✨❄️ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄️✨
सिलसिला 46
🌻 *ह़ज़ूर अक़दस ﷺ की तारीखे विलादत (पैदाइश की तारीख) को रोज़ा रखने की तह़क़ीक़*
🌼 *ह़ज़ूर अक़दस ﷺ की तारीखे विलादत (पैदाइश की तारीख) को रोज़ा रखने से मुतअ़ल्लिक़ गलत फहमी:*
बाज़ लोग इस गलत फहमी का शिकार हैं कि चूंकि ह़ज़ूर अक़दस ﷺ ने अपनी पैदाइश के दिन रोज़ा रखा है इस लिए तारीखे पैदाइश को रोज़ा रोज़ा रखना मुसतह़ब या मसनून है, इसी पर अ़मल करते हुए हमें भी 12 रबीउ़ल अव्वल को रोज़ा रखना चाहिए, और बाज़ लोग इसी तनाज़ुर में यह भी कहते हैं कि ह़ज़ूर अक़दस ﷺ से अपनी पैदाइश की तारीख में सिर्फ एक ही अ़मल साबित है और वह यही रोज़ा है, इस लिए 12 रबीउल अव्वल को ई़द मीलाद नहीं मनाना चाहिए बलकि रोज़ा रखना चाहिए, गोया कि ई़द मीलादुन नबी ﷺ जैसे बिदअ़त अ़मल की तरदीद में भी यह बात की जाती है। इस तरह की मुतअ़द्दिद (कई) बातें सुनने और देखने को मिलती हैं। इस गलत फहमी की वजह यह मालूम होती है कि बहुत से लोग ह़ज़ूर अक़दस ﷺ की तारीखे पैदाइश और यौमे पैदाइश (पैदाइश की तारीख और दिन) में फर्क़ नहीं कर पाते, जिस की वजह से आजकल "तारीख" की जगह "यौम" का बकसरत (बहुत) इस्तेमाल है।
ज़ेरे नज़र तह़रीर से इसी ग़लत फहमी का इज़ाला मक़सूद है।
🌼 *हुज़ूर अक़दस ﷺ के यौमे पैदाइश को रोज़ा रखने की हकीकत:*
हुज़ूर सरवरे काएनात ﷺ की मुबारक विलादत (पैदाइश) पीर के रोज़ हुई, जैसा कि सह़ीह अह़ादीस से साबित है:
1️⃣ सह़ीह मुस्लिम में ह़ज़रत अबू क़तादा अंसारी رضی اللہ عنہ से रिवायत है कि हुज़ूर अकरम ﷺ से पीर के दिन रोज़ा रखने के बारे में सवाल किया गया तो आप ﷺ ने फ़रमाया: "पीर के रोज़ मेरी विलादत हुई और इसी रोज़ मुझे नबुव्वत अ़ता की गई [या पीर के रोज़ मुझ पर वही़ नाजि़ल की गई]"।
وَسُئِلَ ﷺ عَنْ صَوْمِ يَوْمِ الاِثْنَيْنِ، قَالَ ﷺ: «ذَاكَ يَوْمٌ وُلِدْتُ فِيهِ، وَيَوْمٌ بُعِثْتُ أَوْ أُنْزِلَ عَلَىَّ فِيهِ».
(صحیح مسلم کتاب الصيام حدیث: 2804)
2️⃣ इसी तरह बाज़ रिवायात में पीर के दिन रोज़ा रखने की एक और वजह थी बयान फरमाई गई है, चुनांचे सुनने अबी दाऊद में है कि हज़रत उसामा बिन ज़ैद رضی اللہ عنہما फरमाते हैं कि हुज़ूर अक़दस ﷺ पीर और जुमेरात को रोज़ा रखते थे, तो उन से इस के बारे में पूछा गया तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: "बन्दों के आमाल जुमेरात और पीर के दिन अल्लाह तआ़ला की बारगाह में पेश होते हैं।"
2438: عَنْ مَوْلَى أُسَامَةَ بْنِ زَيْدٍ أَنَّهُ انْطَلَقَ مَعَ أُسَامَةَ إِلَى وَادِى الْقُرَى فِى طَلَبِ مَالٍ لَهُ فَكَانَ يَصُومُ يَوْمَ الاِثْنَيْنِ وَيَوْمَ الْخَمِيسِ، فَقَالَ لَهُ مَوْلَاهُ: لِمَ تَصُومُ يَوْمَ الاِثْنَيْنِ وَيَوْمَ الْخَمِيسِ وَأَنْتَ شَيْخٌ كَبِيرٌ؟ فَقَالَ: إِنَّ نَبِىَّ اللهِ ﷺ كَانَ يَصُومُ يَوْمَ الاِثْنَيْنِ وَيَوْمَ الْخَمِيسِ، وَسُئِلَ عَنْ ذَلِكَ فَقَالَ: «إِنَّ أَعْمَالَ الْعِبَادِ تُعْرَضُ يَوْمَ الاِثْنَيْنِ وَيَوْمَ الْخَمِيسِ».
(باب فِى صَوْمِ الاِثْنَيْنِ وَالْخَمِيسِ)
3️⃣ सुननुत तिरमिज़ी में ह़ज़रत अबू हुरैरा رضی اللہ عنہ से रिवायत है कि हुज़ूर अक़दस ﷺ ने फ़रमाया:
"पीर और जुमेरात के दिन आमाल अल्लाह तआ़ला की बारगाह में पेश किये जाते हैं, मैं चाहता हूं कि मेरा अमल रोज़े की हालत में पेश हो।"
747: عَنْ سُهَيْلِ بْنِ أَبِي صَالِحٍ عَنْ أَبِيهِ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ: أَنَّ رَسُولَ اللهِ ﷺ قَالَ: «تُعْرَضُ الْأَعْمَالُ يَوْمَ الِاثْنَيْنِ وَالخَمِيسِ، فَأُحِبُّ أَنْ يُعْرَضَ عَمَلِي وَأَنَا صَائِمٌ».
(بَابُ مَا جَاءَ فِي صَوْمِ يَوْمِ الِاثْنَيْنِ وَالخَمِيسِ)
💐 *खुलासा:*
इन तीन रिवायात से यह मालूम हुआ कि:
☀ हुज़ूर अक़दस ﷺ की विलादत बा-सआ़दत (पैदाइश) पीर के दिन हुई।
☀ हुज़ूर अक़दस ﷺ पीर के दिन रोज़ा रखा करते थे और यही उन का मुबारक मामूल था।
☀ हुज़ूर अक़दस ﷺ ने पीर के दिन रोज़ा रखने की दो वुजूहात (वजह) बयान फरमाईं: एक तो यह कि पीर के दिन मेरी पैदाइश हुई, दोम (दूसरे) यह कि पीर के दिन अअ़माल अल्लाह तआ़ला की बारगाह में पेश किये जाते हैं, मैं चाहता हूं कि मेरा अमल रोज़े की हालत में पेश हो।
🌼 *तारीखे पैदाइश और यौमे पैदाइश का फ़र्क:*
बहुत से लोग हुज़ूर अक़दस ﷺ की तारीखे पैदाइश और यौमे पैदाइश (पैदाइश के दिन) में फर्क नहीं कर पाते जिस के नतीजे में ग़लत फहमियां जन्म लेती हैं। वाज़ेह़ रहे कि तारीखे पैदाइश और यौमे पैदाइश में वाज़ेह़ (और साफ़) फ़र्क है कि तारीखे पैदाइश के माना हैं कि हुज़ूर अक़दस ﷺ माहे रबीउ़ल अव्वल की फलां तारीख को दुनिया में जलवा अफ़रोज़ हुए (तशरीफ़ लाए) जबकि यौमे पैदाइश के माना यह हैं कि हुज़ूर अक़दस ﷺ हफ्ते के फलां दिन में दुनिया में तशरीफ़ लाए। गोया कि पैदाइश की तारीख और पैदाइश के दिन में फर्क है।
🌼 *तारीखे पैदाइश में इख्तिलाफ जबकि यौमे पैदाइश में इत्तिफाक़ है:*
हुज़ूर अक़दस ﷺ के यौमे पैदाइश के बारे में उम्मत के अहले इल्म का इत्तिफाक़ है कि हुज़ूर अक़दस ﷺ की पैदाइश पीर के दिन हुई, जबकि तारीखे पैदाइश में उम्मत के अहले इल्म का शदीद (सख़्त) इख्तिलाफ है, जिस की मुदल्लल (और पूरी) तफ़्सील इस सिलसिला इसलाहे अग़लात की पिछली क़िस्त यानी सिलसिला नंबर 45 में बयान हो चुकी।
▪️امام نووی رحمہ اللہ ’’تہذیبُ الاَسماء واللُّغات‘‘ میں فرماتے ہیں:
واتفقوا على أنه ولد يوم الاثنين من شهر ربيع الأول، واختلفوا هل هو فى اليوم الثانى أم الثامن أم العاشر أم الثانى عشر، فهذه أربعة أقوال مشهورة.
(الترجمة النبوية الشريفة)
🌼 *हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की तारीख़े पैदाइश को रोज़ा रखने का कोई सुबूत नहीं:*
मा क़ब्ल (ऊपर) की तफ़्सील से ये बात वाज़ेह हो जाती है कि हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तारीख़े पैदाइश में रोज़ा रखने को सुन्नत या मुस्तहब क़रार देना हरगिज़ दुरुस्त नहीं, बल्कि ये एक खुद साख़्ता (अपनी तरफ़ से बनाई हुई) बात है कियोंकि:
1️⃣ हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम की तारीख़े पैदाइश को रोज़ा रखना अहा़दीस से साबित नहीं और ना ही सहाबा किराम से साबित है, बल्कि अहा़दीस से पैदाइश के दिन रोज़ा रखने का सुबूत मिलता है जो कि पीर का दिन है।
2️⃣ मा क़ब्ल में (ऊपर) जो रिवायात ज़िक्र हुईं उन में तारीख़े पैदाइश का ज़िक्र नहीं बल्कि योमे पैदाइश का ज़िक्र है जो कि पीर का दिन है, और हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लैहि वसल्लम तारीख़े पैदाइश में रोज़ा नहीं रखते थे बल्कि योमे पैदाइश को रोज़ा रखते थे, चुनांचे हज़रात सहाबा किराम ने योमे पैदाइश यानी पीर के दिन रोज़ा रखने से मुतअ़ल्लिक़ ही सवाल किया था।
इसलिए इस से योमे पैदाइश यानी पीर के दिन रोज़ा रखना मुस्तहब और मस्नून क़रार पाता है।
3️⃣ पीर का रोज़ा साल भर हर हफ़्ते नसीब होता है और यही हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मामूल था, जब्कि तारीख़े पैदाइश साल में एक ही बार नसीब होती है, जिसके नतीजे में ये रोज़ा साल भर में एक ही बार नसीब होगा जो कि ब ज़ाते ख़ुद अहादीस के ख़िलाफ़ है।
4️⃣ मा क़ब्ल में (ऊपर) बयान की गई एक हदीस में पीर के दिन रोज़ा रखने की वजह ये बयान फ़रमाई गई कि "पीर और जुमेरात के दिन आमाल अल्लाह तआला की बारगाह में पेश किये जाते हैं, मैं चाहता हूँ कि मेरा अ़मल रोज़े की हालत में पेश हो।"
ज़ाहिर है कि आमाल की पेशी पीर के रोज़ होती है जो कि योमे पैदाइश भी है, ना कि तारीख़े पैदाइश को।
इस लिए तारीख़े पैदाइश के रोज़े को कैसे सुन्नत या मुस्तहब क़रार दिया जा सकता है??
5️⃣ उम्मत के हज़रात अकाबिर और बुज़ुर्गाने दीन से ये साबित ही नहीं कि वो तारीख़े पैदाइश को रोज़ा रखा करते थे, अलबत्ता पीर के दिन रोज़ा रखने का मामूल वाज़ेह तौर पर साबित है।
6️⃣ फ़िक़ह की क़ुतुब (और मसाइल की किताबों) में तारीख़े पैदाइश को रोज़ा रखने का कोई ज़िक्र ही नहीं मिलता, अलबत्ता पीर के दिन रोज़ा रखने का ज़िक्र ज़रूर मिलता है।
इन तमाम वुजूहात से उन हज़रात की गलती बखूबी वाज़ेह (अच्छी तरह मालूम) हो जाती है जो कि तारीख़े पैदाइश को रोज़ा रखने को मुस्तहब या सुन्नत क़रार देते हैं।
☀️ *तम्बीह:*
1️⃣ हुज़ूर अक़दस ﷺ की तारीखे पैदाइश चाहे 12 रबीउल अव्वल हो या कोई और; सब का यही हुक्म है जो माक़ब्ल में (ऊपर) बयान हुआ कि तारीखे पैदाइश को रोज़ा रखने को सुन्नत या मुसतह़ब क़रार नहीं दिया जा सकता।
2️⃣ हुज़ूर अक़दस ﷺ की तारीखे पैदाइश को रोज़ा साबित ना होने से यह हरगिज़ लाज़िम नहीं आता कि इस दिन ईद मिलादुन्नबी ﷺ मनाया जाए, क्योंकि इस का बिदअ़त होना दीगर दलाइल से साबित है।
💐 *ख़ुलासा:*
मा क़ब्ल (ऊपर) की तफ़्सील का ख़ुलासा ये है कि रबी उ़ल अव्वल की 12 या किसी और तारीख़ को हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तारीख़े पैदाइश क़रार दे कर रोज़ा रखना मुस्तहब या मस्नून नहीं, बल्कि इस हैसियत से इसको मुस्तहब या मस्नून क़रार देना भी हरगिज़ दुरुस्त नहीं, बल्कि ये दीन में ज़्यादती है जो कि ना जाइज़ है। इस से ये भी वाज़ेह हुआ कि जशने मीलाद की तरदीद (और मना करने) में इस तारीख़ को रोज़े की तरग़ीब नहीं दी जा सकती, (इस दिन खुसूसी तौर पर रोज़ा रखने को नहीं कहा जा सकता) बल्कि शरई अहकाम के एतबार से ये तारीख़े पैदाइश भी रबी उल अव्वल की दीगर (दूसरी) तारीखों की तरह एक आम तारीख़ है जिसमें कोई मख़सूस इज़ाफ़ी (और अलग से) अमल शरीअत से साबित नहीं, अलबत्ता पीर के दिन रोज़ा रखना मस्नून और मुस्तहब है जिसकी तफ़्सील मा क़ब्ल में (ऊपर) बयान हो चुकी।
✍🏻: मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम
फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची
हिंदी तर्जुमा व तसहील:
अल्तमश आ़लम क़ासमी
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