दस मन्घड़त रिवायतें

 


*🔬दस मन्घड़त रिवायतें🔬*


अ़वाम में बहुत सी ऐसी रिवायतें मशहूर हैं, जिन का कोई मौतबर सुबूत नहीं मिलता; जै़ल में ऐसी दस मन्घड़त रिवायतें मुलाह़जा फरमाएं:


*रिवायत 1️⃣:* हुज़ूर अक़दस ﷺ एक बार तशरीफ़ फरमा थे कि, आप ﷺ के पास से एक यहूदी का जनाजा़ गुज़रा, उसे देख कर हुजू़र अक़दस ﷺ की आंखों में आंसू आ गए, हज़राते सहाबा किराम ने अर्ज़ किया कि, ऐ अल्लाह के रसूल! यह तो यहूदी का जनाजा़ है, आप फिर भी रो रहे हैं! तो हुजूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: "इस लिए रो रहा हूं कि मेरा उम्मती कलमे के बगैर जहन्नम में चला गया।"


▪ *रिवायत 2️⃣:* अल्लाह तआ़ला की मारिफ़त मेरा सरमाया है और यकी़न मेरी क़ुव्वत है।


▪ *रिवायत 3️⃣:* कलमा "لا الہ الااللہ" मद के साथ यानी खींच कर पढ़ने से चार हज़ार कबीरा गुनाह माफ़ हो जाते हैं।


▪ *रिवायत 4️⃣:* मेरी उम्मत के उ़लमा बनी इसराईल के अम्बिया किराम की तरह हैं।


▪‌ *रिवायत 5️⃣:* दुनिया आखिरत की खेती है।

इन अल्फाज़ को ह़दीस करार देना दुरुस्त नहीं, अलबत्ता कुरआन व सुन्नत से इस का मफहूम साबित है।


▪*रिवायत 6️⃣:* ’’تَخَلَّقُوا بِأَخْلَاقِ اللهِ‘‘ यानी अल्लाह तआ़ला के अख्लाक़ अपनाओ।

वाजे़ह रहे कि यह अल्फाज़ हदीस के नहीं, इस लिए इस को ह़दीस नहीं समझना चाहिए। अलबत्ता इस का माना दुरुस्त हो सकता है, जैसा कि बाज़ बुजुर्गों ने इस जुमले को सही इस्तेमाल फरमाया है।


▪ *रिवायत 7️⃣:* जो शख़्स अल्लाह तआ़ला के रास्ते में ई़द गुजा़रेगा, तो वो जन्नत में हुज़ूर अक़दस ﷺ के निकाह़ या वलीमे में शरीक होगा।


▪ *रिवायत 8️⃣:* ह़ज़रत जिबरील علیہ السلام ने एक बार हुज़ूर अक़दस ﷺ से पूछा कि, अल्लाह तआ़ला के नज़दीक आप ज़्यादा महबूब हैं या कुरआन करीम? तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि: "मैं ज़्यादा महबूब हूं, क्योंकि अल्लाह तआ़ला ने अपना कलाम [यानी कु़रआन करीम] मुझ पर नाजि़ल फ़रमाया है।

फिर ह़ज़रत जिबरील علیہ السلام ने पूछा कि अल्लाह तआ़ला के हां आप ज़्यादा महबूब हैं या मैं? तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने जवाब में फ़रमाया कि: "मैं ज़्यादा महबूब हूं क्योंकि आप को मेरे पास भेजा जाता है।" फिर पूछा कि अल्लाह तआ़ला को आप ज़्यादा महबूब हैं या अपना दीन? तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने जवाब में फ़रमाया कि: "अल्लाह तआ़ला को अपना दीन मुझ से ज्यादा महबूब है, क्योंकि मुझे दीन के लिए भेजा गया है।"


▪ *रिवायत 9️⃣:* एक औ़रत हुज़ूर अक़दस ﷺ के पास एक दूध पीता बच्चा ले कर आई और अर्ज़ किया कि इसे अपने साथ जि-हाद के लिए ले जाएं। तो हुज़ूर अक़दस ﷺ ने फ़रमाया कि: "यह जि-हाद में किस काम आएगा?" तो औ़रत ने जवाब दिया कि इसे अपने लिए ढाल बना लें।


▪ *रिवायत 🔟:* जिस खाने में कोई आ़लिम शरीक हो जाए तो उस के शुरका (शरीक होने वालों) से उस खाने का हि़साब माफ़ हो जाता है।


❄️ *तहकी़क व तब्सिरा:* मज़कूरा (ऊपर जिक्र की गईं) दस रिवायतों का हुज़ूर अक़दस ﷺ से कोई मौतबर सुबूत नहीं मिलता, इस लिए इन को ह़दीस समझने और ह़दीस कह कर बयान करने से इज्तिनाब करना और बचना ज़रूरी है।


❄️ *अहादीस बयान करने में सख़्त एहतियात की ज़रूरत:*

आजकल बहुत से लोग अहा़दीस के मुआ़मले में कोई एह़तियात नहीं करते, बल्कि कहीं भी ह़दीस के नाम से कोई बात मिल गई, तो मुस्तनद और मौतबर अहले इ़ल्म से उस की तहकी़क किए बगैर ही उस को ह़दीस का नाम दे कर बयान कर देते हैं, जिस के नतीजे में उम्मत में बहुत सी मन्घड़त रिवायतें आ़म हो जाती हैं।


इस लिए अहा़दीस के मुआ़मले में बहुत ही ज़्यादा एह़तियात की ज़रूरत है;

क्योंकि रसूलुल्लाह ﷺ की तरफ़ किसी बात को ग़लत मन्सूब करना यानी जो बात आप ﷺ ने नहीं फरमाई, उस के बारे में यह कहना कि यह रसूलुल्लाह ﷺ का फरमान है बड़ा सख़्त गुनाह है।


सही बुखारी की रिवायत है, नबी करीम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:

जिस ने मुझ पर जानबूझ कर झूठ बोला, वो अपना ठिकाना जहन्नम बना ले।

110- عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ عَنِ النَّبِيِّ ﷺ قَالَ: «...وَمَنْ كَذَبَ عَلَيَّ مُتَعَمِّدًا فَلْيَتَبَوَّأْ مَقْعَدَهُ مِنَ النَّارِ».


❄️ *गैर साबित (और बे असल) रिवायतों के बारे में एक ग़लत फहमी का इज़ाला:*

बंदे ने (यानी ह़ज़रत मुफ्ती मुबीनुर्रहमान साहब दामत बरकातुहुम ने) एक रिवायत के बारे में एक साह़ब को जवाब देते हुए यह कहा कि: यह रिवायत साबित नहीं, तो उन्हों ने अ़र्ज़ किया कि इस का कोई ह़वाला दीजिए! तो बंदे ने उनसे अर्ज़ किया कि:

ह़वाला तो किसी रिवायत के मौजूद होने का दिया जा सकता है, अब जो रिवायत अहा़दीस और सीरत की किताबों में मौजूद ही ना हो, तो उस का ह़वाला कहां से पेश किया जाए?!


जा़हिर है कि हवाला तो किसी रिवायत के मौजूद होने का होता है, रिवायत के ना होने का तो कोई ह़वाला नहीं होता। इस लिए हमारे लिए यही दलील काफ़ी है कि यह रिवायत मौजूद नहीं।

बाक़ी जो ह़जरात इस रिवायत के साबित होने का दावा करते हैं, तो उसूली तौर पर हवाला और सुबूत भी उन्ही के जि़म्मे है, इस लिए उन्हीं से ह़वाला और सुबूत तलब करना चाहिए।


तअ़ज्जुब की बात ये है कि जो ह़जरात किसी गै़र साबित (और बे असल) रिवायत को बयान करते हैं, उन से तो हवाला और सुबूत तलब नहीं किया जाता; लेकिन जो यह कहे कि यह साबित नहीं, तो उन से हवाले और सुबूत का मुतालबा किया जाता है! किस क़दर अजीब बात है यह! ऐसी रविश (और आ़दत) अपनाने वाले ह़जरात को अपनी इस आदत की इसलाह करनी चाहिए और उन्हीं से हवाला और सुबूत तलब करना चाहिए कि जो किसी रिवायत को बयान करते हैं या उस के साबित होने का दावा करते हैं।


अलबत्ता अगर हवाले से मुराद यह हो कि किसी मुह़द्दिस या इमाम का कौ़ल पेश किया जाए, जिन्हों ने इस रिवायत के बारे में साबित ना होने या बे असल होने का दावा किया हो, तो मजी़द इत्मीनान और तसल्ली के लिए यह मुतालबा माकूल और दुरुस्त है, इस में कोई ह़रज नहीं, लेकिन हर रिवायत के बारे में किसी मुहद्दिस और इमाम का कौ़ल मिलना भी मुश्किल होता है; क्योंकि गुज़रते ज़माने के साथ नई नई मन्घड़त रिवायतें ईजाद होती रहती हैं, इस लिए अगर कोइ मुस्तनद (और मौतबर) आ़लिम तहकी़क के बाद यह दावा करे कि ये रिवायत या वाकि़आ़ साबित नहीं और वो उस के साबित ना होने पर किसी मुहद्दिस या इमाम का कौल पेश ना कर सके, तो इस का यह मतलब हरगिज़ नहीं होता कि उन का यह दावा गैर मौतबर (और गलत) है, क्योंकि मुमकिन है कि किसी इमाम या मुहद्दिस ने उस रिवायत के बारे में कोई कलाम ही ना किया हो, बल्कि यह बाद की ईजाद हो, ऐसी सूरत में भी उस रिवायत को साबित मानने वाले ह़ज़रात की यह जि़म्मेदारी बनती है कि वो उस रिवायत का मौतबर ह़वाला और सुबूत पेश करें।

और जब तह़की़क़ के बाद भी उस रिवायत के बारे में कोई भी सुबूत ना मिले, तो ये उस रिवायत के साबित ना होने के लिए काफ़ी है।


➡️ *एक अहम नुकता:*

मन्घड़त और बे असल रिवायतों के बारे में एक अहम नुकता यह समझ लेना चाहिए कि अगर कोई रिवायत वक़िअ़तन (ह़क़ीक़त में) बे असल, मन्घड़त और गैर मौतबर है, तो वो किसी मशहूर खतीब और बुज़ुर्ग के बयान करने से मौतबर नहीं बन जाती।


इस अहम नुकते से उन लोगों की गलती मालूम हो जाती है कि जब उन्हें कहा जाए कि यह रिवायत मन्घड़त या गैर मौतबर है, तो जवाब में यह कह देते हैं कि यह कैसे मन्घड़त है, हालांकि यह मैंने फलां मशहूर बुज़ुर्ग या खतीब से सुनी है।


जा़हिर है कि यह किसी ह़दीस के का़बिले क़बूल होने के लिए यह कोई दलील नहीं बन सकती कि मैंने फलां आ़लिम या बुज़ुर्ग से सुनी है; बल्कि रिवायत को तो हदीस के उसूल के मैयार पर परखा जाता है।


खुलासा यह कि गलती तो बड़े से बड़े बुज़ुर्ग और आ़लिम से भी हो सकती है कि वो ला-इ़लमी और अनजाने में कोई मन्घड़त रिवायत बयान कर दें, अलबत्ता उन की इस गलती और भूल की वजह से कोई मन्घड़त और गैर मौतबर रिवायत मौतबर नहीं बन जाती, बल्कि वो बदस्तूर मन्घड़त और बे असल ही रहती है।


✍🏻___ मुफ्ती मुबीनुर रह़मान साह़ब दामत बरकातुहुम

फाज़िल जामिआ़ दारुल उ़लूम कराची

हिंदी तर्जुमा इख़्तिख़ार व तस्हील:

अल्तमश आ़लम क़ासमी

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ