बच्चों को क़ुरआन व ह़दीस की तालीम दी जाए


बच्चों की तरबियत क़िस्त: (4)


बच्चों को क़ुरआन व ह़दीस की तालीम दी जाए


इंसान की उ़म्र का चौथाई ह़िस्सा लड़कपन का है।

अल्लाह तआ़ला ने यह लंबा वक़्फ़ा (समय) इसलिए रखा है कि हम अपने बच्चों की तर्बियत इतनी हमागीरी (पूरे ध्यान और मेहनत) से कर लें कि वे मआरिका-ए-ह़यात (ज़िंदगी की परीक्षा) में कदम रखने के बाद कामयाबी व कामरानी हासिल कर सकें और आख़िरत में अल्लाह तआ़ला के इनआ़मात के मुस्तह़िक़ हो सकें।


लड़कपन में पहला मरह़ला (दौर) तालीम व तर्बियत का है।

इसमें बच्चों को जैसी तालीम व तर्बियत देंगे, बच्चों के जहन में वैसा ही नक़्श (असर) बैठता जाएगा।

अहले इ़ल्म फरमाते हैं:

"عَلِّمُوا أَوْلَادَكُمْ وَأَهْلِيكُمُ الْخَيْرَ وَأَدِّبُوهُمْ"

तर्जुमा:

अपने बच्चों और घर वालों को भलाई (और अच्छाई) की तालीम दो और उन्हें अदब (और अच्छे तौर-तरीके़) सिखाओ।


बच्चों के लिए तालीम बहुत ज़रूरी है।

साथ ही बच्चों की तालीम का बेहतरीन इंतज़ाम किया जाए

और इ़ल्म हासिल करने का मौका़ दिया जाए,

क्योंकि बचपन में ज़हन साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ (स्वच्छ और साफ़), क़ुव्वत-ए-ह़िफ़्ज़ (याद रखने की ताक़त/Memory Power) मज़बूत और काफ़ी नशात (Energy) होता है।


इसी वजह से तालीम व तर्बियत के लिए इस मरह़ले (स्टेज) की बड़ी अहमियत है।

अर्बी मक़ूला (कहावत)‌है:

"اَلْعِلْمُ فِي الصِّغَرِ كَالنَّقْشِ عَلَى الْحَجَرِ"

तर्जुमा:

बचपन का इ़ल्म पत्थर पर नक़्श की तरह होता है।

क्योंकि बचपन की याददाश्त (Memory) बहुत तेज़ होती है,

इसलिए जो सीख लिया जाए, वह दिमाग़ में बैठ जाता है और बच्चे की दायमी याददाश्त (लंबे समय की याद / permanent memory) का हिस्सा बन जाता है।


(जारी है)


📚 बच्चों की तरबियत और उस के बुनियादी उसूल

हिंदी अनुवाद व आसान रूप:

अल्तमश आ़लम का़समी 

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