दाई़ ‌के क़ब्रिस्तान से गुज़रने पर चालीस दिन तक अ़जाब उठाया जाना। عالم یا طالب علم یا داعی کے گزرنے کی وجہ سے قبرستان سے چالیس دن تک عذاب اٹھایا جانا

 *मुरव्वजह रिवायात का इ़ल्मी जाएज़ा*


 *दाई़ ‌के क़ब्रिस्तान से गुज़रने पर चालीस दिन तक अ़जाब उठाया जाना*




*रिवायत ⑪*

एक ह़दीस हमारे हां आ़म तौर पर बयान की जाती है कि "जिस इलाक़े में दीन की मह़नत और फ़िक्र के लिए गश्त होता है, तो वहां से चालीस दिन तक अ़जाब उठा लिया जाता है।"


*तह़क़ीक़:*

यह ह़दीस इन अल्फ़ाज़ के साथ तो किसी जगह ना मिल सकी, अलबत्ता इस से मिलती जुलती एक मौज़ू और बे बुनियाद ह़दीस है जो यह है:

"जब आ़लिम और तालिबे इ़ल्म किसी बस्ती से गुज़रते हैं, तो अल्लाह तआ़ला उस बस्ती के क़ब्रिस्तान से चालीस दिन तक अ़जाब उठा लेते हैं।"


यह रिवायत मंघड़त और मौजू़ है, मुल्ला अ़ली क़ारी, अ़ल्लामा अ़जलूनी और कई मशहूर मुह़द्दिसीने किराम رحمہم اللہ ने इस रिवायत को मौज़ू और खुद-साखता क़रार दिया है।

(المصنوع في معرفة الحديث الموضوع ص ٦٥ رقم ٥٧، كشف الخفاء رقم ٦٧٢ بحوالہ چند معروف لیکن غیر مستند احادیث ص 99

مروّجہ موضوع احادیث کا علمی جائزہ ص 440

غیر معتبر روایات کا فنی جائزہ 422/2

عمدۃ الاقاویل فی تحقیق الاباطیل ص 241)


गश्त की फजी़लत के तौर पर जो ह़दीस बयान की जाती है कि जहां दीनी मह़नत के लिए गश्त होता है, वहां चालीस दिन तक अ़जाब नहीं आता, वह गालिबन इसी हदीस से माखूज़ और ली गई है और चूंकि यह हदीस मौज़ू है, इस लिए इस को बयान करना या इस पर किसी दूसरे दीनी काम करने वालों को क़यास करके उस के लिए इस फजी़लत को साबित करना जाएज़ नहीं।


अलबत्ता ऊपर ज़िक्र की गई रिवायत के अ़लावा एक दूसरी ह़दीसे क़ुदसी है जिस में तीन कामों की वजह से आए हुए अ़जाब को उठा दिए जाने का ज़िक्र है, चुनांचे हज़रत अनस رضی اللہ عنہ हुज़ूर अक़दस ﷺ से रिवायत करते हैं:

हदीसे क़ुदसी: "अल्लाह तआ़ला का इरशाद है कि मैं किसी जगह के लोगों पर अ़जाब भेजने का इरादा कर लेता हूं, लेकिन जब वहां ऐसे लोगों को देखता हूं जो मेरे घरों को आबाद करने वाले हैं, आपस में एक दूसरे से मेरे लिए मुह़ब्बत करने वाले और फजर के क़रीब (तहज्जुद में) इस्तिग़फार करने वाले हैं, तो (उन की वजह से) वह अ़जाब (उन तमाम लोगों से) फेर लेता हूं।"


हिंदी तर्जुमा व तरतीब: अल्तमश आ़लम क़ासमी

(شعب الایمان للبیہقی)

(چند معروف لیکن غیر مستند احادیث ص 99 تا 101)

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