बर्तन ढाँपने और जूते झाड़ने का हुक्म

 


सुनो सुनो !!


बर्तन ढाँपने और जूते झाड़ने का हुक्म


✍️ मुफ्ती नासिरुद्दीन मजा़हिरी


आज सुबह–सुबह हमारे छोटे भाई की अहलिया ने पानी का जग उठाया तो उसमें मरा हुआ बिच्छू नज़र आया। खुदा का शुक्र हुआ कि रात में किसी बच्चे ने पानी नहीं पिया और किसी दूसरे इस्तेमाल में यह पानी नहीं लाया गया, वरना बड़ा हादसा हो सकता था।

मुझे याद आया कि जनाब रसूल मक़बूल ﷺ ने भी बर्तनों को ढाँप कर रखने का हुक्म दिया है। चनाँचे इरशाद फ़रमाया:

“बर्तनों को ढाँप दो और मशकीज़ों को बंद कर दो, क्योंकि साल में एक रात ऐसी आती है जिसमें वबा उतरती है, जो खुला बर्तन या खुली मश्क़ पर गुज़र जाए वह उसमें उतर जाती है।” (बुख़ारी, मुस्लिम)


एक और मौक़े पर फ़रमाया:

“बर्तनों को ढाँपो, मशकीज़ों को बंद करो, दरवाज़े बंद कर दो, चराग़ बुझा दो, क्योंकि शैतान बंद दरवाज़ा नहीं खोल सकता, बंद मशकीज़ा नहीं खोल सकता, और ढका हुआ बर्तन नहीं खोल सकता।” (मुस्लिम)


हमारे नबी ﷺ ने ढाँपने की ताकीद के साथ यह भी फ़रमाया:

“अगर ढकने के लिए कुछ न हो तो कम–अज़–कम एक लकड़ी या कोई चीज़ उस पर रख दो और अल्लाह का नाम ले लो।” (मुस्लिम)


कुछ उलमा और मुहद्दिसीन ने बर्तनों को ढाँपने और पानी या खाने–पीने की चीज़ों को बंद करने को सुन्नते मुअक्कदा क़रार दिया है। जान–बूझ कर बर्तन को खुला छोड़ देना मकरूह है, क्योंकि यह नबी ﷺ के हुक्म की मुख़ालफ़त है।


जदीद–तरīn साइंस ने भी हदीस शरीफ़ की तस्दीक कर दी है। दौर–ए–हाज़िर के अतिब्बा इस बात के क़ायल हैं कि जो बर्तन रात को चंद घंटों के लिए खुले छोड़ दिए जाते हैं उनमें बीमारी पैदा हो जाती है। तरह–तरह के बैक्टीरिया, जरासीम और मक्खी–मच्छर वग़ैरह के मनफ़ी असरात उस बर्तन में पहुँच कर उसे ज़हरीला बना देते हैं।


साइंसदानों के मुताबिक़ खुला हुआ खाना और पानी चंद घंटों में फ़िज़ाई ज़र्रात से आलूदा हो जाता है। हवा में मौजूद जरासीम, वाइरस और फ़ंगस खुले खाने पर बैठ जाते हैं। ख़ास तौर पर E–Coli और सालमोनेला जैसे बैक्टीरिया दूध, गोश्त और सालन में तेजी से फैलते हैं, जो दस्त–ओ–इसहाल, फ़ूड पॉइज़निंग और मअदे की बिमारियों का बाइस बनते हैं।


 जदीद लैब टेस्ट बताते हैं कि रात भर खुला हुआ पानी बैक्टीरिया और मच्छर के अंडों का सबसे आसान निशाना बनता है। दुनिया भर में पानी से फैलने वाली बीमारियाँ जैसे टाइफ़ाइड, हैज़ा और डेंगू इसी आलूदा पानी से फैलती हैं।


इसके बरअक्स ढके हुए बर्तन में पानी कई घंटे बल्कि दिन भर महफ़ूज़ रहता है।


माहिरीन का कहना है कि रात के वक़्त रोशनी बुझ जाने के बाद मक्खियाँ, छोटे कीड़े और कॉकरोच सबसे ज़्यादा मुतहर्क़ होते हैं। यह कीड़े खाने पर बैठ कर अपने जिस्म के जरासीम मुन्तक़िल करते हैं। यही वजह है कि खाने को ढाँपने से इंसान इन बीमारियों से बच सकता है।


खुले खाने पर नमी और हवा की वजह से फ़ंगस (फफूँदी) पैदा हो जाती है। ख़ास तौर पर दूध, दही और रोटी पर फ़ंगस जल्दी लगती है, जो कैंसर पैदा करने वाले ज़हरीले माद्दे बनाती है। यही वजह है कि बर्तनों को ढाँपने का हुक्म आज के साइंसी मयार पर भी इंतिहाई सेहतमंद आदत है।


आप तअज्जुब करेंगे कि आलमी इदारा–ए–सेहत (WHO) और दुनिया की बड़ी फ़ूड–सेफ़्टी एजेंसीयों ने वाज़ेह तौर पर यही तालीमात दी हैं:

“खाने–पीने की हर चीज़ को ढाँप कर रखो।”

“पके हुए खाने को कम–अज़–कम 2 घंटे के अंदर या तो इस्तेमाल करो या फ़्रिज़ में रखो।”

“पानी हमेशा ढक कर रखो वरना बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है।”


अगर आप ध्यान दें तो यक़ीन हो जाएगा कि यह बिल्कुल वही हिदायतें हैं जो हमारे नबी अकरम ﷺ ने हज़ारों साल पहले दी थीं।


चलते–चलते जूतों के ताल्लुक़ से भी एक हदीस पेश करना मुनासिब समझता हूँ। क्योंकि जूते भी ब–मन्ज़िला–ए–बर्तन हैं। जिस तरह अंदरून–ए–जिस्म का सलामत रहना ज़रूरी है उसी तरह बेरून–ए–जिस्म को भी हर क़िस्म की तकालीफ़ से बचाना लाज़मी है। अल्लाह तआला फ़रमाते हैं:

“"وَلاَ تُلْقُواْ بِأَيْدِيكُمْ إِلَى التَّهْلُكَةِ"”

यानी "अपने आप को हलाक़त में मत डालो।"


यूट्यूब पर कई वीडियोज़ मौजूद हैं जिनमें दिखाया गया है कि जूते पहनने से पहले झाड़ लेना ज़रूरी है। कुछ जूतों में साँप बैठा हुआ मिला, जबकि बिच्छू, छिपकली या और कोई मौज़ी जानवर भी छुप सकता है।


इसी लिए नबी ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:

"إِذَا لَبِسَ أَحَدُكُمُ النَّعْلَ فَلْيَنْفُضْهُمَا"

(सुन्नन अबू दाऊद)

“जब तुम में से कोई जूता पहने तो पहले उसे झाड़ ले।”


जूतों में कंकर, पत्थर, काँटा और कीड़ा–मकोड़ा भी हो सकता है, इस लिए जूते झाड़ लेने 

में ही हिफ़ाज़त है।


(24 रबीउल–अव्वल 1447 हिजरी)


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अपनी औलाद के सामने ख़ुद को बरहना न रखें!



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