ग़ुस्ल के बाद वज़ू करने का हुक्म

 सिलसिला दीनी तालीमात 1 :

ग़ुस्ल के बाद वज़ू करने का हुक्म



 ग़ुस्ल‌ से पहले वज़ू करना तो सुन्नत है, लेकिन ग़ुस्ल के बाद वज़ू करने का हुक्म नहीं और ना ही इस की कोई ज़रूरत है, चाहे उस ने गु़स्ल से पहले वज़ू किया हो या ना किया हो, क्यों कि यह एक वाज़ेह ‌सी बात है कि जब ग़ुस्ल से वज़ू के आज़ा (हाथ पैर वग़ैरह) भी धुल जाते हैं तो ग़ुस्ल करने से वज़ू भी हो जाता है, इस लिए इस मुआ़मले में मुत़-म-इन रहते हुए किसी भी शक और ग़लत फेहमी का शिकार नहीं होना चहिए।

चुनांचे सुनने तिरमिज़ी में है कि: हज़रत आ़एशा रज़ियल्लाहु अ़न्हा फरमाती हैं कि "हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अ़लइहि वसल्लम ग़ुस्ल‌ के बाद वज़ू नहीं फरमाए थे"।

(तिरमिज़ी, हदीस:107, रद्दुल मुह़तार, फतावा उ़स्मानी)

✍🏻 मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

हिंदी तर्जुमा,व तसहील: अल्तमश आ़लम क़ासमी

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