मिल गई, तो मुस्तनद और मौतबर अहले इ़ल्म से उस की तहकी़क किए बगैर ही उस को ह़दीस का नाम दे कर बयान कर देते हैं, जिस के नतीजे में उम्मत में बहुत सी मन्घड़त रिवायतें आ़म हो जाती हैं।


इस लिए अहा़दीस के मुआ़मले में बहुत ही ज़्यादा एह़तियात (और सावधान रहने) की ज़रूरत है;

क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ की तरफ़ किसी बात को ग़लत मन्सूब करना यानी जो बात आप ﷺ ने नहीं फरमाई, उस के बारे में यह कहना कि यह रसूलुल्लाह ﷺ का फरमान है बड़ा सख़्त गुनाह है।


सही बुखारी की रिवायत है, नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:

जिस ने मुझ पर जानबूझ कर झूठ बोला, वो अपना ठिकाना जहन्नम बना ले।

110- عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ عَنِ النَّبِيِّ ﷺ قَالَ: «...وَمَنْ كَذَبَ عَلَيَّ مُتَعَمِّدًا فَلْيَتَبَوَّأْ مَقْعَدَهُ مِنَ النَّارِ».


➡️ *एक अहम नुकता:*

मन्घड़त और बे असल रिवायतों के बारे में एक अहम नुकता यह समझ लेना चाहिए कि अगर कोई रिवायत वाक़िअ़तन (ह़क़ीक़त में) बे असल, मन्घड़त और गैर मौतबर है, तो वो किसी मशहूर खतीब और बुज़ुर्ग के बयान करने से मौतबर नहीं बन जाती।


इस अहम नुकते से उन लोगों की गलती मालूम हो जाती है कि जब उन्हें कहा जाए कि यह रिवायत मन्घड़त या गैर मौतबर है, तो जवाब में यह कह देते हैं कि यह कैसे मन्घड़त है, हालांकि यह मैंने फलां मशहूर बुज़ुर्ग या खतीब से सुनी है।


जा़हिर है कि यह किसी ह़दीस के का़बिले क़बूल होने के लिए यह कोई दलील नहीं बन सकती कि मैंने फलां आ़लिम या बुज़ुर्ग से सुनी है; बल्कि रिवायत को तो हदीस के उसूल के मैयार पर परखा जाता है।


खुलासा यह कि गलती तो बड़े से बड़े बुज़ुर्ग और आ़लिम से भी हो सकती है कि वो ला-इ़लमी और अनजाने में कोई मन्घड़त रिवायत बयान कर दें, अलबत्ता उन की इस गलती और भूल की वजह से कोई मन्घड़त और गैर मौतबर रिवायत मौतबर नहीं बन जाती, बल्कि वो बदस्तूर मन्घड़त और बे असल ही रहती है।


✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा इख़्तिख़ार व तस्हील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी


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