क़ुर्बानी से पहले मुख़्लिसाना अपील

 


!! सुनो सुनो !!

🌻क़ुर्बानी से पहले मुख़्लिसाना अपील

(मुफ़्ती) नासिरुद्दीन मजा़हिरी 

29 जु़लका़यदा-1444 हिजरी०  


जैसे जैसे क़ुर्बानी का वक़्त क़रीब आ रहा है मेरे दिल की धड़कनें तेज़ होती जा रही हैं ,इस लिए के मुस्लमान क़ुर्बानी तो बड़ी शान के साथ करते और मनाते हैं लेकिन इस शान के चक्कर में इस्लाम की "आन" और इस्लामी तालीमात की "जान " निकाल देते हैं। मैं सब की बात नहीं कर रहा हूँ बहुत से संजीदा ( अनुभवी, शांत,स्वभाव ) लोग ऐसे भी हैं जो क़ुर्बानी उस के तमाम तर तक़ाज़ों के साथ करते हैं लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं क़ुर्बानी के सिलसिले में जिनका रवैया इस्लाम और मुसलमानों की बदनामी का सबब बनता है ,जैसे क़ुर्बानी का जानवर लेजाने में सरकारी अहकामात(आदेश, फ़रमान) की खुल्लम खुल्ला खिलाफ वर्जी की जाती है,जिस गाड़ी में दो तीन जानवरों की गुंजाईश है उस गाड़ी में ठूँस ठूँस कर कई कई जानवर भर दिए जाते हैं जानवरों के साथ ऐसा सुलूक करते हैं के क़लम से लिखने की हिम्मत भी नहीं हो रही है ,


हम जिस मुल्क में रहते हैं उस मुल्क में हमारी तादाद (संख्या )लग भग ३० करोड़ है लेकिन एक अरब लोग ऐसे भी रहते हैं जो मुस्लमान नहीं हैं ,उन्हें हमारे मज़हब से मुहब्बत नहीं है ना ही हमारे धार्मिक संविधान से उन्हें कोई ताल्लुक़ ,बल्कि माहौल और हालात इतने खराब कर दिए गए हैं के अब बात बात में बात का पतंगड बनाने की कोशिश और शाजिश हर दिन का हिस्सा बन चुका है नौबत ये आ गई है के "जिस की लाठी उस की भैंस "वाली कहावत सच साबित होती दिखाई देती है ऐसे हालात में खुद हमें फूंक फूंक कर (सावधानी ) से क़दम रखना चाहिए ,

हमारी कोशिश होनी चाहिए के हुकूमत या अपने किसी भी पड़ोसी को कोई तकलीफ ना पहुंचे ,अब जानवरों का गोश्त खुले आम मुन्तक़िल (एक जगह से दूसरी जगह बदलना , स्थानांतरित) करने पैर पाबंदी लग गई है ,इस्लाम की शिक्षा तो शुरू से ही यही है के खाने पीने की तमाम चीज़ें छुपा कर लाएं , ले जाएँ ,हुकूमत सफाई का हुक्म देती है तो किया गलत करती है ,इस्लाम में सफाई के बारे में जितना ज़ोर दे कर अनुरोध किया गया है उतना तो किसी भी धर्म में नहीं किया गया ,जानवरों के साथ अच्छे सलूक की हिदायात हुकूमत भी देती है और इस्लाम ने तो सख्ती के साथ इस बात की तालीम दी है के जानवरों के साथ अच्छा सलूक करें ,हमारे वालिद माजिद(स्वर्गीय पिता श्री )निजामुद्दीन साहब ज़बीहे (क़ुर्बानी के जानवर)के खून उस की हड्डियां यहाँ तक के रस्सी भी ज़मीन में दबाते थे और कहते थे के क़ुर्बानी का खून भी एहतराम के क़ाबिल है इसे यूँ आम नालियों में नहीं बहाना चाहिए ,क़ुर्बानी के दिनों में आप मुसलमानो के हुस्न ए इंतज़ाम (अच्छे प्रबंधन) का प्रदर्शन और नज़ारा देख सकते हैं कहीं कुत्ते गोश्त लेकर भागे जा रहे हैं कहीं हाड़ियाँ सड़कों पर बिखरी नज़र आ रही हैं ,ये सब हुकूमत की हिदायात की खिलाफ वर्जी तो है ही साथ ही इस्लामी तालीमात और अक़्ल के तक़ाज़ों के भी खिलाफ है!


ज़िबह के वक़्त जानवरों को कम से कम तकलीफ पहुंचे ये हमारे नबी ﷺ की तालीमात है और हम क़ुर्बानी के वक़्त जानवरों के साथ लोगों के रवय्ये को अपनी आँखों से देख सकते हैं हुकूमत का आदेश है के क़ुर्बानी खुले में ना की जाये अपने घरों में सिर्फ उन जानवरों की क़ुर्बानी की जाये जो मना नहीं हैं कुछ लोगों ने हुकूमत की हिदायात पर अमल तो किया लेकिन क़ुर्बानी की वीडयों बना कर उनको वाइरल कर दिया ,सोचें अगर आप खुले में क़ुर्बानी करते तो मुमकिन था पांच दस लोग ही देखते लेकिन अब सोशल मीडिया पर देखने वालों की कोई हद नहीं कुछ बेवक़ूफ़ लोग इस क़िस्म के बेकार काम कर के इस्लाम और मुसलमानो की रुस्वाई ,जगहंसाई और फितना फैलाने की वजह बनते हैं फिर जब हुकूमत एक्शन लेती है ,मुजरिमों को जेल भेजती है तो कुछ ख़ैर-ख़्वाह(शुभचिंतक)चीखना चिल्लाना शुरू करदेते हैं के जमीयत किया कर रही है ,अरे भाई जमीयत तुम्हारे उलटे सीधे कामों के लिए ही रह गई है किया? उस के पास और भी गम किया काम हैं। 


जिन जानवरों की क़ुर्बानी पर पाबंदी है जैसे गाये ,बैल पर मुल्क के बहुत से राज्यों में पाबंदी है तो मुसलमानों को ऐसे जानवरों की क़ुर्बानी उन इलाक़ों में करने से बचना चाहिए जिन इलाक़ों में पाबंदी है ,ये अपील दारुल उलूम देवबंद और मज़ाहिर उलूम सहारनपुर की तरफ से हर साल की जाती है लिहाज़ा मदरसा मज़ाहिर उलूम (वक़्फ़ )के बुकलेट "एहकाम ईदुल अज़हा "में तफ्सील मौजूद है के " क़ानूनन गाये और उस की नस्ल की क़ुर्बानी बंद है "ज़ाहिर है हमें इस बंदिश का लिहाज़ और ख्याल रखना चाहिए और दुसरे जानवरों की ही क़ुर्बानी करनी चाहिए ,क़ुर्बानी की तमाम चीज़ें खून ,हड्डियां वगैरा सब को दबा देना चाहिए।।

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