माहे रबीउ़ल अव्वल में खाने पीने की चीजें बांटने का हुक्म ماہ ربیع الاول میں کھانے پینے کی اشیاء تقسیم کرنے کا حکم

 ✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨



सिलसिला 48:

🌻 *माहे रबीउ़ल अव्वल में खाने पीने की चीजें तक़सीम करने (बांटने) का हुक्म*


माहे रबीउल अव्वल में राएज (होने वाली) बिदआ़त व रुसूमात में से एक गैर शरई (शरीअ़त के खिलाफ) अ़मल यह भी है कि बहुत से लोग माहे रबीउल अव्वल खुसूसन 12 तारीख को साबीलें लगा कर दूध या शर्बत पिलाते हैं, हलवा, चावल या दीगर (दूसरे) खाने पका कर तकसीम करते (और बांटते) हैं, इस को बहुत बड़े अज्र व सवाब का बाइ़स (काम) समझते हैं और इस के खुद साखता (अपनी तरफ से बनाए हुए) फज़ाइल बयान किए जाते हैं।

दर हकीकत यह सब कुछ शरीअ़त के मिज़ाज से नावाक़िफियत (और दीन की सही जानकारी ना होने) का नतीजा है कि हम बिदआ़त को भी नेकी समझने लगते हैं और हमें यह अहसास ही नहीं होता कि हम नेक काम कर रहे हैं या गुनाह कमा रहे हैं!!

ह़क़ीक़त यह है कि यह तमाम तर चीजें बिदआ़त के ज़ुमरे में आती हैं जिन से इजतिनाब करना (और बचना) ज़रूरी है, जिस की वुजूहात दर्जे ज़ैल हैं (इस के बिदअत होने की वजहें निम्नलिखित हैं):

1️⃣ अगर माहे रबीउल अव्वल खुसूसन 12 तारीख को यह खाने पीने की चीजें इस लिए तकसीम की जाती (और बांटी) जाती हैं कि यह ई़द का मौक़ा है और ई़द के मौके़ पर खुशी होनी चाहिए, तो वाज़ेह़ रहे (मालूम होना चाहिए) कि जब ई़द मीलाद का तसव्वुर ही शरीअ़त के खिलाफ है तो इसी की बुनियाद पर अंजाम दिए जाने वाले तमाम आमाल ग़ैर शरई़ होंगे, (यानी जब दीन में ई़द मीलाद की कोई हकीकत नहीं, आप ﷺ सह़ाबा और उस के बाद 600 साल तक कभी यह ईद नहीं मनाई गई तो फ़िर इस के नाम पर होने वाले सारे काम शरीअ़त के खिलाफ होंगे), इस लिए इस की मुमानअ़त (मना होने) के लिए इतना ही काफी है कि क़ुरआन व सुन्नत और खैरूल क़ुरून जैसे मुबारक ज़मानों से यह चीजे़ं साबित नहीं जो आज इश्क़े नबवी और दीन के नाम पर अपनाई जाती हैं।

2️⃣ अगर माहे रबीउल अव्वल खुसूसन 12 तारीख को यह खाने पीने की चीजें तकसीम करने (बांटने) से मकसूद सदक़ा देना है, तो वाज़ेह़ (और मालूम) रहे कि सदक़ा ‌तो साल भर में किसी भी दिन दिया जा सकता है, और सदक़े में कोई भी चीज़ दी जा सकती है, लेकिन इस के लिए महीना या दिन ख़ास करना या सदक़े में कोई चीज़ ख़ास करना शरीअ़त के खिलाफ और बिदअ़त है। यह शरीअ़त का एक अहम उसूल है जिस को समझने की ज़रुरत है।

3️⃣ अगर माहे रबीउल अव्वल खुसूसन 12 तारीख को यह खाने पीने की चीजें तकसीम करने (बांटने) से मकसूद ईसाले सवाब (और सवाब पहुंचाना) है तो वाज़ेह़ (और मालूम) रहे कि ईसाले सवाब के लिए ना तो कोई दिन या महीना ख़ास है, और ना ही कोई खाने पीने की चीज़ तकसीम करना (बांटना) ज़रूरी है, बल्कि ईसाले सवाब तो किसी भी नेक अमल का किया जा सकता है, इस लिए ईसाले सवाब के लिए भी महीना या दिन ख़ास करना या ईसाले सवाब में कोई चीज़ खास करना शरीयत के खिलाफ है।


🌼‌ *माहे रबी उल अव्वल की बिदआत पर मुश्तमिल खाने पीने का शरई हुक्म:*


माहे रबी उल अव्वल में उमूमन बहुत से घरों में ईद मीलाद की बिदआत पर मुश्तमिल खाने पीने की चीज़ें आती रहती हैं या गली कूचों और रास्तों में इन चीज़ों से वास्ता पड़ता रहता है, इसलिए शरई एतिबार से इन चीज़ों के खाने पीने का तफ़्सीली हुक्म समझना चाहिए:

1️⃣  शरीअ़त हर मुसलमान से ये तक़ाज़ा करती है कि वो सुन्नत व शरीअत की पैरवी करते हुए बिदआत से ख़ुद भी इज्तिनाब करे और दूसरों को भी बिदआत तर्क करने (और छोड़ने) की तरग़ीब दे।

2️⃣ इसी तरह हर वो काम जिस से बिदआत की तरवीज, इशाअत  और हौसला अफ़ज़ाई होती हो उस से भी मुकम्मल इज्तिनाब करे, (जिस काम में बिदअ़त को रिवाज देना और उसे बढ़ावा देना पाया जाता हो, उस से भी बचे) कियोंकि ये भी गुनाह के ज़ुमरे में आता है।

इसलिए बिदआत पर मुश्तमिल मजालिस या कामों के लिए चंदा देना, किसी भी क़िस्म का तआवुन करना, उनकी तारीफ़ करना, उनके लिए दावत या मुहिम चलाना, उनमें शिरकत करना या इस तरह का कोई भी काम करना जिससे बिदआत को तक़वियत (और बढ़ावा) मिले; ये सब शरीअत के ख़िलाफ़ है।

वाज़ेह रहे कि शरीअत का मिज़ाज बिदआत की हौसला शिकनी का है।

3️⃣ इस लिए माहे रबी उल अव्वल की बिदआत पर मुश्तमिल मजालिस और खाने पीने के मक़ामात में शरीक होना ना जाइज़ है कियोंकि इससे बिदआत की शान व शौकत में इज़ाफ़ा होता है और उनको क़ुव्वत और रिवाज मयस्सर आता है। (इन में शरीक नहीं होना चाहिए क्योंकि इस से बिदअ़तें बढ़ती हैं और रिवाज पाती हैं)।


4️⃣ अलबत्ता अगर कोई शख़्स इन बिदआत पर मुश्तमिल ये खाना पीना किसी के हाँ भेज दे तो ऐसी सूरत में मसअला वाज़ेह रहे कि अगर हराम होने की कोई और वजह मौजूद ना हो तो महज़ (सिर्फ़) बिदअत होने की वजह से वो खाना पीना अपनी ज़ात में हराम नहीं हो जाता, अलबत्ता कोशिश यही की जाए कि इसे वसूल ही ना किया (लिया ही ना) जाए और उन के सामने सही सूरते हाल वाज़ेह (और ज़ाहिर) की जाए, या अगर वसूल ही करना (और लेना) पड़े तब भी उन के सामने सही सूरते हाल वाज़ेह (और ज़ाहिर) की जाए कि ये चीज़ें शरीअत के मुताबिक़ नहीं और ना ही हम इसके क़ाइल हैं (ना ही हम इसे सही मानते हैं), वसूल करने की सूरत में इस खाने पीने से इज्तिनाब करते (और बचते) हुए किसी ग़रीब के हाँ भेज दिया जाए तो बेहतर है ताकि बिदआत की नफ़रत दिल में बरक़रार रहे और एहतियात का दामन हाथ से ना छूटे, और जब लेने वाले ना रहेंगे तो देने वाले ख़ुद बख़ुद ये बिदआत तर्क कर देंगे, अलबत्ता अगर ख़ुद ही खा लिया जाए तो हराम नहीं बशर्तेके हराम होने की कोई और वजह मौजूद ना हो, अलबत्ता इज्तिनाब करने (और बचने) ही में एहतियात है, ख़ुसूसन वो शख़्स तो खुसूसी इज्तिनाब करे (और बचे) जो कि मुक़्तदा हो और लोग उनकी पैरवी करते हों ताकि बिदआत का ख़ात्मा हो सके। अलबत्ता अगर किसी ने हराम माल से ये खाना पीना तय्यार किया है या गैरुल्लाह की नज़र व नियाज़ की नियत से कोई जानवर ज़िब्ह करके तैय्यार किया है तो उसका हराम होना वाज़ेह (और ज़ाहिर) है, और जहाँ माहौल और अफ़राद की एतिक़ादी हालत की वजह से पहचान ना होती हो (कि हराम माल का है या हलाल का) और इस पहलू का इमकान हो (कि हराम माल का भी हो सकता है) तो वहां भी वसूल ना करने (और ना लेने) ही में एहतियात है।

5️⃣ जो शख़्स सही अक़ीदा मुसलमान है और उसके हाँ से आम अय्याम (आम दिनों) में भी खाने पीने की चीज़ें घर आती रहती हैं और वो माहे रबी उल अव्वल ख़ुसूसन 12 तारीख़ को भी ऐसी कोई चीज़ भेजे और ये कहे कि मैनें किसी भी ग़लत नज़रिये से नहीं भेजी है तो उसका खाना बिल्कुल दुरुस्त है अलबत्ता भेजने वाला कोशिश ये करे कि बिदआत के खात्मे के लिए ख़ुसूसन 12 तारीख़ को ये अहतमाम ना करे तो अच्छा है‌।


(تفصیل ملاحظہ فرمائیں: ماہِ محرم  الحرام کے فضائل واحکام از مفتی محمد رضوان صاحب، فتاویٰ عثمانی ودیگر کتب)


✍🏻: मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा व तसहील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

9084199927

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