✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨
सिलसिला 41:
🌻 *ख़्वातीन के लिए राह चलने के आदाब*
▪ *उन मुसलमान बहनों के नाम जिन के लिए हया (व शर्म) और अल्लाह की रजा़ (और उस की खुशनूदी) सारी कायनात से ज़्यादा अहम है۔۔۔ करोड़ों रहमतें हों उन पर!!*
❄ *अपनी हया और इफ्फत (व पाकदामनी) की हिफाज़त पर अज़ीम इनाम:*
हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: "जब औरत पंज वक़्ता नमाज़ अदा करे, रमज़ान के रोज़े रखे, अपनी हया और इफ्फत (व पाकदामनी) की हिफाज़त करे और [जाएज़ कामों में] अपने शौहर की इताअ़त करे (और बात माने); तो वह जन्नत में जिस दरवाज़े से चाहे दाखिल हो जाए।'
☀ صحیح ابن حبان میں ہے:
4163: عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ ﷺ: «إِذَا صَلَّتِ الْمَرْأَةُ خُمُسَهَا، وَصَامَتْ شَهْرَهَا، وَحَصَّنَتْ فَرْجَهَا، وَأَطَاعَتْ بَعْلَهَا: دَخَلَتْ مِنْ أَيِّ أَبْوَابِ الْجَنَّةِ شَاءَتْ».
🌼 *पर्दा औरत के लिए इनआ़मे खुदावनदी (खुदा का इनाम):*
अल्लाह तआ़ला ने औरत को पर्दा करने का हुक्म दिया है जो कि औरत के लिए अल्लाह तआ़ला की तरफ से बहुत बड़ा इनाम है, इसी पर्दे में औरत की इज्ज़त है, यही औरत की हया (और इज्ज़त व शरम) की हिफाज़त का ज़रिया है। जो औरत पर्दा करती है, अल्लाह तआ़ला उस को दुनिया और अखिरत की बेशुमार नेमतें अता करता है, जिन में सब से बड़ी नेमत यह है कि अल्लाह तआ़ला ऐसी औरत से राज़ी (और खुश) हो जाता है, ज़ाहिर है कि एक मुसलमान औरत के लिए इस से बढ़ कर नेमत और खुशी क्या हो सकती है कि अल्लाह उस से राज़ी (और ख़ुश) हो जाए।
🌻 *औरत सरापा (और मुकम्मल) पर्दा है:*
☀️ सुन-नुत तिरमिज़ी में है:
1173: عَنْ أَبِي الأَحْوَصِ عَنْ عَبْدِ اللهِ، عَنِ النَّبِيِّ ﷺ قَالَ: «المَرْأَةُ عَوْرَةٌ، فَإِذَا خَرَجَتْ اسْتَشْرَفَهَا الشَّيْطَانُ».
▪ *तर्जुमा:*
ह़ुज़ूरे अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: *"औरत सरापा पर्दा है, जब वह निकलती है, तो शैतान उस को झांकता है।"*
यानी शैतान की यह कोशिश होती है कि वह लोगों को इस बात पर उभारे कि वह उस औरत को देख कर बदनज़री और दीगर (दूसरे) गुनाहों में मुब्तला हों।
🌻 *औरत के लिए अफ़ज़ल और बेहतरीन जगह:*
अल्लाह तआ़ला को औरत का पर्दे में रहना इतना पसंद है कि औरत जितना पर्दे में रहती है और जितना ज़्यादा अपने आप को नामहरम मर्दों से छुपाती है तो उतना ही अल्लाह तआ़ला उस से ख़ुश होता है, हत्ता कि हदीस शरीफ़ में आता है कि हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि:
*"औरत तो पर्दे की चीज़ है, जब वह घर से निकलती है तो शैतान उस की तरफ़ झांकता है। और औरत अल्लाह तआ़ला के सब से ज़्यादा करीब उस वक़्त होती है जब वह अपने घर के किसी कोने और पोशीदा (छुपी हुई) जगह में हो।"*
☀ صحیح ابن حبان میں ہے:
5599- عَنْ عَبْدِ اللهِ رضي الله عنه عَنِ النَّبِيِّ ﷺ قَالَ: «الْمَرْأَةُ عَوْرَةٌ، فَإِذَا خَرَجَت اسْتَشْرَفَهَا الشَّيْطَانُ، وَأَقْرَبُ مَا تَكُونُ مِنْ رَبِّهَا إِذَا هِيَ فِي قَعْرِ بَيْتِهَا».
🌻 इस हदीस शरीफ़ में सराहत से (और साफ़ तौर पर) यह फ़रमाया गया है कि औरत तो पर्दे की चीज़ है और औरत अल्लाह तआ़ला के सब से ज़्यादा करीब उस वक़्त होती है जब वह अपने घर के किसी पोशीदा (छुपे हुए) हिस्से में हो, इस से औरत के लिए पर्दा करने, पर्दे में रहने और बिला ज़रूरत घर से ना निकलने की बड़ी फजी़लत व अहमियत मालूम होती है।
🌼 *औरत के लिए घर से बाहर निकलने में शरई़ अह़काम की पासदारी:*
इस सारी तफ़्सील से मालूम हुआ कि पर्दा औरत के लिए निहायत ही अहम है और उस के लिए घर में रहना ही असल हुक्म है, इसी में अल्लाह की रज़ा है, अलबत्ता शरीअ़त ने शदीद (सख्त) मजबूरी में औरत को घर से निकलने की इजाज़त दी है, लेकिन ये इजाज़त भी चंद शराइत (शर्तों) के साथ है, उन शराइत की रिआ़यत (और उन शर्तों का खयाल) करते हुए औरत बाहर निकल सकती है, उन शराइत और अहकाम की रोशनी में शरीअ़त औरत को घर से निकलते वक़्त पर्दे का पाबंद बनाती है कि वो घर वापस लौटने तक घर से बाहर भी पर्दे के तमाम अहकाम की पासदारी करे, अपनी हया (और शर्म) की हिफाज़त करे और हर उस काम से बचने का खुसूसी एहतिमाम करे जिस से किसी भी क़िस्म की बे पर्दगी होती हो।
जब औरत शरई बुर्क़ा पहन कर मुकम्मल शरई पर्दे के साथ बाहर निकलती है तो उसके लिए शरीअत ने रास्ते में चलने के भी कुछ अहकाम व आदाब मुक़र्रर फरमाए हैं ताकि राह चलते हुए औरत उन आदाब व अहकाम की पासदारी करे। इन तमाम अहकाम व आदाब में औरत के लिए दुन्यवी और उखरवी फायदे हैं और उस की हया (व शर्म) और इ़ज़्ज़त का तहफ़्फ़ुज़ (और हिफाज़त) है।
ज़ैल में (नीचे) औरत के लिए राह (रास्ता) चलने के आदाब व अहकाम बयान किये जाते हैं।
🌻 *ख़्वातीन के लिए राह चलने के आदाब*
1️⃣ *राह चलते हुए नज़र की हिफाज़त:*
राह चलते हुए जिस तरह मर्द हज़रात के लिए ग़ैर महरम औरतों से निगाह की हिफाज़त ज़रूरी है इसी तरह ये हुक्म औरतों के लिए भी है कि वो ग़ैर महरम और अजनबी मर्दों से निगाहों की हिफाज़त करे, कियोंकि बद निगाही संगीन गुनाह है, चुनांचे अल्लाह तआ़ला ने क़ुरआने करीम में औरतों को भी गुनाहों की हिफाज़त का हुक्म फ़रमाया है:
وَقُلْ لِّلۡمُؤۡمِنٰتِ يَغۡضُضۡنَ مِنۡ أَبۡصَارِهِنَّ وَيَحۡفَظۡنَ فُرُوجَهُنَّ.
(سورۃ النور آیت: 31)
*तर्जुमा:*
और मोमिन औरतों से कह दो कि वह अपनी निगाहें नीची रखें, और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें।
💥 *बदनज़री आंखों का ज़िना है!*
हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: आंखें भी जि़ना करती हैं, उन का ज़िना बदनज़री है, चुनांचे सह़ीह मुस्लिम में है:
6925: عَنْ أَبِى هُرَيْرَةَ عَنِ النَّبِىِّ ﷺ قَالَ: «كُتِبَ عَلَى ابْنِ آدَمَ نَصِيبُهُ مِنَ الزِّنَى مُدْرِكٌ ذَلِكَ لَا مَحَالَةَ، فَالْعَيْنَانِ زِنَاهُمَا النَّظَرُ، وَالْأُذُنَانِ زِنَاهُمَا الاِسْتِمَاعُ، وَاللِّسَانُ زِنَاهُ الْكَلَامُ، وَالْيَدُ زِنَاهَا الْبَطْشُ، وَالرِّجْلُ زِنَاهَا الْخُطَا، وَالْقَلْبُ يَهْوَى وَيَتَمَنَّى، وَيُصَدِّقُ ذَلِكَ الْفَرْجُ وَيُكَذِّبُهُ».
💥 *बदनज़री का ज़रिया बनने पर लानत की वई़द:*
हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: "अल्लाह लानत करे बदनज़री करने वाले पर और उस [औ़रत] पर जो अपने आप को बदनज़री के लिए पेश करे।"
▪ शुअ़बुल ईमान में है:
7399- عَنِ الْحَسَنِ قَالَ: وَبَلَغَنِي أَنَّ رَسُولَ اللهِ ﷺ قَالَ: «لَعَنَ اللهُ النَّاظِرَ والْمَنْظُورَ إِلَيْهِ».
🌸 *नज़रों की हिफाज़त रास्ते के हुकूक में से है!*
अह़ादीसे मुबारकह में रास्ते के जो हुकूक बयान फरमाए गए हैं उन में से एक ह़क़ यह भी है कि गैर महरम से नज़रों की हिफाज़त की जाए। यह हुक्म जिस तरह मर्दों के लिए है इसी तरह ख़्वातीन के लिए भी है कि वह राह चलते हुए ग़ैर मर्दों से अपनी निगाहों की हिफाज़त करें, चुनांचे सह़ीह मुस्लिम में है:
5685: عَنْ أَبِى سَعِيدٍ الْخُدْرِىِّ عَنِ النَّبِىِّ ﷺ قَالَ: «إِيَّاكُمْ وَالْجُلُوسَ فِى الطُّرُقَاتِ»، قَالُوا: يَا رَسُولَ اللهِ، مَا لَنَا بُدٌّ مِنْ مَجَالِسِنَا نَتَحَدَّثُ فِيهَا، قَالَ رَسُولُ اللهِ ﷺ: «فَإِذَا أَبَيْتُمْ إِلَّا الْمَجْلِسَ فَأَعْطُوا الطَّرِيقَ حَقَّهُ»، قَالُوا: وَمَا حَقُّهُ؟ قَالَ: «غَضُّ الْبَصَرِ وَكَفُّ الْأَذَى وَرَدُّ السَّلَامِ وَالْأَمْرُ بِالْمَعْرُوفِ وَالنَّهْيُ عَنِ الْمُنْكَرِ».
2️⃣ *ख़्वातीन के लिए रास्ते की किसी एक जानिब चलने का हुक्म:*
ख़्वातीन के लिए रास्ते के दर्मियान में चलने की इजाज़त नहीं, बल्कि अहादीस की रू से उन के लिए हुक्म ये है कि वो रास्ते के दायें या बायें किसी एक जानिब हो कर चलें, इस तरह किसी एक तरफ चलने के मुतअ़द्दिद फवाइद (कई फायदे) हैं कि इस से रास्ते के दर्मियान वाला हिस्सा मर्दों के लिए ख़ास हो जाता है जिस के नतीजे में औरतों का मर्दों के साथ इख़्तिलात (और मिलना जुलना) भी नहीं होता, आमना सामना भी नहीं होता और राह चलने वाले मर्दों के लिए परेशानी भी नहीं होती बल्कि उनको ब-आसानी रास्ता मिल जाता है और उन्हें औरतों के किसी एक तरफ होने का भी इंतिज़ार नहीं करना पड़ता।
चुनांचे शुअ़बुल ईमान में है कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लइहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि: "औरतों के लिए रास्ते के दर्मियान में चलने का हक़ नहीं।"
इसी तरह शुअ़बुल ईमान की एक और हदीस में है कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लइहि वसल्लम मस्जिद के बाहर खड़े थे कि रास्ते में मर्दों और औरतों का इख़्तिलात (और इकट्ठा चलना) हो गया तो हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लइहि वसल्लम ने औरतों से फ़रमाया कि: "पीछे हटो, तुम्हें रास्ते के दर्मियान में चलने का हक़ नहीं, बल्कि तुम पर लाज़िम है कि रास्ते के एक तरफ हो कर चलो।"
चुनांचे इस इरशाद के नतीजे में औरत रास्ते के एक तरफ इस क़दर दीवार से लग कर चलती कि दीवार में उस का कपड़ा या चादर वग़ैरा अटक जाता।
7436: عَنْ أَبِي عَمْرِو بْنِ حِمَاسٍ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللهِ ﷺ: «لَيْسَ لِلنِّسَاءِ سَرَاةُ الطَّرِيقِ» يَعْنِي وَسَطَ الطَّرِيقِ ..... وَزَادَ وَقَالَ أَبُو عَلِيٍّ الْحَسَنُ بْنُ مُكْرَمٍ: فَصَحِبْتُ أَبَا عُبَيْدٍ فِي طَرِيقِ الْجَامِعِ يَوْمَ الْجُمُعَةِ، فَقَالَ: يَا أَبَا عُبَيْدٍ، لَيْسَ لِلنِّسَاءِ سَرَاةُ الطَّرِيقِ؟ قَالَ: يَمْشِيَنَ فِي الْجَنَبَاتِ.
7437: عَنْ حَمْزَةَ بْنِ أَبِي أُسَيْدٍ الْأَنْصَارِيِّ عَنْ أَبِيهِ أَنَّهُ سَمِعَ رَسُولَ اللهِ ﷺ يَقُولُ وَهُوَ خَارِجٌ مِنَ الْمَسْجِدِ، فَاخْتَلَطَ الرِّجَالُ مَعَ النِّسَاءِ فِي الطَّرِيقِ، فَقَالَ رَسُولُ اللهِ ﷺ لِلنِّسَاءِ: «اسْتَأْخِرْنَ، لَيْسَ لَكُنَّ أَنْ تَخْفَقْنَ الطَّرِيقَ، عَلَيْكُنَّ حَافَّاتِ الطَّرِيقِ»، فكَانَتِ الْمَرْأَةُ تَلْصَقُ بِالْجِدَارِ، حَتَّى إِنَّ ثَوْبَهَا لَيَتَعَلَّقُ بِالشَّيْءِ يَكُونُ فِي الْجِدَارِ مِنْ لُزُومِهَا بِهِ.
इस से ये भी मालूम हुआ कि मर्दों और औरतों का बाहमी इख़्तिलात और रश (और भीड़) का होना ममनूअ़ (मना) है, इसलिए औरतों को रास्ते में इस तरह चलना चाहिए कि उनका मर्दों के साथ इख़्तिलात (और इकट्ठा होने की सूरत पेश) ना आए।
🌸 *इस इरशादे नबवी से दर्जे ज़ैल तालीमात सामने आती हैं:*
☀️ ख़्वातीन रास्ते के दर्मियान में ना चलें बल्कि दाएं या बाएं किसी एक तरफ हो कर चलें।
☀️ ख़्वातीन रास्ते में मर्दों के साथ गुल मिल कर रश (और भीड़) ना बनायें, मर्दों के दर्मियान में भी ना चलें और ना ही बाहमी इख़्तिलात करें बल्कि मर्दों से किसी एक तरफ और अलग हो कर चलें।
☀️ ख़्वातीन रास्ते में इस तरह ना चलें कि वो रास्ते को बंद करके रास्ते पर क़ब्ज़ा जमा लें और मर्दों को गुज़रने का रास्ता ही ना मिले, बल्कि एक क़तार (और लाइन) की तरह यूँ चलें कि गुज़रने वालों को मुश्किलात ना हों।
आजकल अफ़सोस नाक सूरते हाल ये है कि ख़्वातीन रास्ते के दर्मियान में चलती हैं और इस तरह चलती हैं कि रास्ते को बंद कर लेती हैं कि मर्दों के लिए गुज़रने का रास्ता ही नहीं देतीं बल्कि बे परवाही के अंदाज़ में चलती जाती हैं हत्ता कि उन्हें एक तरफ होने के लिए आवाज़ दे कर तम्बीह करनी पड़ती है, ये किस क़दर हया के ख़िलाफ़ (और बेशर्मी की) बात है कि एक मुसलमान औरत को आवाज़ देने की ज़रूरत पड़ जाए!! हमारी मुसलमान बहनों को राह चलते हुए ये एहसास होना चाहिए कि वो घर में नहीं बल्कि घर से बाहर हैं, रास्ते में चल रही हैं, मर्द हज़रात उनकी तरफ मुतवज़्ज़ेह होते हैं और इनको देख कर मर्द गुनाहों के मुर्तकिब हो जाते हैं, एक मुसलमान औरत के लिए ये निहायत ही नाज़ेबा काम हैं, इसलिए राह चलते हुए इन बुराइयों से इज्तिनाब करना (और बचना) चाहिए।
3️⃣ *राह चलते हुए ख़ामोशी इख्तियार करें:*
हयादार मुसलमान ख़्वातीन की हया (और शर्म) का तक़ाज़ा ये है की वो राह चलते हुए ख़ामोश रहें, ताकि उनकी बातों की वजह से मर्द उन की तरफ मुतवज्जेह ना हों और ये मर्दों के लिए फ़ितने का बाइस (और सबब) ना बनें। आजकल निहायत ही अफ़सोस से कहना पड़ता है कि मुसलमान ख़्वातीन राह चलते हुए बातें किये जाती हैं, गप शप लगाती हैं, हत्ता कि... अल्लाह माफ़ फरमाए... बे तकल्लुफी करती हैं, हंसी मज़ाक़ करती हैं और क़हक़हे तक लगाती हैं, अफ़सोस सद अफ़सोस! क्या ये इस्लामी तअलीमात हैं?? क्या ये हया दार मुसलमान ख़्वातीन की शान के मुनासिब है? जब ये बात मालूम भी है कि फ़ितने का दौर है, बे हयाई का दौर दौरा है, इसके बावजूद भी गली कूचों में ये बे शर्मी की हरकतें होती हैं, यक़ीनन इन बे हयाई की हरकतों की वजह से मुताद्दिद (कई) फ़ितने वजूद में आते हैं। क्या इन मुसलमान ख़्वातीन से इतना भी नहीं होता कि वो ये बातें घर जाकर कर लिया करें, आखिर रास्ते में ऐसी भी क्या ज़रूरत पेश आ जाती है बातें करने की?? अगर कोई ज़रूरी बात करने की हा़जत (और ज़रुरत) पेश आये तो आहिस्ता (और धीमी) आवाज़ से बक़द्रे ज़रूरत बात कर ली जाए। और इस से बढ़ कर अफ़सोस नाक बात ये है कि दीन सीखने के लिए जाने वालीं बाज़ तालिबात की हा़लत भी यही है कि रास्तें में बातें करती हैं, हंसी मज़ाक़ करती हैं انا للہ وانا الیہ راجعون۔۔۔!..
इन तमाम मुसलमान बहनों से यही गुज़ारिश है कि इस्लामी तालीमात को समझें, उन पर अमल पैरा रहें, अपनी हया (व शर्म) और इ़ज़्ज़त की हिफाज़त करें और हर उस काम से बचें जिस से अल्लाह तआला नाराज़ होता हो।
*यक़ीनन अल्लाह तआला की रज़ा(और उस की खुशनूदी) एक मुसलमान ख़ातून के लिए सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है!!*
4️⃣ *राह (रास्ता) चलने के मुतफर्रिक़ (चंद) आदाब:*
☀️ ख़्वातीन राह चलते हुए अपनी हया (व शर्म) और पर्दे की खूब हिफाज़त करें कि ऐसा कोई काम ना करें जिस से ज़रा सी भी बे पर्दगी होती हो और वह हया (और शर्म) के ख़िलाफ़ हो।
☀️ ख़्वातीन रास्ते में बेजा (और गलत जगह) खड़ी होने से इजतिनाब करें (और बचें)।
☀️ अपने बुर्के़ का ख्याल रखें।
☀️ इस अंदाज़ से ना चलें कि जिस से बेहयाई (और बेशर्मी) ज़ाहिर होती हो।
☀️ बिला वजह इधर उधर ना देखें।
☀️ अपने काम से काम रखें, जिस ज़रुरत के लिए घर से बाहर निकली हैं, वह पूरी होते ही फ़ौरन घर लौट आएं।
☀️ अपनी आवाज़ बुलंद करने से इजतिनाब करें (और बचें)।
☀️ रास्ते में ध्यान और तवज्जोह से चलें ताकि लाइल्मी (, बे ध्यानी) और बे तवज्जुही में कोई नामुनासिब सूरते हा़ल पेश ना आए।
☀️ अगर कोई बच्चा साथ चल रहा हो और वह ज़रा इधर उधर हो जाए तो उसे बुलाने के लिए आवाज़ बुलंद ना करें बल्कि अज़ ख़ुद चल कर उस को साथ ले लें।
☀️ ऐसा ज़ेवर ना पहनें जो बजता हो।
☀️ खुशबू लगा कर बाहर निकलने से इजतिनाब करें (और बचें), जैसा कि सुननुत तिरमिज़ी में है कि हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: "हर [बदनज़री (और बुरी नज़र) करने वाली] आंख ज़िनाकार है, और जब कोई औरत खुशबू लगा कर लोगों के पास से गुज़रे तो ऐसी औरत ज़िनाकार है।"
2786: عَنْ غُنَيْمِ بْنِ قَيْسٍ عَنْ أَبِي مُوسَى، عَنِ النَّبِيِّ ﷺ، قَالَ: «كُلُّ عَيْنٍ زَانِيَةٌ، وَالمَرْأَةُ إِذَا اسْتَعْطَرَتْ فَمَرَّتْ بِالمَجْلِسِ فَهِيَ كَذَا وَكَذَا» يَعْنِي زَانِيَةً.
माक़ब्ल (ऊपर) की इस तफ़्सील से ख़्वातीन के लिए राह (रास्ता) चलने के आदाब व अह़काम बख़ूबी मालूम हो जाते हैं, जिन पर अमल करने के नतीजे में ख़्वातीन अल्लाह तआ़ला की रजा़ (और खुशनूदी) हासिल कर सकती हैं और अपनी हया (व शर्म) और इज्ज़त की हिफाज़त भी कर सकती हैं, इसी तरह इस के नतीजे में बहुत से गुनाहों और फितनों का सद्दे बाब भी हो सकता (और फित्नों से बचने का ज़रिया बन सकता) है।
अल्लाह तआ़ला तमाम मुसलमान बहनों को दीन पर मुकम्मल अमल पैरा होने की तौफ़ीक अ़ता फरमाए और हर किस्म के फितनों से महफूज़ फरमाए।
*फ़ायदा:*
इसी से वाबस्ता (ऊपर बयान किए गए मसअले से जुड़ा हुआ) एक अहम मसअला यह है कि औरत का बुर्का कैसा होना चाहिए?? उस के लिए इस्लाहे अग्लात सिलसिला नंबर 23 मुलाह़जा़ फरमाएं।
✍🏻: मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम
फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची
हिंदी तर्जुमा व तसहील:
अल्तमश आ़लम क़ासमी
9084199927
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