जकात, सदक़तुल फित्र (फितरा) और क़ुरबानी के निसाब के बारे में बाज़ गलत फहमियों का इज़ाला زکوٰۃ، صَدقۃُ الفطر اور قُربانی کے نصاب سے متعلق بعض غلط فہمیوں کا اِزالہ

 ✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨



सिलसिला 42:

🌻 *जकात, सदक़तुल फित्र (फितरा) और क़ुरबानी के निसाब से मुतअ़ल्लिक़ बाज़ गलत फहमियों का इज़ाला:*


(आगे पढ़ने से पहले यह जान लें कि ज़कात फित्रा वगैरा के बयान में निसाब का शब्द आता है तो इस का क्या मतलब है?

निसाब: जिन मालों में ज़कात फ़र्ज़ है शरीअ़त ने उन की ख़ास खास मिक़दार तय और फिक्स कर दी है कि जब उतनी मिक़दार किसी के पास हो जाए तो उस पर ज़कात फ़र्ज़ होती है, उसी मिक़दार को निसाब कहते हैं।

फितरा वाजिब होने का निसाब यानी मिक़दार अलग है, तफ़्सील आगे आ रही है। अनुवादक)

=============


सदक़तुल फित्र (फितरा) और क़ुरबानी के निसाब से मुतअ़ल्लिक़ (और ‌ इन के वाजिब होने की ख़ास मिक़दार के बारे में) बहुत से मुसलमान गलतियों और गलत फहमियों‌ का शिकार हैं, उन्हें निसाब के बारे में मुकम्मल मालूमात नहीं, जिस के नतीजे में ज़ाहिर है कि मुतअ़द्दिद (कई) गलतियां सामने आती हैं, और इस की बुनियादी वजह यही है कि हमारे मुसलमान भाई दीन सीखे बग़ैर ही दीन पर अमल कर रहे होते हैं, हालांकि यह तो एक वाज़ेह़ हकीकत है कि दीन सीखे बग़ैर दीन पर हरगिज़ अमल नहीं हो सकता! ज़ैल में (नीचे) ज़कात, सदक़तुल फित्र (फितरा) और क़ुरबानी‌ से मुतअ़ल्लिक़ चंद उसूली (और ज़रूरी) बातें ज़िक्र की जाती हैं ताकि गलतियों का इज़ाला हो सके।

हमारे मुआ़शरे में उमूमी तौर पर जकात, सदक़तुल फित्र और क़ुरबानी के निसाब से मुतअ़ल्लिक़ (और इन की ख़ास मिकदार के बारे में) दर्जे ज़ैल गलतियां राइज हैं:

❶ बहुत से लोग इस गलती में मुब्तला हैं कि जिस शख्स पर ज़कात फ़र्ज़ नहीं, तो उस को ज़कात देना जाएज़ है, गोया कि उन के नज़दीक ज़कात का मुस्तहिक़‌ होने के लिए इतनी बात काफी है कि उस पर ज़कात फ़र्ज़ ना हो।

❷ इसी तरह बहुत से लोग इस गलत फहमी में भी मुब्तला हैं कि जिस शख्स पर जकात फ़र्ज़ है तो सिर्फ उसी पर सदक़तुल फित्र (फितरा) और क़ुरबानी वाजिब है, और जिस शख़्स पर जकात फ़र्ज़ नहीं, तो उस पर सदक़तुल फित्र और क़ुरबानी भी वाजिब नहीं।

वाज़ेह़ रहे कि यह वाज़ेह़ (और साफ़) ग़लत फहमियां हैं, क्योंकि निसाब‌ को देखते हुए ज़कात के मुआ़मले में मुसलमानों के तीन तबक़ात हैं:

① जिन पर जकात फ़र्ज़ है।

② जिन पर जकात भी फ़र्ज़ नहीं और उन के लिए लेना भी जाएज़ नहीं।

③ जिन के लिए ज़कात लेना जाएज़ है।

इस की तफ़्सील ये है कि ज़कात, सदक़तुल फ़ित्र (फितरा) और क़ुर्बानी के निसाब से मुताल्लिक़ (और इन की खास मिक़दार के बारे में) मुसलमानों में तीन तबक़े (तीन तरह़ के लोग) पाए जाते हैं:


1️⃣ *पहला तब्क़ा:* जिनके पास ज़कात का निसाब मौजूद होता है।

☀️ *हुक्म:* इन के ज़िम्मे ज़कात भी फर्ज़ है, और अगर सदक़ा ए फ़ित्र और क़ुर्बानी के अय्याम (दिनों) में निसाब मौजूद हो तो उनके ज़िम्मे सदक़-ए-फ़ित्र और क़ुर्बानी भी वाजिब हैं।


2️⃣ *दूसरा तब्क़ा:* जिनके पास ज़कात का निसाब भी नहीं होता, और सदक़ ए फ़ित्र और क़ुर्बानी का निसाब भी नहीं होता।

☀️ *हुक्म:* इनके ज़िम्मे ज़कात, सदक़-ए-फ़ित्र और क़ुर्बानी में से कोई हुक्म भी लाज़िम नहीं होता, यही वो तब्क़ा है जिनको ज़कात, सदक़-ए-फ़ित्र और सदक़ाते वाजिबा (वाजिब सदक़ा) देना जाइज़ है।


3️⃣ *तीसरा तब्क़ा:* जिनके पास ज़कात का निसाब तो नहीं होता अलबत्ता सदक़-ए-फ़ित्र और क़ुर्बानी का निसाब मौजूद होता है।

☀️ *हुक्म:* इनके ज़िम्मे ज़कात तो फ़र्ज़ नहीं अलबत्ता सदक़-ए-फ़ित्र और क़ुर्बानी वाजिब हैं, ये वो तब्क़ा है कि इनके लिए भी ज़कात लेना जाइज़ नहीं।


🌻 *ज़कात और सदक़-ए-फ़ित्र (फितरे) के निसाब में फ़र्क़:*


ज़कात और सदक़-ए-फ़ित्र के निसाब में फ़र्क़ ये है कि ज़कात में तो सिर्फ चार चीज़ों यानी सोना, चांदी, रक़म और सामाने तिजारत का एतिबार किया जाता है, जब्कि सदक़-ए-फ़ित्र में इन चार चीज़ों के अलावा ज़रूरत से ज़ाइद सामान और माल का भी हिसाब किया जाता है, जिसका मतलब ये है कि अगर वो शख़्स इन चार चीज़ों की वजह से साहिबे निसाब बना है तो उसको ज़कात का निसाब कहा जाता है, लेकिन अगर वो ज़रूरत से ज़ाइद सामान की वजह से साहिबे निसाब बना है तो उसको सदक़ा ए फ़ित्र का निसाब कहा जाता है।

वाज़ेह रहे कि सदक़-ए-फ़ित्र और क़ुर्बानी का निसाब एक ही है।


🌼 *मज़कूरा तफ़्सील से दर्जे जै़ल अहकाम साबित होते हैं:*

1️⃣ जिस शख़्स के ज़िम्मे ज़कात फ़र्ज़ है तो उसके ज़िम्मे सदक़-ए-फ़ित्र और क़ुर्बानी भी वाजिब है, और ऐसे शख़्स के लिए ज़कात लेना भी जाइज़ नहीं।

2️⃣ जिस शख़्स के पास ज़कात का निसाब‌ तो ना हो लेकिन सदक़तुल फित्र (फितरा) और कुर्बानी का निसाब‌ हो, तो उस पर ज़कात तो फ़र्ज़ नहीं, अलबत्ता उस के जिम्मे सदक़तुल फित्र (फितरा) और कुर्बानी वाजिब है, और उस के लिए ज़कात लेना जाएज़ नहीं।


3️⃣ ज़कात सिर्फ़ उसी शख़्स को देना जाएज़ है जिस के पास ज़कात का निसाब भी ना हो और सदक़तुल फित्र का निसाब भी ना हो। (مستفاد من کتب الفقہ)

इस से मालूम हुआ कि ज़कात देते वक़्त सिर्फ़ यह देखना काफी नहीं कि उस पर जकात फ़र्ज़ है या नहीं, बल्कि ज़कात देते वक़्त यह देखना ज़रूरी है कि उस के पास सदक़तुल फित्र और क़ुरबानी जितना निसाब है या नहीं।

उम्मीद है कि इन उसूली बातों से मुतअ़द्दिद (कई) गलत फहमियों का इज़ाला हो सकेगा।


☀ الجوہرۃ النیرۃ شرح مختصر القدوری میں ہے:

(قَوْلُهُ: وَلَا يَجُوزُ دَفْعُ الزَّكَاةِ إلَى مَنْ يَمْلِكُ نِصَابًا مِنْ أَيِّ مَالٍ كَانَ) سَوَاءٌ كَانَ النِّصَابُ نَامِيًا أَوْ غَيْرَ نَامٍ، حَتَّى لَوْ كَانَ لَهُ بَيْتٌ لَا يَسْكُنُهُ يُسَاوِي مِائَتَيْ دِرْهَمٍ لَا يَجُوزُ صَرْفُ الزَّكَاةِ إلَيْهِ، وَهَذَا النِّصَابُ الْمُعْتَبَرُ فِي وُجُوبِ الْفِطْرَةِ وَالْأُضْحِيَّةِ، قَالَ فِي «الْمَرْغِينَانِيِّ»: إذَا كَانَ لَهُ خَمْسٌ مِنْ الْإِبِلِ قِيمَتُهَا أَقَلُّ مِنْ مِائَتَيْ دِرْهَمٍ يَحِلُّ لَهُ الزَّكَاةُ وَتَجِبُ عَلَيْهِ، وَلِهَذَا يَظْهَرُ أَنَّ الْمُعْتَبَرَ نِصَابُ النَّقْدِ مِنْ أَيِّ مَالٍ كَانَ بَلَغَ نِصَابًا مِنْ جِنْسِهِ أ


َوْ لَمْ يَبْلُغْ، وَقَوْلُهُ: إلَى مَنْ يَمْلِكُ نِصَابًا بِشَرْطِ أَنْ يَكُونَ النِّصَابُ فَاضِلًا عَنْ حَوَائِجِهِ الْأَصْلِيَّةِ.


✍🏻: मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा व तसहील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

9084199927

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ