🌻जुमे की पहली अजा़न के बाद मस्जिद के क़रीब ख़रीद और फरोख़्त का ह़ुक्म
आजकल यह सूरते हा़ल बड़ी कसरत से देखने को मिलती है कि बहुत सी मसाजिद के पास इ़त्र, टोपियों, मिस्वाक और रुमाल वगैरह की दुकानें हुआ करती हैं, या बाज़ लोग मस्जिद के दरवाज़े के पास यह चीजे़ं फरोख़्त करने [बेचने] के लिए टिया [ठिया ठेला] वगैरा लगा लेते हैं चुनांचे जब लोग पहली अजा़न के बाद नमाजे़ जुमा की अदायगी के लिए मस्जिद पहुंच जाते हैं, तो वहां मौजूद दुकान और टिये से मज़कूरह चीज़ें ख़रीद लेते हैं
और नमाज़े जुमा के साथ मज़कूरह चीजों के किसी दर्जे में तअ़ल्लुक़ होने की वजह से इस ख़रीद और फरोख़्त (खरीदने और बेचने) में कोई गुनाह भी नहीं समझा जाता और इसमें दीनदार लोग भी मुब्तला होते हैं, अगरचे इस से बढ़कर क़ाबिले इस्लाह़ सूरते हा़ल मज़कूरह चीजों के अ़लावा दीगर चीज़ों की ख़रीद और फरोख़्त की है।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या यह ख़रीद और फरोख़्त जाइज़ है? जै़ल में [नीचे] इसका तफ़सीली ह़ुक्म ज़िक्र किया जाता है ताकि सही़ मसअलह वाजे़ह़ होकर ग़लतियों की इस्लाह़ हो सके। इब्तिदा में कुछ तम्हीदी बातें मुलाह़जा़ फ़रमाएं।
🕋 *जुमा की पहली अजा़न के बाद سَعی اِلَی الجمعہ [सई़ इलल जुमअ़] का ह़ुक्म:*
शरीअ़त ने जुमा की नमाज़ के लिए जल्दी जाने की तरग़ीब देते हुए इसकी बड़ी फ़जी़लत बयान फ़रमाई है, फिर जुमा की पहली अजा़न होते ही नमाजे़ जुमा की अदायगी के लिए जाने को वाजिब क़रार दिया है इसको سَعی اِلی الجمعہ [सई़ इलल जुमअ़: जुमे की नमाज़ के लिए जाना] कहा जाता है, ह़त्ता कि जुमा की पहली अज़ान शुरू होते ही ख़रीद और फरोख़्त और हर वो काम मना क़रार दिया है जो कि इस سَعی اِلی الجمعہ यअ़नी जुमा के लिए जाने में रुकावट बने, ताकि बर-वक़्त जुमा की अदायगी के लिए जाना हो सके।
☀️ चुनांचे सूरतुल जुमा में अल्लाह तआ़ला का इरशाद है:
يٰٓأَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا إِذَا نُوْدِیَ لِلصَّلٰوةِ مِنْ يَّوْمِ الْجُمُعَةِ فَاسْعَوْا إِلٰى ذِكْرِ اللّٰهِ وَذَرُوا الْبَيْعَۚ ذٰلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ. (9)
▪ *तर्जुमा:* "ऐ ईमान वालों! जब जुमा के दिन नमाज़ के लिए पुकारा जाए तो अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ लपको और ख़रीद और फरोख़्त छोड़ दो, ये तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम समझो।" (आसान तर्जुमा क़ुरआन)
📿 *(सई़ इ़लल जुमा) سَعی اِلی الجمعہ में रुकावट बनने वाली चीज़ों की मनाही:*
जुमा की पहली अज़ान के बाद سَعی اِلی الجمعہ यअ़नी जुमा के लिए जाने में रुकावट बनने वाला हर काम ना-जाइज़ ठहरता है, चाहे दुनियवी काम हो या दीनी।
वाज़ेह़ रहे कि क़ुरआन करीम में तो सिर्फ़ ख़रीद और फरोख़्त तर्क कर देने (खरीदने और बेचने के मना होने) का ज़िक्र है, लेकिन ह़ज़राते फ़ुक़हाए किराम फ़रमाते हैं कि इस से हर वो काम मुराद है जो سَعی اِلی الجمعہ (जुमे की नमाज़ के लिए जाने) में ख़लल अंदाज़ हो, चाहे ख़रीद और फरोख़्त हो, खाना पीना हो, सोना हो, मुतालअ़ करना हो, या कोई भी दीनी या दुनियवी काम हो; वो सब मना हैं।
▪ चुनांचे शेख़ उल इस्लाम मुफ़्ती मुह़म्मद तक़ी उ़स्मानी साह़ब दामतबरकातुहुम मज़कूरह आयत के तह़त फ़रमाते हैं:
"जुमा की पहली अज़ान के बाद जुमा के लिए रवाना होने के सिवा कोई और काम जाइज़ नहीं, नीज़ जब तक जुमा ख़त्म ना हो जाए ख़रीद-फरोख़्त का कोई मामला जाइज़ नहीं है। अल्लाह के ज़िक्र से मुराद जुमा का ख़ुत्बा और नमाज़ है।"
(آسان ترجمہ قرآن)
📿 *कोनसी मस्जिद की अज़ान के बाद ख़रीद और फरोख़्त की मनाही है?*
वाज़ेह़ रहे कि मह़ल्ले की मस्जिद यानी क़रीबी मस्जिद में जब जुमा की पहली अजा़न हो जाए तो سَعی اِلی الجمعہ (जुमे की नमाज़ के लिए जाना) वाजिब हो जाता है, इसलिए मह़ल्ले ही की मस्जिद की अज़ान के बाद ख़रीद और फरोख़्त की मनाही है।
(देखिए: فقہ البیوع۔)
📿 *जुमा की पहली अजा़न के बाद किये गए ख़रीद और फरोख़्त का ह़ुक्म:*
मज़कूरह तफ़सील के मुताबिक़ जुमा की पहली अज़ान के बाद ख़रीद और फ़रोख़्त करना ना-जाइज़ है ऐसी सूरत में ख़रीद और फ़रोख़्त करने वाले दोनों फ़रीक़ गुनाहगार होंगे। इसलिए इनके ज़िम्मे तौबा और इस्तिग़फ़ार करना ज़रूरी है और इस गुनाह को ख़त्म करने के लिए कई फ़ुक़हाए किराम के नज़दीक ऐसे मामले को ख़त्म करना वाजिब है।
(देखिए: فقہ البیوع از شیخ الاسلام مفتی محمد تقی عثمانی صاحب دام ظلہم۔)
📿 *जुमा की पहली अजा़न के बाद मस्जिद के क़रीब ख़रीद और फ़रोख़्त का ह़ुक्म:*
मा क़ब्ल की तफ़सील से ये बात बख़ूबी वाज़ेह़ हो जाती है कि मस्जिद की पहली अजा़न के बाद मस्जिद के क़रीब किसी दुकान या मस्जिद के दरवाज़े पर बने किसी टिये पर कोई चीज फ़रोख़्त करना या लोगों का उनसे कोई चीज़ ख़रीदना दोनों ही ना-जाइज़ हैं।
इसलिए अगर किसी को मिस्वाक, टोपी, इ़तर वगैरह की ज़रूरत हो, तो यह काम जुमा की पहली अज़ान से पहले सर अंजाम दें या अगर कोई और चीज़ ख़रीदने की ज़रूरत हो, तो यह काम जुमा की नमाज़ के बाद भी किया जा सकता है।
➡️ ज़ैल में मज़ीद वज़ाह़त के लिए कुछ मसाइल ज़िक्र किये जाते हैं:
*मसअलह 1️⃣:* अगर दो लोग जुमा की पहली अज़ान के बाद नमाजे़ जुमा के लिए जाते जाते इस तरह़ ख़रीद और फरोख़्त करें कि سَعی اِلی الجمعہ (जुमे की नमाज़ के लिए जाना) फ़ौत ना हो यअ़नी इसकी वजह से ठहरना (और रुकना) ना पड़े तो यह जाइज़ है।
*मसअलह 2️⃣:* अगर जुमा की पहली अज़ान के बाद कोई शख़्स मस्जिद के क़रीब किसी दुकान या टिए से कोई चीज़ खरीदे और उनमें से किसी एक ने जुमा की नमाज़ अदा ना की हो तो यह मामला भी जाइज़ नहीं; क्योंकि जिस ने अब तक नमाज़े जुमा अदा नहीं की, तो वह इसलिए गुनाहगार है कि उसने سَعی اِلی الجمعہ (जुमे की नमाज़ के लिए जाने) का वाजिब छोड़ा है, जबकि जिसने जुमा की नमाज़ अदा कर दी है वह इसलिए गुनाहगार है कि यह उस दूसरे शख़्स के سَعی اِلی الجمعہ (जुमे की नमाज़ के लिए जाने) में ख़लल अंदाज हो रहा है। इससे यह बात मालूम हो गई कि अगर कोई शख्स किसी और मस्जिद में जुमा की नमाज़ अदा करके ऐसी मस्जिद के मह़ल्ले में आया जहां पहली अज़ान तो हो चुकी हो लेकिन ता-हा़ल (अब तक) जुमा की नमाज़ ना हुई हो तो ऐसी सूरत में जुमा की नमाज़ हो जाने तक ऐसे शख़्स से कोई चीज़ खरीदना भी ना-जाइज़ है जिसने जुमा की नमाज़ अदा ना की हो।
*मसअलह 3️⃣:* मस्जिद के क़रीब बअ़ज़ दुकानों और तिजारती मराकिज़ वाले यूं करते हैं कि जुमा की पहली अजा़न के बाद तिजारत बंद नहीं करते बल्कि मुतअ़द्दिद मसाजिद में बारी-बारी नमाज़े जुमा की अदायगी के लिए जाते हैं ताकि कारोबार चलता रहे, याद रहे कि ये भी ना-जाइज़ है क्योंकि سَعی اِلی الجمعہ (जुमे की नमाज़ के लिए जाने) का ह़ुक्म इनमें से हर एक के लिए वाजिब है, इसलिए जुमा की पहली अजा़न के बाद दुकान में बैठे रहने से ये वाजिब छूट जाता है।
*मसअलह 4️⃣:* अलबत्ता जिन मसाजिद में जुमा की पहली अज़ान ताख़ीर से यअ़नी बयान के बाद और सुन्नतों से पहले दी जाती है तो वहां मस्जिद के क़रीब ख़रीद और फ़रोख़्त की गुंजाइश है, अलबत्ता नमाज़े जुमा के एहतिमाम और फ़जी़लत की वजह से मुनासिब यही है कि नमाज़े जुमा का वक़्त दाख़िल हो जाने के बाद कारोबार बंद रखा जाए।
✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम
फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची
हिंदी तर्जुमा इख़्तिख़ार व तस्हील:
अल्तमश आ़लम क़ासमी
🪀9084199927
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