नमाज़े तरावीह़ शरई़ ह़ैसियत - वक़्त - रकआ़त



 ✨❄ इस़लाहे़ अग़लात़: अ़वाम में राएज ग़लतियों की इसलाह़ ❄✨


सिलसिला नम्बर 215:

उर्दू में पढ़ने के लिए टच किजिए ⬇️

🌻 نمازِ تراویح: شرعی حیثیت، وقت اور رکعات

🌻 नमाज़े तरावीह़ शरई़ ह़ैसियत - वक़्त - रकआ़त

सिलसिला अह़कामे तरावीह़: 1️⃣


📿 तरावीह़ की फ़ज़ीलत और उसकी शरई़ ह़ैसियत:

1️⃣ रमज़ान-उल-मुबारक में तरावीह़ की बड़ी ही फ़जी़लत है ह़ुज़ूर अक़दस ﷺ ने इसको सुन्नत क़रार दिया है इसलिए ह़ज़राते फ़ुक़हा-ऐ-किराम फ़रमाते हैं कि हर आ़क़िल,बालिग़ ,मर्द और औ़रत के ज़िम्मे तरावीह़ सुन्नते मुअक्कदह है।

(سنن النسائی حدیث: 2210، فیض القدیر حدیث: 1660، اعلاء السنن، رد المحتار مع درمختار)

तम्बीह: इससे मअ़लूम हुआ कि जिस तरह़ मर्दों के लिए तरावीह़ पढ़ने का एहतिमाम ज़रूरी है, इसी तरह़ ख़्वातीन के लिए भी तरावीह़ का एहतिमाम ज़रूरी है, बअ़ज़ ख़्वातीन तरावीह़ को कोई अहमियत नहीं देतीं, बल्कि इसको तर्क करने (छोड़ने) के लिए मअ़मूली बहानों का भी सहारा लेती हैं, उनका यह तर्ज़े अ़मल हरगिज़ दुरुस्त नहीं।


2️⃣ तरावीह़ चूंकि सुन्नते मुअक्कदह है, इसलिए बिला उ़ज़्र तरावीह़ छोड़ते रहना गुनाह है। (رد المحتار، امداد الفتاویٰ)


📿 तरावीह़ का वक़्त:

1️⃣ एक रमज़ान उल मुबारक की रात से तरावीह़ का वक़्त शुरू हो जाता है और माहे रमज़ान की आख़िरी रात तक रहता है यअ़नी माहे रमज़ान की हर रात तरावीह़ पढ़ना सुन्नते मुअक्कदह है।


2️⃣ तरावीह़ का वक़्त इ़शा की फ़र्ज़ नमाज़ के बाद से शुरू होता है और फ़ज्र तक रहता है, फ़ज्र का वक़्त दाख़िल होते ही तरावीह़ की नमाज़ का वक़्त ख़त्म हो जाता है, इसलिए अगर किसी शख़्स ने फ़ज्र से पहले तरावीह़ नहीं पढ़ी तो फ़ज्र के बाद उसकी क़जा़ नहीं, अलबत्ता बिला उ़ज़्र तरावीह़ तर्क करने (छोड़ने) पर इस्तिग़फ़ार करना चाहिए।


3️⃣ इससे मालूम हुआ कि जो शख़्स ड्यूटी या किसी और उ़ज़्र की वजह से इ़शा की नमाज़ के फौरन बाद तरावीह़ अदा ना कर सके, तो उसे चाहिए कि सुबह़ सादिक़ तुलूअ़ होने से पहले (यानी फ़ज्र का वक़्त शुरू होने से पहले) तक जब भी मौक़ा मिले तो तरावीह़ अदा करने की कोशिश करे और पूरी रात में इस क़दर वक़्त निकाल ले कि जिसमें तरावीह़ अदा की जा सकती हो।


4️⃣ जिस शख़्स से तरावीह़ की दो या ज़्यादा रकआ़त चली जाएं, तो अगर नमाज़े वित्र से पहले इनको अदा करने का मौक़ा मिल रहा हो तो वित्र से पहले ही अदा कर ले, वरना तो नमाजे़ वित्र के बाद फ़ज्र से पहले पहले किसी भी वक़्त अदा कर ले। 

(رد المحتار، فتاویٰ بزازیہ، الاختیار، فتح القدیر، فتاویٰ قاضی خان، بدائع الصنائع، فتاویٰ محمودیہ)


5️⃣ तरावीह़ अदा करने के बाद मालूम हुआ कि इ़शा की नमाज़ फ़ासिद हो चुकी है, तो ऐसी सूरत में इ़शा की नमाज़ के साथ-साथ तरावीह़ भी दोबारा अदा करनी होगी।

(الحلبی الکبیر، فتاویٰ محمودیہ)


📿 तरावीह़ की रकआ़त और उनके अह़काम:

1️⃣ तरावीह़ बीस (20) रकआ़त ही सुन्नत है, ह़ुज़ूर अक़दस ﷺ ने 20 रकआ़त तरावीह़ अदा फ़रमाई है जैसा कि मुसन्नफ़ इब्ने अबी शैयबा में यह ह़दीस शरीफ़ मौजूद है:

7774: حَدَّثَنَا يَزِيْدُ بْنُ هَارُونَ قَالَ: أَخْبَرَنَا إبْرَاهِيْمُ بْنُ عُثْمَانَ، عَنِ الْحَكَمِ، عَنْ مِقْسَمٍ، عَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ: أَنَّ رَسُوْلَ اللهِ ﷺ كَانَ يُصَلِّيْ فِيْ رَمَضَانَ عِشْرِيْنَ رَكْعَةً وَالْوِتْرَ.

बीस रकआ़त तरावीह़ ह़ज़राते सह़ाबा किराम से भी साबित है और यही चारों अइम्मा ऐ किराम और जुम्हूरे उम्मत का मज़हब है। इससे मालूम हुआ की तरावीह़ की 8 रकआ़त नहीं है और ना ही इसका कोई ठोस सबूत है, बल्कि 20 रकआ़त से कम तरावीह़ पढ़ना सुन्नत ही नहीं, इसलिए 8 रकआ़त तरावीह़ पढ़ने से इज्तिनाब करना चाहिए।

(اعلاء السنن، رد المحتار مع درمختار، فتاویٰ محمودیہ)


2️⃣ तरावीह़ दो-दो रकआ़त पढ़ना सुन्नत है, इसलिए बेहतर यही है कि दो-दो रकआ़त करके तरावीह़ अदा की जाएं, अलबत्ता अगर कोई शख़्स एक साथ चार रकआ़त तरावीह़ अदा कर ले तब भी जाइज़ है। (بدائع الصنائع، تبیین الحقائق)


📿 तरावीह़ में चार रकआ़त के बाद वक़्फ़ा करने का ह़ुक्म:

हर चार रकआ़त तरावीह़ के बाद वक़्फ़ा करना (थोड़ी देर रुकना) मुस्तह़ब है कि इतनी मिक़दार वक़्फ़ा किया जाए जितनी देर में ये चार रकआ़त अदा की हैं। अलबत्ता अगर मुक़्तदी ह़ज़रात की तंगदिली की वजह से थोड़ी देर वक़्फ़ा कर लिया जाए तब भी जाइज़ है, और अगर कोई बिल्कुल वक़्फ़ा ही ना करे तब भी कोई ह़र्ज नहीं।


📿 चार रकआ़त तरावीह़ के बाद वक़्फ़े में कोई मख़्सूस अ़मल साबित नहीं:

चार रकआ़त तरावीह़ के बाद किए जाने वाले वक़्फ़े में शरीअ़त ने कोई ख़ास अ़मल सुन्नत या लाज़िम क़रार नहीं दिया और ना ही रिवायात से कोई मख़्सूस अ़मल साबित है, इसलिए किसी अ़मल को सुन्नत, साबित या लाज़िम क़रार देना हरगिज़ दुरुस्त नहीं, बल्कि हर एक को इख़्तियार है: चाहे तो ज़िक्र करे, दुआ़ करे, इस्तिग़फ़ार करे, दुरुद शरीफ़ पढ़े या वैसे ही ख़ामोश रहे यह सब जाइज़ है।


📿 मुरव्वजह तस्बीह़े तरावीह़ की हक़ीक़त:

बअ़ज़ अहले इ़ल्म ने चार रकआ़त तरावीह़ के वक़्फ़े में इस दुआ़ का भी ज़िक्र फ़रमाया है:

«سُبْحَانَ ذِي الْمُلْكِ وَالْمَلَكُوتِ، سُبْحَانَ ذِي الْعِزَّةِ وَالْعَظَمَةِ وَالْقُدْرَةِ وَالْكِبْرِيَاءِ وَالْجَبَرُوتِ، سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْحَيِّ الَّذِي لَا يَمُوتُ، سُبُّوحٌ قُدُّوسٌ رَبُّ الْمَلَائِكَةِ وَالرُّوحِ، لَا إله إلَّا اللہُ نَسْتَغْفِرُ اللهَ، نَسْأَلُكَ الْجَنَّةَ وَنَعُوذُ بِكَ مِنَ النَّارِ».

अलबत्ता इस दुआ़ से मुतअ़ल्लिक़ ये बातें ज़हन नशीन कर लेनी चाहिए कि:

1️⃣ तरावीह़ के वक़्फ़े में इस दुआ़ का पढ़ना क़ुरआन और सुन्नत से साबित नहीं, इसलिए इसको सुन्नत या मुस्तह़ब नहीं क़रार दिया जा सकता। वाजे़ह़ रहे इस तस्बीह़ को शरई़ ह़ुदूद से आगे नहीं बढ़ाना चाहिए कि इसको लाज़िम सुन्नत या साबित शुदा क़रार दिया जाए।

2️⃣ चूंकि यह दुआ़ अल्लाह तआ़ला की तस्बीह़ और ह़म्द व सना (और तारीफ़) पर मुश्तमिल है, इसलिए शरई़ ह़ुदूद में रहते हुए चार रकआ़त के बाद वक़्फ़े में इस दुआ़ को पढ़ना दुरुस्त है।

3️⃣ जब तरावीह़ के वक़्फ़े में इस दुआ़ का कोई सुबूत नहीं है तो इसको दुआ़ऐ तरावीह़ या तस्बीह़े तरावीह़ कहना भी मुश्किल है, आजकल बहुत से लोग इसको दुआ़ऐ तरावीह़ या तस्बीह़े तरावीह़ के उ़नवान से शाए़ करने का एहतिमाम करते हैं, जिसकी वजह से ग़लतफ़हमियां जन्म लेती हैं, इसलिए यह का़बिले इस्लाह़ बात है।

(माखूज़: इस्लाहे अगलात उर्दू सिलसिला:215)


✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा इख़्तिख़ार व तस्हील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

🪀9084199927


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ